क़यामत भी नेताओं और माशूकाओं की तरह धोखेबाज़ है. आते-आते नहीं आती है. वायदा करती है और नहीं आती है.
कई दिनों से टीवी वाले चीख रहे थे, पाकिस्तान से धूल भरी आंधी से, यह उड़ जाएगा. तूफानी बारिश से वह बह जाएगा. मौसम विभाग ने स्कूल बंद करवा दिए, लोगों से घरों में दुबके रहने को कहा. कहा, किसी छोटे पेड़ के नीचे न खड़े हों. टीन-टप्पर का सहारा न लें. मजबूतों की शरण में जाएं. भाई, यह कर्नाटक चुनाव नहीं है कि हम किसी बड़ी पार्टी की ही शरण लें और टीन-टप्पर और पेड़ों जैसी छोटी जेबी पार्टियों से दूर रहें.
मौसम विभाग ने कहा, यह आंधी दूर तलक जाएगी. हम धड़कते दिल से घर से दफ्तर के लिए निकले थे. धड़कते दिल से तेज हवा और धूल का इंतजार कर रहे थे. धड़कते दिल से आसमान में चमकती हुई तेज गरजों और बिजली का इंतजार कर रहे थे, जिसको सुनते ही मचकती हुई प्रेमिका प्रेमियों से लिपट जाती है. और फिर पार्क में दो फूल आपस में टकरा जाते हैं.
ऐसे ही कई फिल्मों में वाक़या होता है कि ओलों वाली बारिश में लड़की भींग जाती है. बेसुध हो जाती है. उसके शरीर को गरमी की जरूरत होती है. कोई उपाय नहीं. कहीं न डॉक्टर न कुछ और मदद. किसी खंडहर में आसरा लिया नायक उसको अपनी देह की गरमी देता है. नतीजतन, कुछ दिनों बाद लड़की गर्भवती हो जाती है. कुछ कार्य-कारण संबंध सरीखा मामला दिखने लगता है. मुख्तसर यह कि हम डरे हुए थे और बड़े एंडवेंचरस से विचार आ रहे थे.
हम भी बड़ी शिद्दत से क़यामत का इंतज़ार कर रहे थे. हम बहुत नजदीक से देखना चाहते थे कि क़यामत आखिर होती कैसी है. सुना था क़यामत के रोज़ क़ब्र से मुरदे उठ खड़े होंगे और सबके पाप-पुण्य का हिसाब-किताब होना है.
फिर मन में बड़े गहन विचार उत्पन्न हुए आखिर क़यामत है क्या... लोगों ने समझाया कि इस के बाद धरती पर सारे लोग खत्म हो जाएंगे. धरती लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगी. एक सवाल अपने आप सेः धरती अभी लोगों के रहने लायक है क्या?
कुछ लोग अपनी महबूबा को क़यामत सरीखा मानते हैं, कुछ अपनी पत्नी को कहते तो शरीक-ए-हयात हैं लेकिन मानते क़यामत ही हैं. पहले पत्नियों वाली बात. बीवी को क़यामत ने मानने वालों के लिए, श्रीमतीजी का जन्मदिन, उनके भाई का जन्मदिन, अपनी शादी की सालगिरह की तारीख़ भूलकर देखिए (यद्यपि हमारा विचार है कि यह तारीख़ भूलने योग्य ही हुआ करती है.) आपके लिए वही तारीख़ क़यामत सरीखी हो जाएगी. उस दिन कायदे से क़यामत बरपा होगा आप पर.
आपकी महबूबा ने फोन पर आपसे कहा, फलां दिन मिलते हैं. किस जगह, किस वक़्त, ये बाद में बताने का वायदा. फिर आप तैयार होना शुरू करते हैं...सिगडी़ पर दिल सेंक रहा हूं, तेरा रास्ता देख रहा हूं, गुनगुनाते हुए...आपकी क़यामत सरीखी महबूबा, जिनकी आंखों, भौंहों, पलकों, अलकों (बाल की लटों) बालों, गालों, गाल पर के तिल, होठों, मुस्कुराहट, गरदन, ठोड़ी, कलाइयों, कलाई के ऊपर के एक और तिल, कमर सबको एक-एक कर आप पहले ही क़यामत बता चुके हैं.
सोमवार को आपने उनके चलने को क़यामत कहा था. मंगलवार को उनकी मुस्कुराहट से क़यामत आई थी. गुरुवार को उऩकी आवाज़ क़यामत सरीखी थी. शुक्रवार को वो क़यामत का पूरा पैकेज लग रही थी. मतलब सर से पैर तक क़यामत ही क़यामत. बहरहाल, आपने तय किया था कि इसी क़यामत से मिलकर क़यामत की घटना को सत्य ही घटित करना...लेकिन असली क़यामत की बारी तो अब आती है.
आप टापते रह जाते हैं. आपके जिगर पर छुरी चल जाती है. लड़को का जिगर प्रायः छुरियों के नीचे ही पड़ा रहता है. आपकी उनने कुछ किया या न किया, आपकी तरफ देखा, नहीं देखा, आपसे समय पूछा, हंसी, नहीं हंसी, आज उनने जीन्स पहनी है, आज उनने सलवार सूट पहना है, आज उन्होंने आपकी तरफ देखा, आज उनने आपकी तरफ देखकर थूका नहीं...आपको वह क़यामत लगेगी. आपके दिल पर छुरियां चल जाएगी.
बहरहाल, ये तो बहुत निजी क़िस्म की क़यामतें हैं. जहां प्रेमिकाएं अपने प्रेमी से फायरब्रिगेड मंगवाने की इल्तिजा करती हों, जहां प्रेमी को प्रेमिका का प्यार हुक्काबार लगे, या तस्वीर को फेविकोल से चिपका लिया जाए वहां बाकी की क़यामतों पर क्या नज़र जाएगी.
पिछले कुछ दिनों से क़यामत से सामना हो रहा है.
जरा उनसे पूछिए जो इन दिनों रेल से उर्दू वाला सफ़र करते हुए अंग्रेजी में भी सफर कर रहे हैं. जिन्ना साहेब के फोटो पर क़यामत बरपा हो रहा है. अभी खबर मिली कि अकबर रोड पर किसी ने महाराणा प्रताप रोड लिख दिया. यह बात और है कि पोस्टर लिखने वाला रोड का हिज्जे नहीं लिख पाया. पर सड़क का नाम अकबर रोड हो या तॉल्सतॉय रोड, महाराणा प्रताप रोड हो या शिवाजी रोड, मर्सिडीज से चलने वाले उस पर उसी तरह स्वैग से चलेंगे, चप्पल घिसने वाले घिसते ही रहेंगे. पैदल.
इन्ना-जिन्ना के चक्कर में हमारी फौज पर गर्व करने वाली सरकार ने नई योजनाओं के लिए मांगे गए बजट में से साढ़े 15 हजार करोड़ कम आवंटन दिए. फौज फटेहाल है. न नए हथियार हैं. पेंशन का बोझ है सो अलग. लेकिन 56 इंच सीने वाली सरकार फौज की झूठी तारीफ तो करता है, बस पैसे नहीं देती. समझने वाले चाहें तो इसे क़यामत समझ सकते हैं. ग़ोकि एक तरफ चिर-शत्रु पाकिस्तान और मौकापरस्त चीन ने हमला कर दिया तो जिन्ना की तस्वीर लेकर खड़े होने से भी पाकिस्तान नहीं मानने वाला.
इधर, राहुल गांधी बोलते भए कि अगर कांग्रेस को बहुमत आ गया (चिचा, यही तो शाश्वत प्रश्न है) तो वह प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. राहुल भिया, यह सवाल क़यामत भरा ही है. मैं तो कहता हूं अगर मेरी पार्टी को बहुमत आ गया तो हम भी पीएम बन के ही मानेंगे.
वैसे प्रधानमंत्री भी कमाल हैं, राहुल को ललकारा उन्होंने की बिना कागज 15 मिनट बोल के दिखाएं (क़यामत यह कि इस मामले में राहुल की मां को घसीट लिया) लेकिन राहुल बाबा 15 मिनट बोल देते तो क़सम कलकत्ते की क़यामत उसी रोज़ आ जाती....
क़यामत भी नेताओ और माशूकाओँ की तरह धोखेबाज़ है. मौसम विभाग सांत्वना दे रहा है कि रुको बेटा, तूफान अगले तीन घंटे में दिल्ली में आएगा. मौसम बदलेगा. हम सूखे से त्रस्त किसान की तरह आसमान निहारते हैं. कयामत है आते, आते नहीं आती है. वायदा करती है और नहीं आती है.
कई दिनों से टीवी वाले चीख रहे थे, पाकिस्तान से धूल भरी आंधी से, यह उड़ जाएगा. तूफानी बारिश से वह बह जाएगा. मौसम विभाग ने स्कूल बंद करवा दिए, लोगों से घरों में दुबके रहने को कहा. कहा, किसी छोटे पेड़ के नीचे न खड़े हों. टीन-टप्पर का सहारा न लें. मजबूतों की शरण में जाएं. भाई, यह कर्नाटक चुनाव नहीं है कि हम किसी बड़ी पार्टी की ही शरण लें और टीन-टप्पर और पेड़ों जैसी छोटी जेबी पार्टियों से दूर रहें.
मौसम विभाग ने कहा, यह आंधी दूर तलक जाएगी. हम धड़कते दिल से घर से दफ्तर के लिए निकले थे. धड़कते दिल से तेज हवा और धूल का इंतजार कर रहे थे. धड़कते दिल से आसमान में चमकती हुई तेज गरजों और बिजली का इंतजार कर रहे थे, जिसको सुनते ही मचकती हुई प्रेमिका प्रेमियों से लिपट जाती है. और फिर पार्क में दो फूल आपस में टकरा जाते हैं.
ऐसे ही कई फिल्मों में वाक़या होता है कि ओलों वाली बारिश में लड़की भींग जाती है. बेसुध हो जाती है. उसके शरीर को गरमी की जरूरत होती है. कोई उपाय नहीं. कहीं न डॉक्टर न कुछ और मदद. किसी खंडहर में आसरा लिया नायक उसको अपनी देह की गरमी देता है. नतीजतन, कुछ दिनों बाद लड़की गर्भवती हो जाती है. कुछ कार्य-कारण संबंध सरीखा मामला दिखने लगता है. मुख्तसर यह कि हम डरे हुए थे और बड़े एंडवेंचरस से विचार आ रहे थे.
हम भी बड़ी शिद्दत से क़यामत का इंतज़ार कर रहे थे. हम बहुत नजदीक से देखना चाहते थे कि क़यामत आखिर होती कैसी है. सुना था क़यामत के रोज़ क़ब्र से मुरदे उठ खड़े होंगे और सबके पाप-पुण्य का हिसाब-किताब होना है.
फिर मन में बड़े गहन विचार उत्पन्न हुए आखिर क़यामत है क्या... लोगों ने समझाया कि इस के बाद धरती पर सारे लोग खत्म हो जाएंगे. धरती लोगों के रहने लायक नहीं रह जाएगी. एक सवाल अपने आप सेः धरती अभी लोगों के रहने लायक है क्या?
कुछ लोग अपनी महबूबा को क़यामत सरीखा मानते हैं, कुछ अपनी पत्नी को कहते तो शरीक-ए-हयात हैं लेकिन मानते क़यामत ही हैं. पहले पत्नियों वाली बात. बीवी को क़यामत ने मानने वालों के लिए, श्रीमतीजी का जन्मदिन, उनके भाई का जन्मदिन, अपनी शादी की सालगिरह की तारीख़ भूलकर देखिए (यद्यपि हमारा विचार है कि यह तारीख़ भूलने योग्य ही हुआ करती है.) आपके लिए वही तारीख़ क़यामत सरीखी हो जाएगी. उस दिन कायदे से क़यामत बरपा होगा आप पर.
आपकी महबूबा ने फोन पर आपसे कहा, फलां दिन मिलते हैं. किस जगह, किस वक़्त, ये बाद में बताने का वायदा. फिर आप तैयार होना शुरू करते हैं...सिगडी़ पर दिल सेंक रहा हूं, तेरा रास्ता देख रहा हूं, गुनगुनाते हुए...आपकी क़यामत सरीखी महबूबा, जिनकी आंखों, भौंहों, पलकों, अलकों (बाल की लटों) बालों, गालों, गाल पर के तिल, होठों, मुस्कुराहट, गरदन, ठोड़ी, कलाइयों, कलाई के ऊपर के एक और तिल, कमर सबको एक-एक कर आप पहले ही क़यामत बता चुके हैं.
सोमवार को आपने उनके चलने को क़यामत कहा था. मंगलवार को उनकी मुस्कुराहट से क़यामत आई थी. गुरुवार को उऩकी आवाज़ क़यामत सरीखी थी. शुक्रवार को वो क़यामत का पूरा पैकेज लग रही थी. मतलब सर से पैर तक क़यामत ही क़यामत. बहरहाल, आपने तय किया था कि इसी क़यामत से मिलकर क़यामत की घटना को सत्य ही घटित करना...लेकिन असली क़यामत की बारी तो अब आती है.
आप टापते रह जाते हैं. आपके जिगर पर छुरी चल जाती है. लड़को का जिगर प्रायः छुरियों के नीचे ही पड़ा रहता है. आपकी उनने कुछ किया या न किया, आपकी तरफ देखा, नहीं देखा, आपसे समय पूछा, हंसी, नहीं हंसी, आज उनने जीन्स पहनी है, आज उनने सलवार सूट पहना है, आज उन्होंने आपकी तरफ देखा, आज उनने आपकी तरफ देखकर थूका नहीं...आपको वह क़यामत लगेगी. आपके दिल पर छुरियां चल जाएगी.
बहरहाल, ये तो बहुत निजी क़िस्म की क़यामतें हैं. जहां प्रेमिकाएं अपने प्रेमी से फायरब्रिगेड मंगवाने की इल्तिजा करती हों, जहां प्रेमी को प्रेमिका का प्यार हुक्काबार लगे, या तस्वीर को फेविकोल से चिपका लिया जाए वहां बाकी की क़यामतों पर क्या नज़र जाएगी.
पिछले कुछ दिनों से क़यामत से सामना हो रहा है.
जरा उनसे पूछिए जो इन दिनों रेल से उर्दू वाला सफ़र करते हुए अंग्रेजी में भी सफर कर रहे हैं. जिन्ना साहेब के फोटो पर क़यामत बरपा हो रहा है. अभी खबर मिली कि अकबर रोड पर किसी ने महाराणा प्रताप रोड लिख दिया. यह बात और है कि पोस्टर लिखने वाला रोड का हिज्जे नहीं लिख पाया. पर सड़क का नाम अकबर रोड हो या तॉल्सतॉय रोड, महाराणा प्रताप रोड हो या शिवाजी रोड, मर्सिडीज से चलने वाले उस पर उसी तरह स्वैग से चलेंगे, चप्पल घिसने वाले घिसते ही रहेंगे. पैदल.
इन्ना-जिन्ना के चक्कर में हमारी फौज पर गर्व करने वाली सरकार ने नई योजनाओं के लिए मांगे गए बजट में से साढ़े 15 हजार करोड़ कम आवंटन दिए. फौज फटेहाल है. न नए हथियार हैं. पेंशन का बोझ है सो अलग. लेकिन 56 इंच सीने वाली सरकार फौज की झूठी तारीफ तो करता है, बस पैसे नहीं देती. समझने वाले चाहें तो इसे क़यामत समझ सकते हैं. ग़ोकि एक तरफ चिर-शत्रु पाकिस्तान और मौकापरस्त चीन ने हमला कर दिया तो जिन्ना की तस्वीर लेकर खड़े होने से भी पाकिस्तान नहीं मानने वाला.
इधर, राहुल गांधी बोलते भए कि अगर कांग्रेस को बहुमत आ गया (चिचा, यही तो शाश्वत प्रश्न है) तो वह प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं. राहुल भिया, यह सवाल क़यामत भरा ही है. मैं तो कहता हूं अगर मेरी पार्टी को बहुमत आ गया तो हम भी पीएम बन के ही मानेंगे.
वैसे प्रधानमंत्री भी कमाल हैं, राहुल को ललकारा उन्होंने की बिना कागज 15 मिनट बोल के दिखाएं (क़यामत यह कि इस मामले में राहुल की मां को घसीट लिया) लेकिन राहुल बाबा 15 मिनट बोल देते तो क़सम कलकत्ते की क़यामत उसी रोज़ आ जाती....
क़यामत भी नेताओ और माशूकाओँ की तरह धोखेबाज़ है. मौसम विभाग सांत्वना दे रहा है कि रुको बेटा, तूफान अगले तीन घंटे में दिल्ली में आएगा. मौसम बदलेगा. हम सूखे से त्रस्त किसान की तरह आसमान निहारते हैं. कयामत है आते, आते नहीं आती है. वायदा करती है और नहीं आती है.
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