Wednesday, April 11, 2012

भूकंप, सुनामी और बेनकाब हो गए चैनल

इंडोनेशिया में रिक्टर पैमान पर पहले 8.9 फिर सुधारकर 8.7 का भूकंप क्या आय़ा, टीवी पर मार्कन्डेय काटजू की टिप्पणी सच होती लगी। फिर सुनामी की चेतावनी भी आ गई। भूकंप के दौर में हड़कंप मचाने वाले चैनलों ने हाहाकार मचा दिया।
ऐसे होता है भूकंप का केंन्द्र, अधिकेन्द्र और फोकस। ज्यादा खतरा होता है फोकस पर


इंडिया टीवी, आजतक, ज़ी सब अपने-अपने तरीके से घुट्टी पिला रहे थे जनता को। सुनामी की घुट्टी। पहले तो भारत समेत 27 देशों में सुनामी की चेतावनी आई। सभी चैनलों ने सुनामी के विजुअल तलाशने शुरुकर दिए। आजतक ने अपने पुराने पैकेज का ग्राफिक्स उठाया, जिसमें कहा गया कि भूकंप का केन्द्र धरती के भीतर है। (अब उनको कौन बताए कि भूकंप का केन्द्र हमेशा धरती के नीचे  ही होता है।)

ज्यादातर चैनलों के रिपोर्टरों को रिक्टर पैमाने पर बढ़ते या घटते पॉइंट के लॉगरिथमिक वैल्यू का पता नहीं।

खैर इस आपाधापी में मेरे भौगोलिक ज्ञान में खास बढोत्तरी हुई। पहले तो कॉपरनिकस को गलत ठहराया इंडिया टीवी ने। एक एटलस के सहार ज्ञान बघारते हुए रोहित नाम के ज्ञानी रिपोर्टर ने कहा कि  धरती पूर्व से पश्चिम की तरफ घूमती है। इसे ज़बान फिसलने का मामला माना जा सकता है। लेकिन जनाब ज़बान फिसलने ही क्यों दें। आखिर ज़र्नलिज्म को कुछ लोग जिम्मेदारी काम मानते थे और इस गलतफहमी में मेरा बुरी तरह यकीन है।

दूसरा बड़ा ज्ञान मिला कि इंडिरा पॉइंट तमिलनाडु में कन्याकुमारी के नीचे हैं। जब हम पांचवी में पढ़ते थे तो सरकार स्कूल में हमें बताया गया था कि भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट है, जो कि अँडमान निकोबार द्वीप समूह में है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत भी पढ़ा है हमने। सबसे तेज़ चैनल ने प्लेटों की गति इतनी तेज कर दी कि इंदिरा पॉइंट सरकता हुआ नहीं, बहता हुआ तमिलनाडु तट पर आ लगा। बाजाप्ता चैनल ने इसे ग्राफिक्स के जरिए दिखाया भी। लाल बिंदु से। अरुण पुरी किसी से जवाबतलब करेंगे? नहीं करेंगे। तेजी मे ऐसी गलतियां हो जाती हैं.। माफी मांगने की भी जरुरत नहीं।

क्यों मांगे माफी। चैनल किसी दर्शक के प्रति जिम्मेदार तो है नहीँ। डीडी ने ऐसा कोई कदम उठाया ही नहीं। काहे सरदर्द लिया जाए। जब तक ग्राफिक्स बने उससे पहले सारा नटखेला खत्म। चेतावनी वापस ले ली गई। दुनिया में सच में भी बरबादी आ जाए तो आ जाए, डीडी अपने क्यूशीट (तयशुदा प्रोग्राम) से हट नहीं सकता। खेल समाचार चल रहा था उस वक्त। खेल समाचारवाचक अनिल टॉमस एक क्लूलेस भूकंप के बारे में पूछते नजर आ रहे थे।

ऐसी ही घटनाएँ होती हैं, जो कम से कम टीवी रिपोर्टिंग के बारे में न्यायमूर्ति मार्केंडेय काटजू को सच साबित करती है। ज्यादातर रिपोर्टर सतही रिपोर्टिंग करते हैं। अब आप बाकी की खबरों के बारे में भी ऐसा ही पैमान तय कर लें तो पता लग जाएगा कि भारत में टीवी  में कैसे अनपढ़ लोग रिपोर्टिग कर रहे हैं।

एक और नजारा जो हर बारिश के बाद आता है वो ये कि देश में कही भी बारिश हो, लेकिन ज्यादातर मामलों में दिल्ली में-तो हर रिपोर्टर का एक ही तर्क होता है। पश्चिमी विक्षोभ। जुलाई में बारिश हो तो पश्चिमी विक्षोभ और जनवरी में तो भी पश्चिमी विक्षोभ और अप्रैल में हो तो भी पश्चिमी विक्षोभ। न फूलो की बारिश का पता न मैंगो शावर का।

हर रिपोर्टर या कोई रिपोर्टर जरुरी नहीं कि भूगोल का जानकार हो, लेकिन जिस विषय पर आप बोल रहे हों, उसकी बेसिक्स तो पता हो। ये तो नहीं कि आप अफगानिस्तान की राजधानी उलानबटोर बोल दें और कवर करते रहें विदेश मामले। या रणवीर सेना को और नक्सलियों को एक ही बताकर गृह मंत्रालय की बीट कवर करते रहें।

सुना है चैनलों ने जब तक सुनामी के विजुअल न मिले जापान वाली सुनामी और अंडमान वाली सुनामी के शॉट्स दिखाने का फैसला कर लिया था। वक्त है अब टीवी के लिए कि परिपक्व हुआ जाए। वरना रही सही क्रेडिबिलिटी की भी मदर-सिस्टर हो जाएगी।

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत बड़ी बड़ी गप्पबाजी होती है।

Shailendra Mishra said...

Sahi kaha Guru....Ye to kuchh bhi nahi...Kabhi-kabhi to swarg ke bhi darshan karwa dete hain ye...

सञ्जय झा said...

hojayegi.....nahi.......kar rahe hain ..... mother-sister..

sadar.

अनूप शुक्ल said...

सत्यवचन!