आज ट्विटर पर मधुबनी के किसी मित्र ने वहां के एक छोटे शहर सकरी के रामशिला अस्पताल के सामने मौजूद भीड़ की चार तस्वीरें चस्पां करते हुए लिखा है, “ये हालात हैं रामशिला हॉस्पिटल, सकरी मधुबनी के बाहर, हॉस्पिटल प्रशासन कह रहा है कि ऑक्सीजन ख़त्म हो गया है. आज का ऑक्सीजन बाकी है कल के लिए कुछ नहीं है. कृपया मदद करें बहुत लोगों की ज़िंदगी का सवाल है.”
बिहार में 4 मई, 2021 को कोविड संक्रमणों की सरकारी संख्या 14,794 थी. ठीक एक महीना पहले 4 अप्रैल, 2021 को यह संख्या 864 थी. महीने भर में सोलह गुना वृद्धि कैसे हुई? वह भी तब, जब टेस्ट कौन करा रहा है, कितने टेस्ट हो रहे हैं और टेस्ट से निकले नतीजे कितने भरोसेमंद हैं इसपर गहरा शक है. असल में, कुछ साल हुए जब न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने कहा था कि हिंदुस्तान के 90 फीसद लोग मूर्ख हैं, तो जनता तिलमिला गई थी. पर न्यायमूर्ति सही थे.
पूरे हिंदुस्तान की जनता काटजू साहब के मूर्खता के तराजू पर खरी उतरती है या नहीं, यह तो नहीं पता, लेकिन मेरा गृहराज्य बिहार खरा उतरता है. पिछले डेढ़ दो महीनों में बिहार में सब कुछ हुआ है. जो-जो मुमकिन उत्सव हो सकते हैं. सब कुछ. सारे मांगलिक कार्य, जिसका नतीजा अमंगल में निकलना था. पिछले दो महीनों से प्रवासी बिहारी (सफेद और नीले कमीज पहनने वाले, दोनों) भेड़ियाधंसान करते हुए बिहार भाग रहे थे.
किसी के घर में मुंडन था, किसी के जनेऊ, कहीं भाई का ब्याह था, कहीं बहिन के हाथ पीले होने थे. कोई इसरार कर रहा था कि तुम्हारे बिना कैसे मुमकिन होगा, कोई कह रहा था कि तुम्हारी भांजी का ब्याह है, बारात कौन संभालेगा. एक मित्र ने मुझसे कहा कि उसके भाई का ब्याह है, अब तो दरभंगा में हवाई जहाज भी उतरने लगा है, सीधे आओ, मुजफ्फरपुर तक कार से आकर पार्टी में शामिल हो जाओ और फिर वापस. मेरे खुद के परिवार में विवाह था. मैंने एक सुर से विनम्रता से सबको मना किया, कुछ लोगों ने मुझ पर लानतें भेजीं, पर अधिकतर ने मुझसे रिश्ता तोड़ लिया.
यह सिर्फ मेरी बात नहीं है. आप सबके साथ, जिन्होंने कोविड प्रोटोकॉल का पालन अपने लिए, और देश के लिए किया होगा, ऐसा सहना पड़ा होगा. लेकिन खासतौर पर बिहार में शादी-ब्याह के न्यौतों में शामिल होने का न सिर्फ इसरार किया जा रहा है (अभी भी) बल्कि बाकायदा धमकी तक दी जा रही है उससे तो यही लगता है कि जनता वाकई भांग पीकर बैठी है.
मेरे एक वरिष्ठ राज झा, जो मशहूर विज्ञापन निर्माता हैं और एक साथी किसान-पत्रकार गिरीन्द्रनाथ झा हैं. राज झा मधुबनी के पास और गिरीन्द्र पूर्णिया के पास रहते हैं. उन दोनों ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए बताया कि बिहार के लोग, कोरोना के प्रसार से जरा भी चिंतित नहीं हैं. बारातें निकल रही हैं, डीजे तेज आवाज में ढिंचक बज रहा है और भोज-भात पूरे शबाब पर है. बिहार में जिसतरह से कोरोना को लेकर लोग लापरवाह रहे हैं, उससे यक्ष-युधिष्ठिर वार्ता में यक्ष का प्रश्न याद आता है.
यक्ष ने पूछा था, आश्चर्य क्या है?
युधिष्ठिर ने कहा, लोग रोज अपने आसपास दूसरों को मरते देखते हैं, पर वह यह कभी नहीं सोचते कि कभी वह भी मर सकते हैं, यही आश्चर्य है.
लोग भले ही यह न सोचें कि कोरोना का संकट कितना गहरा हो सकता है, और उनकी यादद्दाश्त भी इतनी कमजोर है कि पिछले साल इन्हीं दिनों जब कोरोना की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगा था तो लोगों को सड़को पर पैदल चलते हुए अपने घर लौटना पड़ा था. उन दर्दनाक तस्वीरों में सबसे ज्यादा पैदल प्रवासी बिहार के ही थे. पिछले साल का दर्दनाक मंजर बिहार भूल गया पर शायद वहां की सरकार वहां लोगों से अधिक संवेदनशील साबित हुई है. कम से कम इस बार तो जरूर.
लॉकडाउन की तैयारियों के ही मद्देनजर शायद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रवासियों को जल्दी लौट आने का आग्रह किया और एक ओर जहां, मिथिला, मगध और भोजपुर में ब्याह की शहनाइयां गूंज रही थी, स्पीकर फटने की हद तक डीजे का वॉल्यूम बढ़ा हुआ था, सरकार ने 15 मई तक लॉकडाउन की घोषणा कर दी है.
सच में, बिहार में लोगों ने ‘कोरोना आश्चर्य’ पेश किया है. मैंने मधुबनी जिले में जयनगर के पास दुल्लीपट्टी गांव के एक मित्र को जब फोन पर कहा कि सावधानी जरूरी है, क्योंकि बीमार पड़े तो बिहार में खस्ता स्वास्थ्य सुविधाओं के मद्देनजर ऑक्सीजन भी नहीं मिलेगा. पर दोस्त आत्मविश्वास से लबरेज थे. उन्होंने मुझे फौरन जवाब दिया कि बिहार में ऑक्सीजन की जरा भी कमी नहीं है. आपको कितना ऑक्सीजन चाहिए भला! आइए हमारे गांव... आम की गाछी (अमराई) में ऑक्सीजन ही ऑक्सीजन है.
न्यायमूर्ति काटजू वाकई आप सही थे. क्योंकि कम से कम बिहार निवासियों को यही लगता है कि दुनिया में जीवन से भी आवश्यक अपने चचेरे भाई के सबसे छोटे बेटे का मुंडन है.
4 comments:
ना-ना सिर्फ बिहार ही इसका श्रेय नहीं ले सकता ! ऐसी हस्तियां देश भर में नौजूद हैं ! आए दिन दिल्ली में कभी हुक्का बार कभी देर रात की पार्टियां कभी यूँ ही बंद का ''जायजा" लेने घूमते लोग कानून के हत्थे चढ़ते रहते हैं ! किसी ने ठीक ही कहा है कि यदि लॉकडाउन में बाहर निकले हुए को हाथी के पैरों तले कुचलवाने का फरमान जारी हो जाए तो भी कुछ लोग हाथी कितना बड़ा है यह देखने बाहर आ चले आएंगे !!
बिहार ही अकेले इसका श्रेय क्यों ले ? काटजू साहब ने तो पूरे देश के लिए कहा था ।
पूरा चित्र खींच दिया । कोई सुधरने वाला नहीं ।
ये हाल पूरे देश का है। जिनके परिवारों के किसी व्यक्ति को इस कोरोना ने खाया है वो शायद थोड़ा सजग हों, शायद इसलिए कह रहा हूँ कि कई जगह वो भी सजग नहीं हैं, परन्तु ज्यदातर लोग इसे लेकर लापरवाह हैं। मास्क भी वो इसलिए नहीं पहन रहे कि वह बचाव करेगा बस इसलिए पहन रहे हैं ताकि चलान न कटे।
पूरे सालभर सीनियर बच्चन जी हरेक के कॉलर ट्यून में मास्क और दो गज की दूरी पर निरंतर भाषण देते रहे तो लोगों ने लानतें भेजीं, मास्क फेंके और भीड जमाए रहे नतीजा हुआ लॉकडाउन. काटजू सही हैं, पर वे भी भारतीय हैं यह भी सही है!
Post a Comment