Thursday, August 25, 2011

लोकतंत्र-लोकतंत्रः कविता


लोकतंत्र-शोकतंत्र
हो गया वोटतंत्र
वोटतंत्र-चोटतंत्र
शोषण का एक यंत्र
लोकतंत्र शोकतंत्र
लूट-खसोटतंत्र
सब हमारा मालतंत्र
कैसा से कमाल तंत्र
माथे गिनते रहे
बन गया अब थोकतंत्र
थोकतंत्र-थूकतंत्र
कमाई का अचूकतंत्र
चूकतंत्र, भूखतंत्र
तन गया है सूखतंत्र
सूखतंत्र, रसूखतंत्र
सबसे बड़ा चूसतंत्र
चूसतंत्र, थूकतंत्र
थूकतंत्र-थोकतंत्र
शोकतंत्र-फोकतंत्र
लोकतंत्र-लोकतंत्र

2 comments:

shanti deep said...

tantron ke makad jaal mein phans gaye hain gurudev, koi raasta nahin hai, koi roshni nahin hai.

सुशांत झा said...

बहुत बढ़िया मंजीत। बाबा की याद आ गई। मुझे लगता है कि ये शैली अभी भी और शायद सभी समय के लिए प्रसांगिक है। इस पर और लिखो। मेरी शुभकामनाएं।