Friday, July 31, 2015

बाहुबली का बल

सिनेमा के परदे पर अमर चित्रकथा। फिल्म बाहुबली से बचपन की यादें ताज़ा होने लगीं। मैंने इस फिल्म को देखने से पहले बाहुबली के बारे में कुछ पढ़ा नहीं था। किसी ने बताया आप बस सिनेमैटोग्रफी और ग्राफिक्स का मजा लीजिए। सिनैमैटोग्रफी हमने संतोष सिवान की अशोक में भी देखी थी, और साहब, क्या कायदे की सिनैमैटोग्रफी थी। जहां तक ग्राफिक्स (वीएफएक्स) का इस्तेमाल है, कायदे से इस्तेमाल की गई बाहुबली पहली भारतीय फिल्म है।
चित्रकथा के पात्र। वैसे ही दृश्य। आप एक राजकुमारी के साए का पीछा करते हुए नायक को देखते हैं, जिसके पीछे एक जलपर्वत है। पता नहीं किस चोटी से गिरता कौन सा अपार जलराशि वाला जलप्रपात है।

आप अपनी सीट में धंसे हैं। परदे पर आप विशालकाय शिवलिंग उठाए एक मर्दाने नायक को देखते हैं जिसके तड़कती नसों और जिसके हाथों की फड़कती मछलियां परदे पर स्पष्ट दिखती हैं। निर्देशक राजामौलि एक दफा फिर से मर्दानगी को परदे पर पारिभाषित करते हैं।

हमारा नायक जब तमाम किस्म की कलाबाज़ियां खाता हुआ जलप्रपात उर्फ जलपर्वत के ऊपर पहुंच जाता है, और आप भव्य दृश्यावलि में खो जाते हैं। युद्ध के दृश्य हो, या एक काल्पनिक शहर माहिष्मती का भव्य डिजाइन। सब कुछ भव्य। बड़ा। आप अपनी सीट से एक अलग कल्पनालोक में चले जाते हैं।

लेकिन तभी एक अजीब सा किस्सा होता है। मेरे खयाल से बदमजगी। नायक को हीरोईऩ उर्फ तमन्ना भाटिया मिलती है जो एक लड़ाका टुकड़ी की अगुआई कर रही होती है। वह दिलेर लड़की है और वीर भी।  (वीरांगना शब्द पर मुझे आपत्ति है) लेकिन इन्हीं पलों में हमारा नायक पता नहीं कैसे अकेले पानी में हाथ डाले नायिका के हाथों में चित्रकारी कर आता है।

अपने हाथों पर किसी अनदेखे अजनबी की यह हरकत, जाहिर है, उसे नागवार गुजरती है। वह जब उस अनजाने को पकड़ने के लिए पेड़ पर चढ़कर बाणसंधान करती है, तो नायक एक दफा फिर से उसपर एक सांप छोड़ देता है। नायिका स्तंभित रह जाती है। (गजब विरोधाभास है, या तो नायिका बहुत बहादुर थी या सांप से डर जाने वाली, दोनों नहीं हो सकता)

अब नायिका उस अजनबी की शिद्दत से तलाश करती है। लेकिन जब उनका आमना-सामना होता है, नायक अवंतिका (नायिका) को पकड़ लेता है। और इसके बाद एक उत्तेजक किस्म का नृत्य-सा होता है। अवंतिका की मर्जी के बगैर ही नायक उर्फ बाहुबली उसके बाल खोल देता है, उसके वीरों वाले कपड़े खोलकर उसे पारंपरिक भारतीय नारियों वाली पोशाक में ला देता है और फिर अवंतिका को यह अहसास होता है कि अरे, मैं तो सत्य ही नारी हूं।

यह सीन, दशकों बीत गए, भारतीय सिनेमा में नहीं बदला है। याद कीजिए फिल्म आवारा, वहां वकील नरगिस, आवारा राजू के पैरों में गिर जाती है। और यहां अवंतिका उस छेड़छाड़ करने वाले अनजाने बाहुबली की बांहों में। तो देवियों और सज्जनों, लड़की पटाने का यही खास तरीका है।

लड़की लड़के को देखते ही अपने जीवन भर के खास मकसद को भूल जाती है। जैसे ही वह महसूस करती है कि अरे वह तो नारी है, उसकी सारी वीरता जाती रहती है। पूरी दुश्मन टुकडी को अब तक धूल चटा चुकी नायिका अवंतिका को तीन-चार साधारण सैनिक पकड़ लेते हैं और बचाता कौन है? नायक।

तो प्यार के इस आक्रामक इजहार में, विरोध करने लायक बहुत सारी चीजें हैं। छिद्रान्वेषण नहीं, लेकिन मुझे कहने दीजिए कि इस मेगाहिट फिल्म की पहुंच देश के बहुत या अधिसंख्य लोगों तक होगी। और यकीन मानिए, किसी फिल्म का असर किसी किताब से कहीं अधिक जल्दी होता है।

किक में सलमान का जैक्लीन की स्कर्ट उठाना हो या किसी और हीरोईन की किसी और हीरो द्वारा तंग करके पटाया जाना, और अब बाहुबली में यह ताजा सीन, क्या किशोरों में यह संदेश नहीं जाएगा कि टीज़ करने से लड़कियां लड़कों को पसंद करने लगती हैं।

यह बात सिर्फ सिनेमा तक सीमित नहीं है। आजकल कलर्स चैनल पर ससुराल सिमर का और स्वरागिनी के मिक्स एपिसोड के बहुत चर्चे चल रहे हैं और आप में से कईयों ने इसे देखा भी होगा। आजकल इसके प्रोमों में एक डायन दिखाया जा रहा है।


घर-घर तक पहुंचने वाले धारावाहिकों में डायन-जोगन, भूत-प्रेत दिखाकर कैसा मनोरंजन हो रहा है? डायन के ज़रिए कौन-सा राज़ खुलने वाला है यह तो स्वरागिनी और ससुराल सिमर का के संयुक्त एपिसोड ही बताएंगे। लेकिन छोटे परदे पर इस प्रोमो (और न जाने कितने प्रोग्राम) और बड़े पर बाहुबली की मिसाल ने यह साबित कर दिया, कि वीएफएक्स बनाने में हम भले ही हॉलिवुड की थ्री हंड्रेड और अवतार जैसा चमत्कार कर दें, हमारी मानसिकता अभी भी वहीं है। वहीं की वहीं। 

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