अयोध्या हिल्स यानी पुरुलिया का वह हिस्सा जो माओवादी उपद्रवों के लिए पूरे देश में बदनाम था। इस इलाके में घूम रहा हूं तो एक बात गौरतलब दिख रही हैः शांति। साल 2009 में नक्सली हिंसा के दौर में इधर आया था तो जिन रास्तों में आप कदम भी नहीं रख सकते थे वहां आज सैनानियों का मेला लगता है। होली के आसपास का वक्त है और अयोध्या हिल्स में कोलकाता से आए सैलानी मटरगश्ती करते देखे जा सकते हैं। सवाल यह है कि आखिर 2011 के बाद ममता बनर्जी ने इस इलाके में क्या जादू किया?
जंगल महल कहा जाता है इस इलाके को। यह इलाका यानी बांकुरा, पुरिलाय और पश्चिमी मेदिनीपुर का हिस्सा, जो झारखंड और छत्तीसगढ़ से लगता है। जंगल महल का नाम माओवादी उपद्रवों के लिए देशभर में मशहूर था, लेकिन अब इस इलाके में विकास की गतिविधियां शुरू होती देखी जा सकती हैं। उद्योगों की कमी वाले इस इलाके में माओवादी गतिविधियों में रोज़ाना कोई न कोई हत्या हुआ करती थी, साथ इलाके में अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते थे।
लेकिन करीबों की समर्थक मानी जाने वाली वाम मोर्चे की सरकार 33 साल के शासन में जो नहीं कर सकी, ममता ने चार साल में कर दिखाया है। ममता की तारीफ करनी होगी कि इस इलाके में अब हिंसक गतिविधियां शून्य हैं। वरना साल 2010-11 में सिर्फ लालगढ़-झारग्राम में 350 लोग नक्सली हिंसा की भेंट चढ़ गए थे। 2012 के बाद से एक भी व्यक्ति की मौत हिंसक गतिविधियों या नक्सली हमले में नहीं हुई है।
2011 में सत्ता में आईँ ममता बनर्जी जंगल महल में शांति और विकास को अपनी बड़ी कामयाबियों में गिनाती हैं। हालांकि यह दावा कुछ ठीक भी लगता है कि पिछले साढ़े तीन साल से यहां शांति है और सारे माओवादी लीडर पकड़ लिए गए हैं।
सरकार ने इस इलाके में टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज और जंगल के इलाकों में बेहतर सड़कों के विकास के साथ लालगढ़ में कंसावती नदी पर 60 करोड़ की लागत से बने पुल ने विकास को नया नज़रिया दिया है।
रोज़गार के लिए इलाके से 10000 (दस हजार) लोगों को होम गार्ड की नौकरी दी गई है और इस इलाके में रहने वाले हर शख्स को 2 रूपये किलो की दर से हर हफ्ते 2 किलो चावल देने की योजनाएं चलाई गई हैं। मनरेगा के पैसे से तालाबों पर भी काम चल रहा है।
लेकिन, अयोध्या हिल्स हो या सालबॅनी, या फिर झाड़ग्राम...यह इलाका अब ठिठककर देशभर की विकास गतिविधियों से अपनी तुलना करने लगा है। दो राय नहीं कि सड़कें बनी हैं। लेकिन रोज़गार के लिए पुरुलिया के अयोध्या हिल्स इलाके में अब भी संताल जनजाति के लोगों के लिए जंगल से लकड़ी काटकर लाना और साल के पत्ते तोड़कर बाजार में बेचना ही है। मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी और 2 रूपये किलो चावल, विकास के नाम पर यही हुआ है। नए संस्थान खोले जाने के काम हुए हैं, लेकिन ज्यादार मेदिनीपुर के आसपास।
यह भी सच है कि वाम मोर्चे से लोगों के मोहभंग हुआ था, लेकिन तब से पांच साल बीत चुके हैं। पुरुलिया के काफी बड़े इलाके में कुएं तालाब सब सूख गए हैं। नदियों की तली खोदकर जो पानी इकट्ठा किया गया है, वहां मवेशी भी पानी पी रहे हैं, घरों में भी वही पानी ले जाया जा रहा है। घरों की बहू बेटियों के नहाने का भी एकमात्र साधन वही है। और यह सिर्फ एक गांव की बात नहीं है। अयोध्या हिल्स के आसपास 106 गांवों में यही स्थिति है। इस इलाके के लोग बड़ी दयनीयता से ममता बनर्जी से पानी की गुहार लगाते हैं।
पूरी यात्रा के अंत में मैं तो सिर्फ इतना देख पा रहा हूं कि विकास का काम शुरू तो हुआ है लेकिन यह शुरूआत से भी काफी पीछे है। हम अगर इन लोगों से देशभक्ति की उम्मीद करें तो कैसे, खाली पेट भजन भी तो नहीं होता। और् रही बात शांति की, यह शांति से अधिक खामोशी लग रही है। जो शायद ममता बनर्जी के राजनीतिक कौशल का नतीजा है, और शायद एक फौरी जुगत का भी, जिसके नाकाम हो जाने की आशंका हमेशा सताती रहेगी।
मंजीत ठाकुर
जंगल महल कहा जाता है इस इलाके को। यह इलाका यानी बांकुरा, पुरिलाय और पश्चिमी मेदिनीपुर का हिस्सा, जो झारखंड और छत्तीसगढ़ से लगता है। जंगल महल का नाम माओवादी उपद्रवों के लिए देशभर में मशहूर था, लेकिन अब इस इलाके में विकास की गतिविधियां शुरू होती देखी जा सकती हैं। उद्योगों की कमी वाले इस इलाके में माओवादी गतिविधियों में रोज़ाना कोई न कोई हत्या हुआ करती थी, साथ इलाके में अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते थे।
लेकिन करीबों की समर्थक मानी जाने वाली वाम मोर्चे की सरकार 33 साल के शासन में जो नहीं कर सकी, ममता ने चार साल में कर दिखाया है। ममता की तारीफ करनी होगी कि इस इलाके में अब हिंसक गतिविधियां शून्य हैं। वरना साल 2010-11 में सिर्फ लालगढ़-झारग्राम में 350 लोग नक्सली हिंसा की भेंट चढ़ गए थे। 2012 के बाद से एक भी व्यक्ति की मौत हिंसक गतिविधियों या नक्सली हमले में नहीं हुई है।
2011 में सत्ता में आईँ ममता बनर्जी जंगल महल में शांति और विकास को अपनी बड़ी कामयाबियों में गिनाती हैं। हालांकि यह दावा कुछ ठीक भी लगता है कि पिछले साढ़े तीन साल से यहां शांति है और सारे माओवादी लीडर पकड़ लिए गए हैं।
सरकार ने इस इलाके में टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज और जंगल के इलाकों में बेहतर सड़कों के विकास के साथ लालगढ़ में कंसावती नदी पर 60 करोड़ की लागत से बने पुल ने विकास को नया नज़रिया दिया है।
रोज़गार के लिए इलाके से 10000 (दस हजार) लोगों को होम गार्ड की नौकरी दी गई है और इस इलाके में रहने वाले हर शख्स को 2 रूपये किलो की दर से हर हफ्ते 2 किलो चावल देने की योजनाएं चलाई गई हैं। मनरेगा के पैसे से तालाबों पर भी काम चल रहा है।
लेकिन, अयोध्या हिल्स हो या सालबॅनी, या फिर झाड़ग्राम...यह इलाका अब ठिठककर देशभर की विकास गतिविधियों से अपनी तुलना करने लगा है। दो राय नहीं कि सड़कें बनी हैं। लेकिन रोज़गार के लिए पुरुलिया के अयोध्या हिल्स इलाके में अब भी संताल जनजाति के लोगों के लिए जंगल से लकड़ी काटकर लाना और साल के पत्ते तोड़कर बाजार में बेचना ही है। मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी और 2 रूपये किलो चावल, विकास के नाम पर यही हुआ है। नए संस्थान खोले जाने के काम हुए हैं, लेकिन ज्यादार मेदिनीपुर के आसपास।
यह भी सच है कि वाम मोर्चे से लोगों के मोहभंग हुआ था, लेकिन तब से पांच साल बीत चुके हैं। पुरुलिया के काफी बड़े इलाके में कुएं तालाब सब सूख गए हैं। नदियों की तली खोदकर जो पानी इकट्ठा किया गया है, वहां मवेशी भी पानी पी रहे हैं, घरों में भी वही पानी ले जाया जा रहा है। घरों की बहू बेटियों के नहाने का भी एकमात्र साधन वही है। और यह सिर्फ एक गांव की बात नहीं है। अयोध्या हिल्स के आसपास 106 गांवों में यही स्थिति है। इस इलाके के लोग बड़ी दयनीयता से ममता बनर्जी से पानी की गुहार लगाते हैं।
पूरी यात्रा के अंत में मैं तो सिर्फ इतना देख पा रहा हूं कि विकास का काम शुरू तो हुआ है लेकिन यह शुरूआत से भी काफी पीछे है। हम अगर इन लोगों से देशभक्ति की उम्मीद करें तो कैसे, खाली पेट भजन भी तो नहीं होता। और् रही बात शांति की, यह शांति से अधिक खामोशी लग रही है। जो शायद ममता बनर्जी के राजनीतिक कौशल का नतीजा है, और शायद एक फौरी जुगत का भी, जिसके नाकाम हो जाने की आशंका हमेशा सताती रहेगी।
मंजीत ठाकुर
1 comment:
शुभ लाभ
Post a Comment