Saturday, July 4, 2015

पहले इंसान को स्मार्ट बनाया जाए


यह शीर्षक मैंने बतर्ज़ किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए लिखा है। मैं पैरोडी में यकीन रखता हूं। गानों की पैरोडी पर चुनावी नारे लिख लिए जाते हैं और विचारों की पैरोडी पर विचार। जिस वक्त मैं यह स्तंभ लिख रहा हूं, चालीस साल पहले यही वक्त रहा होगा, रात के 11 बज 20 मिनट का जब, इंदिरा गांधी के निजी सचिव आर के धवन प्रधानमंत्री की वह चिट्ठी लेकर राष्ट्रपति फख़रूद्दीन अली अहमद के पास पहुंचे थे, और उसी चिट्ठी में देश में आपातकाल लगाने की सिफ़ारिश थी।

बहरहाल, चालीस साल बाद इसी दिन एक और प्रधानमंत्री ने कुछ ऐलान किए हैं। इनमे से एक है हर बेघर परिवार को घर मुहैया कराने की। प्रधानमंत्री इसे सरकार का दायित्व मानते हैं और इस जरूरत को पूरा करने के लिए आने वाले सालों में शहरों में दो करोड़ आवास बनाए जाने की योजना को अमलीजामा पहनाया जाना है।

इसके साथ ही शहरी विकास मंत्रालय के स्मार्ट सिटी, अटल शहरी विकास परियोजना और साल 2022 तक सबके लिए आवास योजना की शुरूआत भी हो गई है।

सुबह में एक तरफ प्रधानमंत्री इन तीन परियोजनाओं की शुरुआत की, उधर, निवेशकों उत्साहित हो उठे। उधर घोषणा हुई इधर, जोरदार लिवाली की बदौलत शेयर बाजार जून महीने के उच्चतम स्तर पर बंद हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी ने शहरों और गांवों को एक दूसरे का पूरक बनने की सलाह भी दी और कहा कि शहरों के गंदे जल को शुद्ध कर यदि इसे गांवों को लौटा दिया जाए तो इससे फसलों की सिंचाई की जा सकेगी जिससे अच्छी पैदावार होगी।

इससे पैदा होने वाली जैविक सब्जियों को शहरों के लोग सस्ते दर पर खरीद सकते हैं। मोदी ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि शहरों के आसपास के गांवों में सब्जियों की खेती अधिक होती है यदि थोड़ा सा बदलाव लाया जाए तो दोनों जगहों के लोगों को लाभ मिल सकता है।

चलिए विचार के तौर पर यह काफी अच्छे हैं। लेकिन स्मार्ट शहर बनाने से पहले क्या इंसान को स्मार्ट बनाना बेहतर विकल्प नहीं है? मैं गाज़ियाबाद के वैशाली में रहता हूं। दिल्ली से सटा हुआ है। लेकिन टूटी-फूटी सड़के, सड़कों पर फैली गंदगी, भरे और उफनते हुए नाले, बदबू फैलाते हुए गाजीपुर का लैंडफिल...इन सबको आप ठीक कर सकते हैं। लेकिन किसी शनीचर या रविवार की शाम आप इस पत्रकारबहुल रिहाइशी इलाके का दौरा करेंगे तो पाएंगे कि यहां तीन लेन की सड़क में एक लेन पर ट्रैफिक सरक रहा होता है, बाकी में लोगों ने अपनी कार पार्क की होती है। इन कार पार्क करने वाले महानुभावों में वह पत्रकार भी होते हैं, जो अपने चैनलो पर इस दुरवस्था पर चीखते हुए पाए जाते हैं।

मुख्तसर यह कि, शहर को स्मार्ट बनाने से पहले यहां रहने वाले लोगों को सिविक सेंस सिखाना होगा। इसके लिए एक अलग आंदोलन और अभियान की जरूरत पड़े तो वह भी कर लेना चाहिए।
अब जरा मैं उन बातों पर ध्यान दिलाना चाहता हूं जो शहरों के गंदे पानी को साफ करके खेती में इस्तेमाल किए जाने से जुड़ी हैं। सुनने में यह बात बेहद उम्दा है, लेकिन इसके सही तरीके से क्रियान्वयन पर मुझे शक है। कानपुर इसकी मिसाल है। कानपुर के शहर के तरल अपशिष्ट को, जो करीब 430 एमएलडी (मिलियन लीटर) रोजाना है, उपचारित करके खेती के लिए दिया जाता है।
लेकिन कानपुर के नजदीक शेखपुर जैसे डेढ़ दर्जन गांवों में देखा जाए तो इसी उपचारित पानी में मौजूद कैडमियम, लेड और सीसा जैसे भारी धातुओं ने सब्जियों के जरिए आहार श्रृंखला में जगह बना ली है। यह भारी धातु भूमिगत जल में भी चला गया है और लोगों में त्वचा के कैंसर से लेकर तमाम किस्म के रोग पैदा कर रहा है।

हम शहरों को स्मार्ट बना रहे हैं। बनाना चाहिए। आखिर शहरों में रहने वाले लोगों को सुविधाएं तो मिलनी ही चाहिए। लेकिन शहरों में जो नियोजन होगा, जो निर्माण होगा उससे क्या शहर का मिज़ाज तय होगा? क्या देश के सारे शहर एक जैसे मकानों वाले नहीं हो जाएंगे? क्या सरकारी योजनाओं के नक्शे पर तैयार हो रहे सारे शहर एक जैसे नहीं दिखेंगे? जोधपुर, बंगलुरू और मुजफ्फरपुर में क्या अंतर रह जाएगा?

अभी ही किसी शहर में चले जाइए, बने हुए सारे मकान अपने स्थानीय जरूरतों की बजाय एक जैसी शैली में बन रहे हैं। बड़े पैमाने पर मकान बनाने के दौरान दोहराव की इस वास्तु शैली से हमें बचना होगा।

उस स्मार्ट शहर में रहने वाले लोग भी स्मार्ट हो, इसकी तैयारी कर लें, तो आने वाले शहर आज के शहरों की तरह अनियोजित नहीं होंगे।


2 comments:

कुमारी सुनीता said...

umda !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बिल्कुल सही कहा . शहर सही रूप में स्मार्ट तभी बनेगा जब लोग स्मार्ट बनेंगे .सही शिक्षा की सबसे बड़ी आवश्यकता है आज , जो नही हो रही .