Monday, March 17, 2008

बीकानेर की ओर



हमारी टीम को लेकर आई गाड़ी को होटल तक आने में एक घंटे की देर हो गई। इस बीच मैं चार-पांच सिगरेट फूंक चुका था। टीवी पर डीडी का डीटीएच फिट थी, सो मुझे बेहद कम चैनल ही मगजमारी के लिए उपलब्ध थे। बहरहाल, नीचे गाड़ी का भोंपू बजा।

टीम के ज्यादातर सदस्य पचास की उम्र की आसपास के थे, और अपनी उम्र के उस दौर में थे, जिसे टायर और रिटायर होने की उम्र कहा जाता है। मैं थोड़ा निराश हुआ, लेकिन ड्राईवर युवा था.। बहरहाल, मुझे लगता रहा है कि अनुभवों के बावजूद पुराने लोग (डीडी के) काम करने में हेठी समझते हैं। लेकिन मेरे इस भ्रम का बाद में निवारण हुआ।

हमारी गाडी़ अभी अपने पूरे रफ्तार पर थी, हम जयपुर से सौ किलोमीटर आगे निकल चुके थे। थार की निशानियां दीखने लगीं थीं। रेत के टीलों के बीच खेत झांक रहे थे। ये पूरा इलाका बबूल और कंटीली झाडि़यों से भरा पड़ा है।

रास्ते में हम सीकर में चाय पीने के लिए रूके। एक खास डाबे पर जाकर ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। चाय अच्छी बनी थी, धुं के साथ थकान उड गई। आगे बढ़े। पेड़ों का बौनापन बढता गया। कंटीली झाडियों की आमद ज्यादा हो गई थी। साथियों ने राह में मुझे खेजड़ी के पेड़ भी दिखाए। खेजड़ी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों का ऐसा पेड़ है, जिसके लगभग हर हिस्से का इस्तेमाल यहां के लोग कर लेते हैं। कमाल का पेड़ है खेजड़ी भी।

बीकानेर पहुंचते-पहुंचते देर हो गई। दोपहर चढ़ आया था। हम सीधे महाराजा करणी सिंहग स्टेडियम चले गए। राह में दीदार हुआ जूनागढ़ किला का। दूर से भव्य किले को जी-भर देखा.. लाल बलुआ पत्थर से बना किला बेहद खूबसूरत है।

बीकानेर.... पश्चिमी राजस्थान का एक रेगिस्तानी शहर.... जो राजपूताने के शाही गौरव का गवाह रहा है। यहां की जीवन शैली और खान-पान में राजस्थान की तहज़ीब की पूरी झलक मिलती है। बीकानेर के रूप में ये शहर सन 1488 में बसाया गया, जब जोधपुर के राजकुमार राव बीकाजी ने 1465 के आसपास इसके आसपास के इलाके को जीत लिया। मुग़ल काल से लेकर अंग्रेजी शासनकाल तक बीकानेर रियासत की अहमियत भारतीय परिदृश्य में बनी रही।

आज़ादी के बाद इस रियासत का भारत मे विलय हो गया। पूरी रियासत चार ज़िलों के रूप में भारत का हिस्सा हैं। लेकिन शहर की स्थापना के बहुत पहले से यह जगह आबाद रही है, जिसके तार सिंधु-सरस्वती सभ्यता तक जाते हैं।

जारी

2 comments:

अनिल रघुराज said...

यात्रा संस्मरण में भरपूर प्रवाह है। बस लगता है कि कहीं-कहीं रुक लिया करें। जैसे, खेजड़ी के पेड़ के बारे में थोड़ा विस्तार से बता देते। लाल बलुआ पत्थर से बने जूनागढ़ किले का थोड़ा और दीदार हो जाता...
फिर भी अच्छा है। आपके साथ मरुभूमि की यात्रा हो रही है पहली बार।

Abhishek Ojha said...

अच्छा वर्णन पर तस्वीरों की कमी खली.