कहानीः दोमुंह वाली चिरैया
#एकदा #टाइममशीन
कथाकारः मंजीत ठाकुर
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"एक ठो चिरैया रही, कुछ खास किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया.
छोटा वाला पोता गोरा लकदक था, बड़ा वाला थोड़ा सांवला और दुबला-पतला, दादी की नजर में जरा अनाकर्षक-सा. सो दादी ही नहीं, उन बच्चों का बाप भी दोनों में थोड़़ा फर्क कर ही जाता था.
"फिर क्या हुआ दादी..." गोरेवाले ने लाड़ से पूछा.
दादी ने आगे सुनाया, "फिर? चिरैया के दोनों आपस में झगड़ते रहते. लेकिन एक दिन पहले वाले सिर को एक ठो बहुत स्वादिष्ट फल मिला...दूसरेवाले सिर ने उससे फल मांगा और कहा जरा यह मुझे भी तो दो, देखें कैसा हा इसका जायका! लेकिन पहले वाला सिर अकड़़ में आ गया, उसने दूसरे वाले को नहीं दिया और अकेला ही सारा खा गया. दूसरा वाला मुंह पहले वाला का मुंह देखता रह गया. और एक दिन दूसरेवाले मुंह को मिला एक बहुत ही जहरीला फल..."
"फिर क्या हुआ दादी...".सांवले पोते ने पूछा.
दादी कुछ कहती इससे पहले पापा जी आए और चॉकलेट का पैकेट दादी की गोद में बैठे गोरेवाले बेटे को थमा दिया, हिदायत भी दीः "भाई को भी देना."
गोरेवाले ने भाई वाली बात गोल कर दी और चॉकलेट का रैपर फाड़ लिया और दादी से कहानी आगे बढ़ाने को कहा, "दादी उस जहरीले फल का क्या किया चिड़िया के दूसरे मुंह ने? बताओ न फिर क्या हुआ?"
"फिर क्या हुआ के बच्चे, आधा चॉकलेट मुझे देता है या नहीं?" सांवला बच्चा क्रोध से चिल्लाया.
"नहीं दूंगा, नहीं दूंगा, नहीं दूंगा." गोरा अकड़ गया.
"देख लेना फिर..." सांवला बच्चा बिस्तर से उठकर बारामदे में चला गया. दादी ने किस्सा पूरा किया "...और फिर गुस्से में आए भारुंड चिरैया के दूसरे मुंह ने ज़हरीला फल खा लिया."
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#एकदा #टाइममशीन
कथाकारः मंजीत ठाकुर
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"एक ठो चिरैया रही, कुछ खास किसिम की रही. उसका पेट तो एक्कै ठो था लेकिन उसका मुंह था दो. समझ लो कि दोमुंही रही ऊ चिरैया... उस चिरैया का नाम था भारुंड..." रात को सोते समय दादी ने दो पोतों को किस्सा सुनाना शुरू किया.
छोटा वाला पोता गोरा लकदक था, बड़ा वाला थोड़ा सांवला और दुबला-पतला, दादी की नजर में जरा अनाकर्षक-सा. सो दादी ही नहीं, उन बच्चों का बाप भी दोनों में थोड़़ा फर्क कर ही जाता था.
"फिर क्या हुआ दादी..." गोरेवाले ने लाड़ से पूछा.
दादी ने आगे सुनाया, "फिर? चिरैया के दोनों आपस में झगड़ते रहते. लेकिन एक दिन पहले वाले सिर को एक ठो बहुत स्वादिष्ट फल मिला...दूसरेवाले सिर ने उससे फल मांगा और कहा जरा यह मुझे भी तो दो, देखें कैसा हा इसका जायका! लेकिन पहले वाला सिर अकड़़ में आ गया, उसने दूसरे वाले को नहीं दिया और अकेला ही सारा खा गया. दूसरा वाला मुंह पहले वाला का मुंह देखता रह गया. और एक दिन दूसरेवाले मुंह को मिला एक बहुत ही जहरीला फल..."
"फिर क्या हुआ दादी...".सांवले पोते ने पूछा.
दादी कुछ कहती इससे पहले पापा जी आए और चॉकलेट का पैकेट दादी की गोद में बैठे गोरेवाले बेटे को थमा दिया, हिदायत भी दीः "भाई को भी देना."
गोरेवाले ने भाई वाली बात गोल कर दी और चॉकलेट का रैपर फाड़ लिया और दादी से कहानी आगे बढ़ाने को कहा, "दादी उस जहरीले फल का क्या किया चिड़िया के दूसरे मुंह ने? बताओ न फिर क्या हुआ?"
"फिर क्या हुआ के बच्चे, आधा चॉकलेट मुझे देता है या नहीं?" सांवला बच्चा क्रोध से चिल्लाया.
"नहीं दूंगा, नहीं दूंगा, नहीं दूंगा." गोरा अकड़ गया.
"देख लेना फिर..." सांवला बच्चा बिस्तर से उठकर बारामदे में चला गया. दादी ने किस्सा पूरा किया "...और फिर गुस्से में आए भारुंड चिरैया के दूसरे मुंह ने ज़हरीला फल खा लिया."
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3 comments:
बहुत सुन्दर रोचक कहानी...
यही भेदभाव बच्चों के मन में जहर उगलता है।
यही बात आज के समय में लागु होती है.
आगर परिवार का एक सदस्य बाहर निकलता है तो उसे रोकना चाहिए बाकि दूसरों को अगर ऐसा नहीं हैं तो फिर हर कोई अपने साथ साथ दुसरे को भी मार देगा.
हम कोई भी अलग नहीं है.
हमारी जड़ें एक है किसी एक की गलती से सभ्यता रूपी दरख्त सूख सकता है.
मेरे ब्लॉग तक भी आइयेगा-
नई रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु इस माह की चुनी गईं नौ श्रेष्ठ रचनाओं के अंतर्गत नामित की गयी है। )
'बुधवार' २२ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post_22.html
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
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