तपते रेगिस्तान में कैक्टस सीना ताने खड़ा था। गुलाब-केतकी-गेंदे की तरह उसे कभी किसी माली ने खाद-पानी नहीं दिया था, कभी उसकी कटिंग-प्रूनिंग भी नहीं हुई थी। किसी ने कभी जड़ में पानी तक नहीं दिया। वक़्त के साथ कैक्टस के कांटे तीखे हो गए थे। एकदम दरांती की तरह तेज़। और कैक्टस उर्फ नागफनी का फन नाग की तरह ज़हरीला हो गया।
तेज़ धूप, गरम हवा के थपेड़े, अपने ही कांटों से छिला बदन। रेगिस्तान में बारिश कहां होती थी, कभी भी नहीं। लेकिन इधर पता नहीं कहां से काली घटा आई, अपने गीले बालों से उसने कैक्टस को लपेट लिया, बालों से गिरती बूंदो ने कैक्टस को भिंगो दिया।
कैक्टस घटा के आगोश में था, तपती धरती पर गिरी बूंदो से जो सोंधी सुगंध निकली, उसने कैक्टस को मदहोश कर दिया। उसने ज़िंदगी में पहली दफ़ा ऐसी बू सूंघी थी। मेघा बोली, 'प्यारे कैक्टस, अब तेरा सारा ज़हर मेरा, तेरे सारे दर्द मेरे।' मेघा की न(र)मी से कैक्टस का ज़हर धुल गया। कांटे नरम पड़ गए और पत्तियों में बदल गए। कली निकल आई, फूल खिलने ही वाला था कि घटा हवा के साथ ऊपर उठ गई, उठती गई। एकदम आसमान में जाकर सिरस बादलों में तब्दील हो गई...मेरे प्यारे कैक्टस, तुम तो मेरे हीरो हो, अब से तुम कांटो के लिए नहीं, फूलों के लिए जाने जाओगे...अब तुम रेत पर कविताएं लिखा करना।
कैक्टस ने सिर उठाकर देखा, उसकी मेघा हमेशा उसके ऊपर रहने वाली थी, रेगिस्तान में हरा कैक्टस सीना ताने फिर खड़ा हो गया। धूप, लू के थपेड़ों, गरमी...अब किसकी परवाह थी उसे।
तेज़ धूप, गरम हवा के थपेड़े, अपने ही कांटों से छिला बदन। रेगिस्तान में बारिश कहां होती थी, कभी भी नहीं। लेकिन इधर पता नहीं कहां से काली घटा आई, अपने गीले बालों से उसने कैक्टस को लपेट लिया, बालों से गिरती बूंदो ने कैक्टस को भिंगो दिया।
कैक्टस घटा के आगोश में था, तपती धरती पर गिरी बूंदो से जो सोंधी सुगंध निकली, उसने कैक्टस को मदहोश कर दिया। उसने ज़िंदगी में पहली दफ़ा ऐसी बू सूंघी थी। मेघा बोली, 'प्यारे कैक्टस, अब तेरा सारा ज़हर मेरा, तेरे सारे दर्द मेरे।' मेघा की न(र)मी से कैक्टस का ज़हर धुल गया। कांटे नरम पड़ गए और पत्तियों में बदल गए। कली निकल आई, फूल खिलने ही वाला था कि घटा हवा के साथ ऊपर उठ गई, उठती गई। एकदम आसमान में जाकर सिरस बादलों में तब्दील हो गई...मेरे प्यारे कैक्टस, तुम तो मेरे हीरो हो, अब से तुम कांटो के लिए नहीं, फूलों के लिए जाने जाओगे...अब तुम रेत पर कविताएं लिखा करना।
कैक्टस ने सिर उठाकर देखा, उसकी मेघा हमेशा उसके ऊपर रहने वाली थी, रेगिस्तान में हरा कैक्टस सीना ताने फिर खड़ा हो गया। धूप, लू के थपेड़ों, गरमी...अब किसकी परवाह थी उसे।
1 comment:
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज शनिवार (03-12-2016) के चर्चा मंच
"करने मलाल निकले" (चर्चा अंक-2545)
पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Post a Comment