आज की तारीख में हिंदुस्तान कोरोना वायरस से बहुत अधिक त्रस्त है और पिछले साल फरवरी–मार्च में जब कोरोना का प्रसार शुरू ही हुआ था तब लोगों ने—जिन्होंने विज्ञान या कृषि विज्ञान नहीं पढ़ा था—एक नया शब्द सुना थाः क्वॉरंटाइन या गाढ़ी हिंदी में जिसका अनुवाद था संगरोध.
वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्वॉरंटाइन करने को सबसे अच्छा तरीका माना गया है और दुनियाभर में और भारत में भी जो लॉकडाउन लगाया गया है, वह भी क्वॉरंटाइन का सामूहिक तरीका ही है. यानी, इसके पीछे अवधारणा है लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए एक-दूसरे से अलग-थलग रखना. आपको हैरत होगी कि इस तरीके की खोज की थी, एक मुस्लिम वैज्ञानिक ने और उनका नाम है इब्न सिना.
पश्चिमी देशों में मध्यकाल के इस मुस्लिम वैज्ञानिक को एविशियेना (Avicenna) के नाम से जाना जाता है और उनका समय 980 ईस्वी से 1037 ईस्वी तक का माना जाता है. इनका जन्म बुखारा के पास अफसां में हुआ था और इनका निधन हमदां में हुआ था. इनके माता-पिता ईरानी वंश के थे. इनके पिता खरमैत: के शासक थे. इब्न सिना ने बुखारा में शिक्षा हासिल की और शुरू में कुरान और साहित्य का अध्ययन किया.
इब्न सिना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सिना है. इब्न सिना न सिर्फ वैज्ञानिक थे, बल्कि यह चिकित्सक, खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और दार्शनिक भी थे.
उनकी गणित पर लिखी 6 पुस्तकें मौजूद हैं जिनमें ‘रिसाला अल-जराविया’, ‘मुख्तसर अक्लिद्स’, ‘अला रत्मातैकी’, ‘मुख़्तसर इल्म-उल-हिय’, ‘मुख्तसर मुजस्ता’, ‘रिसाला फी बयान अला कयाम अल-अर्ज़ फी वास्तिससमा’ (जमीन की आसमान के बीच रहने की स्थिति का बयान) शामिल हैं.
असल में, आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में, जिसे यूरोप ने अपनाया और फिर विकसित किया, इब्न सिना का योगदान बेहद अहम है.
ये इस्लाम के बड़े विचारकों में से थे, इब्न सिना ने 10 साल की उम्र में ही कुरआन हिफ्ज़ कर लिया था. शरिया के अध्ययन के बाद इन्होंने तर्कशास्त्र, गणित, रेखागणित और ज्योतिष में योग्यता हासिल की. जल्दी ही, इन्होंने निजी अध्ययन से भौतिकी और चिकित्सा की पढ़ाई की और हकीमी सीखते हुए ही उसकी प्रैक्टिस भी शुरू कर दी.
एक बार जब बुखारा के सुल्तान नूह इब्न मंसूर बीमार हो गए और उनके इलाज में किसी हकीम की कोई दवा कारगर साबित नहीं हो रही थी, तब इब्न सिना ने उनका इलाज किया था. और उस वक्त उनकी उम्र महज 18 साल की थी.
बहरहाल, इब्न सिना की दवाई से सुल्तान इब्न मंसूर स्वस्थ हो गए तो उन्होंने खुश होकर इब्न सिना को पुरस्कार दिया. और यह पुरस्कार भी खास था. सुल्तान ने उन्हें एक पुस्तकालय सौगात में दिया था. इब्न सिना की स्मरण शक्ति बहुत तेज़ .थी उन्होंने जल्द ही पूरा पुस्तकालय छान मारा और जरूरी जानकारी एकत्र कर ली, और फिर 21 साल की उम्र में अपनी पहली किताब लिखी.
जानकारों का मानना है कि इब्न सिना ने कुल 21 बड़ी और 24 छोटी किताबें लिखी थीं. लेकिन कुछ विद्वानों का दावा है कि उन्होंने 99 किताबों की रचना की.
बिला शक उनकी सबसे मशहूर किताब है ‘किताब अल कानून’, जो चिकित्सा की एक मशहूर किताब है. इस किताब का अनुवाद अन्य भाषाओं में भी हो चुका है. खास बात यह है कि उनकी यह किताब 19वीं सदी के अंत तक यूरोप के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती रही है.
इन्होंने कई बड़ी पुस्तकें लिखीं जिनमें अधिकतर अरबी में और कुछ फारसी में थीं. इनमें खासतौर पर दर्शन कोश 'किताबुल् शफ़ा', जो 1313 ई. में तेहरान से छपा था, और हकीमी पर लिखा ग्रंथ 'अलक़ानून फीउल् तिब' है जो 1284 ई. में तेहरान से छपा था. 'किताबुल् शफ़ा' अरस्तू के विचारों पर केंद्रित है, जो नव अफ़लातूनी विचारों तथा इस्लामी धर्म के प्रभाव से संशोधित हो गए थे. इसमें संगीत की भी व्याख्या है. इस ग्रंथ के 18 खंड हैं और इसे पूरा करने में 20 महीने लगे थे.
'अल्क़ानून फीउल् तिब' में यूनानी तथा अरबी वैद्यकों का अंतिम निचोड़ पेश किया गया है. इनका एक कसीदा बहुत प्रसिद्ध है जिसमें इन्होंने आत्मा के उच्च लोक से मानव शरीर में उतरने का वर्णन किया है. मंतिक (तर्क या न्याय) में इनकी श्रेष्ठ रचना 'किताबुल् इशारात व अल्शबीहात' है.
इन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी जिसका संकलन इनके प्रिय शिष्य अल्जुर्जानी ने किया.
इब्न सिना के नाम पर कई यूरोपीय देशों में उके नाम से डाक टिकट जारी किये गए हैं. इब्न सिना के जीवन पर पर एक फिल्म भी बनी. 2013 में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम था ‘द फिजिशियन’ और इसमें इब्न सिना का किरदार निभाया था हॉलीवुड के मशहूर अदाकार बेन किंग्सले ने.
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