Monday, August 31, 2009

डेडिकेटेड टू माइ फर्स्ट लव

डेडिकेटेड टू माइ फर्स्ट लवये पंक्ति होगी मेरी किताब के पहले पन्ने पर .... बिलकुल सादा पन्ना जिसके बीच में होंगी ये लाईनें। इटैलिक्स में.... प्रेरणा का स्रोत भी बता ही दूं, यूं तो यह अनगिनत किताबों में होता है। लेकिन ताज़तरीन मामला मुझे गुज़रे ज़माने के सबसे मशहूर टीवी पत्रकार सुधांशु रंजन की जेपी पर लिखी किताब के पहले पन्ने में दिखा।

किताब जेपी पर थी, गंभीर और बेहतरीन थी। लेकिन ये डेडिकैशन सबसे ज्यादा संजीदा लगा। लोग अपने पहले प्रेम को नहीं भूल पाते हैं क्या? वैसे, मैंने तभी तय कर लिया कि अपनी किताब (अगर कभी लिखी गई) तो पहले पन्ने पर मैं भी ऐसी ही लाईनें लिखूंगा...डेडिकेटेड टू माई फर्स्ट लव..। कोई नाम नहीं दूंगा कि यह किताब मेरी प्रेयसी मुन्नी, चुन्नी गुड़िया, चीकू, बन्नी, बिट्टी, गुड्डी या मिली को समर्पित है।

नाम लेने का मतलब संभावनाओं का अंत, तुरंत..।

इससे होगा क्या कि आपकी मौजूदा लव को लगेगा कि यह किताब उन्हीं के लिए है और आपके बिना सुबूत दिए यह साबित हो जाएगा कि आपका पहला प्यार वही है।
दूसरे, आपके पहले, दूसरे, तीसरे...और जितने भी आपकी औकात के हिसाब से प्यार हुए हों, हरेक को लगेगा कि किताब उन्हीं को समर्पण है। कई लोग राजेंद्र यादव, तो कोई नामवर सिंह को समर्पित करते हैं। हम उनको करेगे जिनसे हमारा मतलब सध चुका है और भविष्य में कभी संभावना होगी कि पुनः सधेगा।

विद्वज्जन कहते हैं लव चाहे किसी भी नंबर पर क्यों न आए होता हमेशा फर्स्ट ही है। वैसे ही जैसे मुनियों ने कंस को मिसगाइड किया था कि आपकी बहन के आठवें गर्भ की संतान आपका नाश करेगी.. आठवें गर्भ को लेकर चक्कर चल गया था। कंस परेशान था लेकिन आपको ऐसी परेशानी पेश नहीं आनी चाहिए..।

दरअसल, ऐसे समर्पण से यह साबित हो जाएगा कि आप कितने समर्पित प्रेमी रहे हैं। और एक साथ कईयों से उत्कट समर्पण का ऐसा लाजवाब आईडिए को पेंटेंट करवाने जा रहा हूं।

हर मर्ज की दवा है गुस्ताख के पास। लेकिन मैं किसी को गिनी पिग नहीं बनाने जा रहा हूं । पहला प्रयोग मैं खुद करुंगा। खुद पर। आप चाहें तो मेरे फॉर्म्युले का इस्तेमाल कर सकते हैं..। बाइलाइन देने का कोई चक्कर नहीं, हां नाम लेंगे तो अच्छा लगेगा( बतर्ज-गांधी शांति प्रतिष्ठान की किताबें)

तो गुस्ताख़ का यह आइडिया कैसा लगा आपको? है ना दूर की कौड़ी?

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