Wednesday, March 25, 2009

कुटाई के किस्से-स्वेटर पेड़ पर, हम नीचे

स्कूल से लौटते वक्त रास्ते में एक बागीचा पड़ता था। लड़कियों के स्कूल का पिछला हिस्सा था वह। किसी जज साहब की कोठी थी जो बाद में जज साहब ने मरने के वक्त स्कूल के लिए दान कर दी थी। अंग्रेजो़ के ज़माने में। सो, पिछवाड़े में बेल, बेर, आम, जामुन और कटहल, शरीफे के बहुत सारे पेड़ थे। शीशम, सागवान और बेतरह झाडियां भी।

स्कूल का कुछ हिस्सा खंडहर भी था। बहरहाल, उन्हीं पेड़ो में एक-दो काग़ज़ी बेल भी थे। यानी ऐसे बेल जो कच्चे होने पर भी मीठे लगते और उनके बीज भी कम होते। बीजों में गोंद भी कम होता।

स्कूल आने के दौरान किसी एक दिन की बाद है। जनवरी या फरवरी का महीना था। बेल अपने कच्चेपन मे ही थे। अपने दोस्तों के साथ हम चढ़ गए पेड़ पर। बेल का मजा लिया और पेड़ से उतरने लगे। लेकिन थोड़ी जल्दी में थे। आधी दूर उतरने के बाद लगा, नीचे कूदना ही ठीक रहेगा। बस, हम कूद गए। कमी ये रह गई कि हमारे स्वेटर का हत्था बेस के कांटे में उलझ गया । भाई साहब फिर क्या रहा, स्वेटर का हाथ ऊपर, हम नीचे।

लेकिन इतना होने पर भी, हमने धीरज नहीं खोया। घर पहुंचे.. स्वेटर छिपा दिया। लेकिन अगले दिन फिर स्कूल जाना था, दीदी को स्वेटर मिल नहीं पा रहा था। बिना स्वेटर ही हम स्कूल गए। लेकिन जनाब दिन थे हमारे खराब। दीदी उसी रास्ते से वापस आ रही थीं, हमें स्कूल छोड़कर कि बस उन्हें पेड़ पर टंगा हमारे स्वेटर का हत्था दिख गया। फिर तो शाम को जो हमारी कुटाई हुई कि बस कलेजा मुंह को आ जाएगा आपका। इसीलिए तफशील नहीं दे रहा। कुटाई के किस्से ऐसे ही याद आते रहे तो फिर सुनाऊंगा।

5 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

ब्‍लॉगिंग में आते ही
छाने लगे रंग आपके
सतरंगी जमाने सुने
कुटपिटाई के कारनामे
खुद सुनाने लगे
सुनने वाला हंसे या
गंभीर होकर मन ही मन
आनंद ले, करे कुछ भी
होगी गुस्‍ताखी, नहीं है
यहां कोई पाखी।

L.Goswami said...

मैंने इसके पहले वाली पोस्ट भी पढ़ी थी ..यह वाली भी पिछले वाली जैसी अच्छी है.अपनी शरारतें याद आ गई पढ़ कर

डॉ .अनुराग said...

सुनाते रहिये एक दूसरे को हौसला मिलता है

आलोक सिंह said...

स्वेटर का हाथ ऊपर, हम नीचे
घर जा के स्वेटर छुपा दिया बिस्तर के नीचे
पर दिख गया हाथ पेड़ पे , क्योंकि वो था ऊचे
घर जा के दीदी ने बहुत कान खीचें
रो रहे थे हम आंखे मीचें
ये जीवन कुटाई से हैं सीचें
आप की इस रचना पर हम रीझे

mamta said...

बचपन का एक और दिलचस्प वाकया ।