Wednesday, March 2, 2016

गांव, किसान, बजट और सपना

देश में सूखे के हालात की गंभीरता देखकर मैं ऐसे बजट की उम्मीद कर रहा था। पिछले दो चुनाव में बीजेपी की हार और गांव में घटती लोकप्रियता के मद्देनजर भी मैं ऐसे ही बजट की उम्मीद कर रहा था। यकीन मानिए, पूरे बजट भाषण में मैंने खेती और ग्रामीण विकास के बाद जेटलीजी का भाषण सुनना छोड़ दिया।

गांव को यह सब बहुत दिनों से नहीं मिला था।

किसान यह सुनने के लिए तरस गए थे कि कोई सरकार अगले पांच साल में उनकी आमदनी को दोगुना करने की बात कम-से-कम संसद में करेगी, बजट भाषण में करेगी। किसानों के कर्ज़ माफ कर देना, उपचार है। लेकिन सावधानी उपचार से बेहतर है।

हालांकि बजट का अर्थशास्त्र कैसे काम करता है इस मामले में मेरी समझ बुनियादी तौर पर कमजोर है, फिर भी अगले पांच साल में किसानों की आय को दोगुना करने का सरकार का संकल्प एक सपने सरीखा मालूम पड़ता है।

काश सरकार यह भी बता पाती कि यह लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा।

इस मकसद को पाने के लिए अगले पांच साल तक खेती से होने वाली आय में करीब 14 फीसदी सालाना बढ़ोतरी की जरूरत होगी।

सरकार ने एक काम किया है कि सूखे को देखते हुए खेती और किसानों के कल्याण के लिए 35,984 करोड़ रुपये दिए हैं।

सरकार ने जल संसाधनों का विकास करने पर नज़र डाली है और उमा भारती का जल संसाधन मंत्रालय 89 रूकी हुई परियोजनाओं को जल्द से जल्द (उन्होंने दो साल बताया है) पूरा करके देश के 80 लाख हेक्टेयर ज़मीन को सिंचित बनाने की मकसद को पूरा करने की दिशा में काम कर रही है।

उमा भारती चाहती हैं कि देश में केन-बेतवा समेत नदियों को जोड़ने की पांच परियोजनाओं को जल्द से जल्द शुरू किया जाए। हालांकि इन परियोजनाओं का डीपीआर तैयार होने के बाद भी अभी पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिली है।

बहरहाल, खेती को समस्या से दूर करने के लिए सरकार ने बजट में यह प्रावधान जरूर किया है कि किसानों को सही वक्त पर और पर्याप्त कर्ज मिले। इसके लिए सरकार ने 9 लाख करोड़ रूपये का आवंटन किया है। इस मद में दी गई यह रकम अब तक की सबसे अधिक रकम है।

किसानों के ऋण भुगतान का बोझ कम करने के लिए वित्त मंत्री ने ब्याज छूट के लिए 2016-17 के बजट में 15,000 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया है। और शायद टिकाई विकास के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके तहत 5 लाख एकड़ वर्षाजल क्षेत्रों को लाने के लिए 'परंपरागत कृषि विकास योजना' का एलान किया गया है।

लेकिन बजट में खेती-किसानी के लिए की गई इन बातों से यह समझ में नहीं आया कि पांच साल में किसानों की आय दोगुनी कैसे हो जाएगी। यह तो कृषि क्षेत्र को आवंटित बजट राशि के मद और उसके ब्योरे हैं। इस बजट राशि से सीधे तौर पर किसानों का कोई भला नहीं हो सकता।

लेकिन इतना जरूर है कि खेती को बेहतर बनाने के लिए धीरे-धीरे एक ढांचे की बुनियाद खड़ी होगी, जिसका फायदा एक वक्त के बाद किसानों को मिलेगा।

देश का किसानों इस वक्त जिन हालात से गुजर रहा है वह छिपा नहीं है।

इकॉनमिक सर्वे की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि एक किसान की औसतन सालाना आमदनी 20 से 30 हजार रुपये है। तो क्या ये मानें कि पांच साल बाद इस किसान की सालाना आमदनी 40 हजार से 60 हजार रुपए हो जाएगी।

दूसरी अहम बात यह कि लगातार आपदा की वजह से किसान भीषण कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। अंदाजा है कि खेती के घाटे का सौदा होने की वजह से हर रोज ढाई हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं और रोज़ाना 50 के करीब किसान मौत को गले लगा रहे हैं। देश की संस्थाओं के पास किसान की कोई एक परिभाषा भी नहीं है। वित्तीय योजनाओं में, राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो और पुलिस की नजर में किसान की अलग-अलग परिभाषाएं हैं।

राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के पिछले 5 साल के आंकडों के मुताबिक सन् 2009 में 17 हजार, 2010 में 15 हजार, 2011 में 14 हजार, 2012 में 13 हजार और 2013 में 11 हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की राह चुन ली।

यह उस देश के लिए बहुत दुर्भाग्य की बात है जहां 60 फीसद आबादी खेती-बाड़ी से गुजारा करती है। इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि लगातार दो साल तक सूखे से जूझ रहे देश में शायद किसानों की कर्ज माफी का कुछ इंतजाम भी किया जाता।

आने वाले दशकों में खाद्य जरूरतों में बढ़ोत्तरी की वजह से वैकल्पिक खाद्य वस्तुओं, मसलन डेयरी, मछली और पोल्ट्री उत्पादों के विकल्पों पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि खेती के समानांतर रोजगार के नए विकल्पों की जरूरत महसूस की जा रही है।

उमा भारती ने दावा भी किया है कि अगर हम सारी सिंचाई योजनाएं बावक्त शुरू कर पाएं तो खेती एक बार फिर जीडीपी में 40 फीसद का योगदान करने लगेगी। हम भी यही चाहते हैं, किसान भी। आमीन।


मंजीत ठाकुर

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