शख्सियत । हेमंत विस्व सरमा
मंजीत ठाकुर
बहुत साल हुए, हेमंत विस्व सरमा ने एक असमिया फिल्म में बाल कलाकार के तौर पर अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी. अभिनेता वाला कैरियर उतना नहीं चला, पर बतौर नेता हेमंत विस्व सरमा वाकई पूर्वोत्तर के चाणक्य की भूमिका में मशहूर हो गए हैं और 10 मई, 2021 सोमवार की दुफहरिया में उन्होंने असम के मुख्यमंत्री का ताज भी पहन ही लिया.
हेमंत विस्व सरमा इसकी तलाश में न जाने कब से थे.
असम के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की है. पिछली बार असम की कुरसी केंद्र से असम भेजे गए सर्बानंद सोनोवाल को मिल गई थी और इस बार यह पद मिला सरमा को. सोनोवाल और सरमा के बीच सियासी तनातनी बनी रहेगी और दोनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा पुरानी है, तब से, जब दोनों ही 1980 के दशक में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सदस्य थे.
बहरहाल, 23 अगस्त, 2015 को जब तिवा स्वायत्त परिषद में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन वाले नतीजे एक दिन पहले ही आए थे और सरमा ने ट्वीट करके कांग्रेस को बधाई दी, उस समय तक किसी को यह इल्म नहीं था कि सरमा भाजपा में शामिल होने वाले थे. क्षेत्रीय न्यूज चैनलो में भी खबर यही चल रही थी कि भाजपा के असम प्रदेश अध्यक्ष सिद्धार्थ भट्टाचार्य पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से शाम में मिलेंगे और कयास लगाए गए कि भट्टाचार्य अपना इस्तीफा सौंपेंगे.
लेकिन कहानी दूसरी थी.
उसी शाम हेमंत विस्व सरमा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. यह हैरतअंगेज था क्योंकि लंबे अरसे तक सरमा असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के दाहिने हाथ माने जाते थे और जानकारों का मानना है कि 2011 में असम में कांग्रेस की जीत की रणनीति खुद सरमा ने तैयार की थी. सरमा को शायद गोगोई के बाद मुख्यमंत्री की कुरसी मिलने की उम्मीद थी.
पर, तरुण गोगोई शायद वंशवाद में यकीन रखते थे और उन्होंने अपने बेटे गौरव गोगोई को बतौर वारिस पेश किया तो सरमा का संयम टूट गया. बाद में, सरमा ने मीडिया के सामने इंटरव्यू में कहा कि वह जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने पहुंचे थे तो कांग्रेस नेता का ध्यान उनसे अधिक अपने कुत्ते पर था. असल में, अपने सियासी उस्ताद तरुण गोगोई से सरमा की तनातनी चार साल से अधिक समय तक चली थी और उस जंग में राहुल गांधी ने गोगोई का पक्ष लिया था और सरमा उसी बाबत गांधी से बात करने आए थे. सरमा ने खुद ट्वीट करके यह बताया था कि जब कांग्रेस उपाध्यक्ष (राहुल गांधी) के साथ असम के अहम मसलों पर वह बातचीत चाहते थे, उस वक्त राहुल अपने पालतू कुत्ते को बिस्किट खिलाने में व्यस्त थे.
उस वक्त की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, असम के सात में से छह भाजपा सांसद सरमा को पार्टी में लाने के खिलाफ थे. तो फिर नेतृत्व कैसे तैयार हुआ?
क्योंकि भाजपा नेतृत्व को सरमा के रणनीतिक कौशल पर पूरा भरोसा हो गया था. सरमा के पास गजब का राजनैतिक प्रबंधन और चुनावी कारीगरी तो है ही, सूबे भर में उनकी लोकप्रियता भी है. असल में, भाजपा नेतृत्व जानता था कि 2010 और 2014 में असम राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में भाजपा विधायकों की तरफ से सरमा ने ही क्रॉस वोटिंग करवाई थी. भाजपा अब इस कारीगरी का अपने लिए इस्तेमाल करना चाहती थी.
2006 से 2014 के बीच स्वास्थ्य मंत्री के रूप में जालुकबारी से तीन बार विधायक रहे सरमा ने कई लोकप्रिय कदम उठाए, जिनमें 24 घंटे की एंबुलेंस सेवा और ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टरों की मौजूदगी की अनिवार्यता शामिल थे. इसी तरह 2011 से 2014 तक शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने स्कूली शिक्षकों की भर्ती की एक पारदर्शी प्रक्रिया पेश की जिसकी परिणति लगभग दो लाख नई भर्तियों में हुई.
जाहिर है, सरमा की इस लोकप्रियता से गौरव गोगोई असुरक्षित महसूस करने लगे थे. इस बार असम की 126 विधानसभा सीटों में भाजपा ने 75 सीटों पर जीत हासिल की है और हेमंत विस्व सरमा ने जालुकबाड़ी सीट पर लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज की है.
हेमंत विस्वा सरमा 1990 के दशक में कांग्रेस में शामिल हुए थे और 2001 में पहली बार उन्होंने गुवाहाटी के जालुकबाड़ी से चुनाव लड़ा. उन्होंने यहां असम गण परिषद के नेता भृगु कुमार फुकन को हराया और उसके बाद से इस सीट पर सरमा अजेय बने हुए हैं.
कांग्रेस में रहते हुए सरमा ने शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, कृषि, योजना और विकास, पीडब्ल्यूडी और वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का काम संभाला है.
बहरहाल, सरमा का भाजपा में आना पूर्वोत्तर में उसके लिए भाग्योदय जैसा हुआ है. सरमा के पास न सिर्फ असम की, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर की अच्छी समझ है. वह बीते 19 साल से सरकार में मंत्री रहे हैं इसलिए उनके पास प्रशासन का भी अगाध अनुभव है.
असल में मुख्यमंत्री बदले जाएंगे इसका आभास तो तभी हो गया था, जब भाजपा ने चुनाव से पहले अपने मुख्यमंत्री पद उम्मीदवार की घोषणा नहीं की थी. आमतौर पर भाजपा अपने सत्तासीन राज्यों में ऐसा नहीं करती.
बहरहाल, हेमंत विस्व सरमा की कहानी में वह मंजिल आ ही गई जिसके लिए उन्होंने गोगोई पिता-पुत्र के खिलाफ बगावत की थी. जानकार बताते हैं कि 23 अगस्त को भाजपा में सरमा के शामिल होने के बाद राहुल गांधी ने बजरिए अहमद पटेल अपना निजी फोन नंबर सरमा को भिजवाया था. राहुल गांधी को सरमा ने फोन नहीं किया, क्योंकि सरमा का सिद्धांत है, पलटकर नहीं देखना.
असम कांग्रेस वाकई सरमा को खोकर पछता रही होगी.
3 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-05-2021को चर्चा – 4,078 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
असम का विकास ही एकमात्र लक्ष्य है जिनका वे किसी भी पार्टी में रहें अपना काम करते रहते हैं
जानकारी युक्त सुंदर पोस्ट।
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