Tuesday, April 17, 2012

अथ कॉकरोच (प्रेम) कथा

एक कॉकरोच था। लोग कहते थे कि बहुत अच्छा कॉकरोच था। कॉकरोच को किसी का इंतजार था। कॉकरोच के साथ दिक़्क़त ये थी उसे किसी बाबा ने ये कन्विन्श कर दिया कि पिछले कई जन्मों से उसकी सोलमेट उसे खोज रही है। उस दिन से कॉकरोच को हमेशा से उस कॉकरोच(नी) की तलाश रहती। जिसकी आंखों में वह खो जाए, जिसे वह देखता ही रह जाए। जिसका रंग उसके गहरे कत्थई रंगो से मिल जाए, जिसकी सूंढ़ उसी की तरह हो...मतलब कॉकरोच अपने पंख फड़फड़ाता प्यारमय हो गया।

प्लीज इसको आम आदमी न समझे, यह कॉकरोच ही है
ऐसा नहीं था कि कॉकरोच हमेशा कॉकरोच ही था। पिछले जन्म में फतिंगा था और उसे एक मेंढकी से प्यार हो गया था। मेंढकी ने प्यार से उसे किस करने के लिए जीभ निकाली और कहा प्यारे मेरी भूख तो मिटा दो। मेरे लिए प्लीज अपनी जान दे दो। उस वक्त फतिंगे रहे अपने कॉकरोच ने विरोध नहीं किया और उसे फतिंगा जन्म से मुक्ति मिल गई। उससे पिछले जन्म में अपने कॉकरोच महोदय ग्रासहॉपर थे। वहां भी उऩ्हें प्यार की राह में जान देनी पड़ी थी।


अपना ये कॉकरोच, यूं ही कॉकरोच नहीं बन गया था। उसके धर्म के पंडित बताते थे कि 84 लाख योनियों के बाद उसे कॉकरोच की यह पवित्र नस्ल मिली है। कॉकरोच शास्त्र के पंडित जोर देते कि उसे एक अच्छा कॉकरोच बनना चाहिए। मंगलवार को, गुरुवार को और शनिवार को नियमतः कीड़े-मकोड़ों का शिकार नहीं करना चाहिए।

कॉकरोच सूंढ़ हिलाता रह जाता। बचपन से उसे बस्ती के सारे कॉकरोच तिलचटवा (तिलचट्टे का लोकल रुप) कह कर बुलाते। कॉकरोच की कुछ महत्वाकांक्षाएं थी, लेकिन जब से टीवी पर दिखने वाले बाबाओं ने उसे पूर्वजन्म का प्यासा पतक बता दिया था उसकी भूख प्यास सब मर गई थी। पहले तो गंदी बस्ती के तिलचट्टे के रुप में वह चूना और सीमेंट छोड़कर सब कुछ चट कर जाता था लेकिन अब उसे कुछ भी नहीं भाता था।

कॉकरोच को पता नहीं क्या तलाश थी। वह पता नहीं क्या कुरेदता रहता। उन दिनों जब नीली पगड़ी वालों ने यह घोषित कर दिया कि शहरी कॉकरोच 32 रुपये खर्च करें और गंवई कॉकरोच 26 रुपये खर्च करें तो वह गरीबी रेखा के ऊपर माने जाएँगे तब से उसके आत्मविश्वास में बहुत बढोत्तरी हुई थी।

कॉकरोच अब हमेशा आलमारियों के कोनों में छिपा नहीं रहता था। न ही कागजो़ के कोने कुतरता रहता, अब वह सिर्फ सरकारी श्वेत पत्र खाता, अब वह सिर्फ कत्थई-भूरी फाइलें चबाता। उसे लगता कि कॉकरोच बस्ती का विकास फाइलें चबाने वाली पीढी के विकास से ही होगा।

जिस घर के एक किचन के आलमारी के पल्लों अंधेरे कोनों में वह छिपा रहता, उस की मालकिन को उसने पहली बार देखा। वरना पहले यूं होता कि वह ब्लडी इंसानों की आहट से ही छिप जाता था। लेकिन अब उसने देखा कि वह लड़की उसी को देख रही थी। लड़की इंसान थी अर्थात् मानवी थी, वह कॉकरोच था. लेकिन जैसा मुच्छड़ बाबा ने टीवी पर उसे ज्ञान दिया कि अमुक मंगल को सुबह इतने बजे से इतने बजे राहुकालम् के बाद जो दिखे उसी को अपना सोलमेट मानना।

कॉकरोच ने समझा यही लड़की मनुष्य वेश में उसकी सोलमेट है। लड़की भी कछ देर तक उसे देखती रही, घूरती रही। फिर चीख मार कर भाग गई। पता नहीं मनुष्य योनि की लड़कियां कॉकरोचों को देखकर इतना क्यों चीखती हैं।

फिर पता नहीं, कहां से काले रंग का बेलना कार यंत्र ले आई। उसमें से कुछ छिड़का...वह पता नहीं कैसा हिट था। कॉकरोच का दम घुटने लगा और जल्दी ही कॉकरोच के आठों पैर ऊपर और पीठ नीचे हो गया। कॉकरोच प्यार के नाम कुर्बान हो गया।

कॉकरोच पुलिस ने कहा, एक आतंकवादी मारा गया। गृह मंत्री ने बयान दिया कि यह कॉकरोच दरअसल इतालवी सैलानियों को अगवा करने वाले नक्सली का एरिया कमांडर था। एनजीओ वगैरह ने इसे भूख से हुई मौत करार दिया तो सिविल सोसायटी वालों ने इसके लिए जन लोकपाल लाने की मांग कर दी।

सिर्फ कॉकरोच ही जानता था कि उसकी डेस्टिनी यही थी। वह जानता था कि बड़े नेताओं ने जब भी ट्रिस्ट विद डेस्टिनी यानी नियति से वायदा किया तो उनके जेह्न में अपने परिवार की नियति का वायदा था और उनने कॉकरोचों की नियति के बारे में कुछ भी नहीं सोचा था। लिटरली, कुछ भी नहीं। सिर्फ कॉकरोच जानता था और कॉकरोच की आत्मा (पता नही उसके शरीर के किस हिस्से में थी) जानती थी कॉकरोच प्यार की राह में शहीद एक और कॉकरोच है।

वह जानता था कि जब भी, कॉकरोचों का इतिहास लिखा जाएगा उसको को इतिहास की किसी भी किताब में फुटनोट लायक जगह भी नहीं मिलेगी।

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मार्मिक इतिहास..

अनूप शुक्ल said...

गजब! गजनट प्रेम कथा। :)