शास्त्रीय संगीत की हिंदुस्तानी शैली में जीवित किंवदंती बन चुके भीम सेन जोशी भारत रत्न से सम्मानित किए जाएंगे। उनक आवाज़ की गहराई और उतार-चढाव के बारे में कुछ कहना सूर्य को दीया दिखाने जैसा है। दरअसल जोशी जी खुद में गायन शैली के एक स्कूल बन चुके हैं। भारत रत्न सम्मान किसी भी शख्सियत को सात साल के बाद दिया जा रहा है। इससे पहले ये पुरस्कार 2001 में लता मंगेशकर और उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान को दिया गया था।
पंडित जी को इससे पहले 1999 में पद्म विभूषण, 1985 में पद्म भूषण और 1972 में ही पद्म श्री से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें संगीत-नाटक अकादमी पुरस्कार भी दिया जा चुका है। लेकिन भीम सैन जोशी जी को जनता का जो प्यार मिला है, यह अनूठा ही है। 1922 में कर्नाटक के गदग में जन्मे भीम सैन जोशी किराना घराने के शिष्य रहे है। पंडित जी किराना घराने के गायिकी के अंदाज़ को अपनी शैली का पुट देकर और समृद्ध किया।
जोशी जी ने अपनी गायन शैली में दूसरे घरानों की खूबियां भी अपनाई और उन्हें और मांजकर और रागों में मिलाकर नए रागों की रचना की। जोशी जी को उनकी खयाल गायिकी के लिए खासतौर पर जाना जाता है, साथ ही उनके भजनों में जो गहराई है कहीं और मिलनी मुश्किल है। 1932 में गुरु की तलाश में घर छोड़ देने वाले जोशी जी दो साल तक उपयुक्त गुरु की तलाश में घूमते रहे। इस दौरान वह बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में घूमते रहे।
आखिरकार उन्हें अपना गुरु मिला और ग्वालियर में उस्ताद हाफिज़ अली ख़ान से उन्होंने गायिकी की दीॿा ली। इसके बाद 1936 में सवाई घराने रामबन कुंडगोलकर से उन्होंने खयाल गायिकी की शिक्षा ली। गदग में उन्होंने सवाई गंधर्व से खयाल गायिकी की बारीकियां सीखीं। 19 साल की ही उम्र में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति दी। उनका पहला अलबम तब आया जब वे महज 20 साल के थे और ये था एक भजनों के रेकॉर्ड। जोशी जी के ही प्रयासों से पुणे में हर साल सवाई गंधर्व संगीत महोत्सव आयोजित किया जाता है।
हमें उम्मीद हैं कि सुर से सुर मिलाने की बात करने वाले इस संगीत सम्राट की बात को देश ध्यान से सुनेगा।
2 comments:
पूरी तरह से वे हक़दार है इस सम्मान के .
सरकार को इस फैसला लेने में काफी देर लगा दी,लेकिन हम कह सकते हैं कि देर से ही सही लेकिन सही फैसला है। भीमसेन जोशी जी सही मायने में इस पुरस्कार के हकदार है.
Post a Comment