झाविमो के नेता बाबूलाल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं. भाजपा छोड़ने के बाद उन्हें कुछेक सियासी कामयाबियां जरूर मिलीं पर 2009 के बाद से उन्होंने एक भी चुनाव नहीं जीता है. चार चुनावों में लगातार पराजय का मुंह देख चुके मरांडी के लिए झारखंड विधानसभा का यह चुनाव करो या मरो जैसी स्थिति है
झारखंड (Jharkhand) जब बिहार से अलग हुआ था तो पहले मुख्यमंत्री बने थे बाबूलाल मरांडी (babulal Marandi). तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bhartiya Janata Party) के वे झारखंड (Jharkhand) के कद्दावर नेता माने जाते थे. पर 2006 में उन्होंने गुटबाजी का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी और तब से उके सियासी करियर पर ग्रहण लगना शुरू हो गया है. पिछले दस साल से यानी 2009 के बाद बाबूलाल मरांडी (babulal Marandi) कोई चुनाव नहीं जीत पाये हैं.
मरांडी (babulal Marandi) लगातार चार चुनाव हार चुके हैं. उन्होंने अपना आखिरी चुनाव 2009 में जीता था. तब वे कोडरमा से सांसद चुने गये थे. कोडरमा से 2004 और 2006 के उपचुनाव में जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में वे दुमका चले गये जहां शिबू सोरेन ने उन्हें हरा दिया था.
2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने धनवार और गिरिडीह से परचा दाखिल किया था पर दोनों ही जगह से उनको पराजय का मुंह देखना पड़ा था. 2014 के बाद उनकी पार्टी के छह विधायक टूटकर भाजपा (Bhartiya Janata Party) में शामिल हो गए थे. इससे उनकी पार्टी और छवि दोनों को गहरा धक्का लगा था. लगातार चुनाव हारने से भी मरांडी (babulal Marandi) की छवि कमजोर नेता के तौर पर बनती जा रही है और दिखने लगा है कि अब बाबूलाल मरांडी (babulal Marandi) वह नेता नहीं रहे जो झारखंड (Jharkhand) स्थापना के वक्त थे.
2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कोडरमा से फिर से किस्मत आजमाई पर भाजपा (Bhartiya Janata Party) की अन्नपूर्णा देवी ने उन्हें करारी शिकस्त दी थी. और इस बार यानी 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में भी उनके लिए मुकाबला कोई बहुत आसान नहीं है.
झारखंड (Jharkhand) के गिरिडीह जिले के राजधनवार विधानसभा क्षेत्र में इस बार झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी (babulal Marandi) की प्रतिष्ठा दांव पर है. इस सीट पर उन्हें तीन मजबूत उम्मीदवारों से चुनौती मिल रही है. इन चुनौतियों को देखकर सवाल पूछा जा रहा है कि क्या बाबूलाल मरांडी को इस बार चुनावी जीत मिल पाएगी? यहां 12 दिसम्बर को मतदान होना है.
अब बाबूलाल मरांडी के सामने अपने राजनीतिक कद को बरकरार रखने के साथ ही अपनी पार्टी झाविमो का अस्तित्व कायम रखने की भी चुनौती है. इस कारण यहां का मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है, जिस पर पूरे राज्य की नजर है.
राजधनवार सीट पर अभी तक जो स्थिति उभरकर सामने आई है, उसके मुताबिक इस बार इस क्षेत्र में मुख्य मुकाबला झाविमो के मरांडी और भाकपा (माले) के मौजूदा विधायक राजकुमार यादव के बीच माना जा रहा है. परंतु भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (Bhartiya Janata Party) के लक्ष्मण प्रसाद सिंह, निर्दलीय अनूप सौंथालिया और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के निजामुद्दीन अंसारी इस मुकाबले को बहुकोणीय बनाने में पूरा जोर लगाए हुए हैं.
मरांडी को इस इलाके में 2014 के विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में हार का सामना करना पड़ा था. भाजपा (Bhartiya Janata Party) ने वर्ष 2014 के तीसरे स्थान पर रहे पूर्व पुलिस अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद सिंह को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है, जबकि झामुमो ने निजामुद्दीन अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया है. भाकपा (माले) की ओर से मौजूदा विधायक राजकुमार यादव एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव (Jharkhand Assembly Election) में राजकुमार ने मरांडी को 10 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था. असल में, राजधनवार ऐसी सीट है, जिस पर जातीय समीकरण को साधना बेहद अहम है. इस सीट पर यादव, मुस्लिम और भूमिहार के मतदाता यहां निर्णायक साबित होते हैं.
इस चुनाव में इस क्षेत्र में कुल 14 प्रत्याशी हैं. लेकिन चुनाव झाविमो, झामुमो, भाजपा, भाकपा (माले) और निर्दलीय अनूप सौंथालिया को ही जानकार प्रमुख उम्मीदवारों में गिन रहे हैं.
क्षेत्र में सभी प्रमुख उम्मीदवारों की पकड़ अलग-अलग क्षेत्रों में है. आइएएनएस के मुताबिक, इस विधानसभा क्षेत्र में गांवा इलाके में भाकपा (माले) के प्रत्याशी की चर्चा अधिक है तो तिसरी में झाविमो, धनवार बाजार और धनवार ग्रामीण में भाजपा, झामुमो और निर्दलीय अनूप सौंथालिया की चर्चा सर्वाधिक है.
झाविमो के प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी आइएएनएस से कहते हैं कि "इस क्षेत्र में विकास कार्य पूरी तरह ठप है. आज भी लोग पानी, सड़क, बिजली और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे हैं. ऐसे में जनता सब देख रही है और चुनाव में जवाब देगी."
लेकिन मौजूदा विधायक राजकुमार यादव जीत का दावा करते हैं. उनका कहना है कि पंचायतों और गांवों में किसानों के लिए तालाब बनाए गए हैं और गांवों में बिजली पहुंचाई गई है. सड़कें बनी हैं. उन्होंने हालांकि यह भी माना कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है.
***
No comments:
Post a Comment