Sunday, November 22, 2009

गुस्ताख का रिटायरमेंट प्लान

कक्का जी हड़बड़ाए हुए जा रहे थे। क्या हुआ कक्का जी? गुस्ताख ने बड़ी अदा से पूछा। कक्का के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, एक दम फक्क..। 'अरे रिटायरमेंट प्लान करने जा रहा हूं। ताकि अपनी पत्नी को सिंगापुर घुमाने ला जा सकूंम. बुढापे में। ता नहीं बाल-बच्चे कब लतिया कर घर से बाहर का दरवाजा दिखा दें?'

हम भी वहीं खड़े थे,-" का कक्का, अमिताभ की बागबान देख आए हो क्या? "

-"अरे नहीं बचुकिया, दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल पढ़ आया हूं..सो अचानक चिंता बढ़ गई है। "

"कौन सी ग़ज़ल कक्का?"

"अरे बुढापे पर बड़ी मार्मिक ग़ज़ल कही है, दुष्यंत ने। हमारे ज़माने के शायर थे। सुन लो....

लगने लगा है बिस्तर बाहर दालान में,
बूढे के लिए अब नहीं कमरा मकान में ,
दी थी जिन्हें ज़बान वो जवान हो गए ,
कहते हैं लगा लीजिए ताला ज़बान में,
रोटी बची है रात की सालन नहीं बचा
देकर गई है बेग़म कह कर ये कान में,
जान उसके जिस्म से जब निकल गई
बेटे ने मकबरा बनाया है शान में

हां कक्का कह तो आप सही ही रहे हैं...कनाडा वाले उड़नतश्तरी और दिल्ली वाले डॉ अनुराग को भी सुना दीजिए। मुमकिन है वह भी अपने बुढापे का कुछ इंतजाम कर लें।

कक्का मेरी तरफ मुडे, --"क्यों बे, अपनी सोच तूने क्या इंतजाम कर रखा है। उड़नतश्तरी और डॉ अनुराग की मत सोच। डॉक्टर तो फिर भी उम्रदराज़ (?) हैं, लेकिन उड़नतश्तरी तो माशाअल्लाह जवान हैं.. खुद बूढा़ हो रहा है, बाल तेरे सफेद हो गए, जो बचे हैं उनको लेमिनेट करवा ले। यादें रह जाएंगी तो देख-देख कर आहें तो भर पाएगा...

हम हुमक उठे, --"क्या कक्का, अभी तो हमने बड़ी-बड़ी शरबती आंखों और रेशमी जुल्फों वाली मादक मादा की खोज ही शुरु की है..बुढापे की बात मत करो। गोपालप्रसाद व्यास भी तो कह गए हैं..

हाय न बूढा कहो मुझे तुम,
शब्दकोष में प्रिये और भी
बहुत गालियां मिल जाएंगी

गुस्ताख मुस्कुरा उठा..। उम्र बढती है तो विनय बढ़ता है..।

बालों में छा रही सपेदी,
रोको मत उसको आने दो
मेरे सिर की इस कालिख को
शुभे स्वयं ही मिट जाने दो...
झुकी कमर की ओर न देखो,
विनय बढ़ रही है जीवन में
तन में क्या रखा है रुपसि,
झांक सको तो झांको मन में...

कक्का खिसिया गए, --बच्चा. अभी बच्चे हो मान लिया लेकिन रिटायरमेंट का प्लान तो करो...जो हम भुगतने से डरे और मरे जा रहे हैं तुम पर ना आए..

हमने कहा कक्का, अभी अरुणाचल गए थे। वहां देख आए हैं, दिहांग नद के किनारे झोंपडा बनाकर मछली मारुंगा.. गोवा में भी अच्छा है.. समंदर के किनारे टीन की शेड डाल दूंगा... जिदंगी कट जाएगी। वैसे अच्छा ऑप्शन तो बिहार के अपने गांव में लौटकर खटाल अर्थात् गऊशाला खोल देने का है। सात-आठ गायें और उतनी ही भैसे पोस लूंगा, दूध बेचेंगे घी खाएंगे....

और घी खाने के लिए चार्वाक की तरह कर्ज लेने की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। कक्का, .. कहीं सचिन के एड वाले एक्शन प्लान से प्रेरित तो नहीं हो रहे आप? वैसे भी-पूत कपूत तो क्या धन संचय, पूत सपूत तो क्या धन संचय। अर्थात् पूत कपूत हो संचित धन की वाट लगा देगा। पूत सपूत हो चो उसके लिए धन संचित करने की ज़रुरत ही क्या।

कक्का को असह्य हो रहा था, सीधे सिर पर चपत मारी कहा, तुम उल्लू हो, गधे भी..और अपनी राह ले ली।

पाठकों आप ही बताइए, रिटायरमेंट का प्लान ज़रुरी है? अगर है तो क्या करना चाहिए ....

4 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया समयानुकूल यह भी जरुरी है गुस्ताख जी .गुस्ताखी के लिए क्षमा जी

सागर said...

खूब भालो !

Anonymous said...

ख़बरदार, रिटायरमेंट जैसी गुस्ताख़ चीज़ के बारे में सोचा भी !

Goonj said...

गुस्ताख़ी माफ़!:D परंतु मेरे हिसाब से तो
रेटयरमेंट प्लांस बहुत ज़रूरी हैं|
.......मैं आपका blog पढ़के बहुत प्रेरित हूँ|
अब मैं भी हिन्दी का उcचतम प्रयोग करने का प्रयास करूँगी|