Friday, January 18, 2013

क्यों चाहिए मिथिला राज्य...?


पिछले कुछ दिनों से कुछ लोगों ने मिथिला राज्य की मांग करनी शुरू कर दी है। इतिहास में मिथिला एक राज्य रहा है, और आजादी तक मिथिला की रियासत भी रही थी। आबादी के हिसाब से मिथिला नेपाल और बिहार में अवस्थित है। अलग मधेशी राज्य की मांग नेपाल में भी है और दबे स्वरों में बिहार की तरफ वाली मिथिला में भी।

सरहद के दोनों ओर मिथिला राज्य की मांग का मूल आधार एक ही हैः दोनों ही तरफ विकास के लिहाज से उपेक्षा का भाव नेतृत्व ने दिखाया है।

सवाल ये है कि मिथिला राज्य है कहां और क्यों बनना चाहिए। मधुबनी जिले की सीध में बेगूसराय तक और आधा सीतामढ़ी और कोसी से पूरब का सारा इलाका...थोड़ा गंगा से दक्षिण तक, यानी बिहार के जिस हिस्से की भाषा मैथिली है या उस भाषा के बीज हैं यानी भाषा में वाक्य के आखिर में छै या छिकै शब्द हो, वहां तक मिथिला है। 

हालांकि, मिथिला की शुरुआत बंगाल की ओर से कटिहार घुसने के साथ ही हो जाती है, जहां आबादी में मुसलमान ज्यादा हैं। कुछ लोगों को मिथिला शब्द से चिढ़ है, सिर्फ इसलिए क्यों कि इससे उन्हें पौराणिक ब्राह्मणवाद की गंध मिलती हैं। लेकिन सच तो यह है कि सिंदूर टीकाधारी मैथिल ब्राह्मणों (गलती से उन्हें ही मिथिला की पहचान और प्रतीक मान लिया जाता है) से परे मिथिला में तकरीबन 24 फीसदी यादव और 15 फीसदी मुसलमानों की आबादी है। अनुसूचित जातियों की तादाद भी काफी है। ऐसे में अलग राज्य से उनके सामाजिक विकास को नई दिशा मिलेगी। 

मिथिलांचल राज्य की मांग में कुछ भी गलत नहीं है। पूरा मिथिला क्षेत्रीय विकास के तराजू पर असमानता का शिकार है। मिथिला के किसी भी कोने मे चले जाए, नीतीश कुमार के 11 फीसदी विकास के दावों की पोल खुल जाएगी। 

बिहार सरकार विकास के तमाम दावे कर रही है लेकिन यह देखना होगा कि सारा विकास कहां केन्द्रित हो रहा है। गंगा के उत्तर और दक्षिण विकास की सच्चाईयों में जमीन आसमान का फर्क है। 
बाढ़ (मोकामा के पास) में एनटीपीसी की योजना से लेकर, नालंदा विश्वविद्यालय तक और आयुध कारखाने से लेकर जलजमाव से मुक्ति की योजनाओं तक में कहीं भी मिथिला के किसी शहर का नाम नहीं है। इन योजनाओं के तहत आने वाले इलाके नीतीश के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाके हैं। नीतीश अपनी सारी ताकत मगध और भोजपुर में केन्द्रित कर रहे हैं। 

इन विकास योजनाओं से किसी किस्म की दिक्कत नहीं होनी चाहिए, लेकिन जब इसी के बरअक्स समस्तीपुर के बंद पड़े अशोक पेपर मिल की याद आती है, जिसे फिर से शुरु करने की योजनाओं को पलीता लगा दिया गया या फिर सड़कों के विकास की ही बात कीजिए तो मिथिला का इलाका उपेक्षित नजर आता है। 

इस इलाके के पास एक मात्र योजना है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शाखा की। मिथिला में न तो किसी उद्योग की आधारशिला रखी गई है न शैक्षणिक संस्थानों की। सारा कुछ पटना और इसके इर्द-गिर्द समेटा गया है, एम्स, आईआईटी, चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान और चाणक्य लॉ स्कूल। हाल में धान के भूसे से बिजला का प्रस्ताव गया की ओर मुड़ गया और कोयला आधारित प्रोजेक्ट औरंगाबाद के लिए। मिथिला की हताशा बढ़ती जा रही है।
सिर्फ विकास ही एक मुद्दा नहीं है। मिथिला की अपनी एक अलग संस्कृति है, भाषा खानपान और रहन-सहन है। मिथिला की जीवनशैली में एक खतरनाक बदलाव आ रहा है। भाषा का बांकपन छीजता जा रहा है। 

पान-मखान की मैथिली संस्कृति को बचाने के लिए भी एक अलग राज्य बनाना बेहद जरुरी है।

कई लोग यह मानते हैं कि अब और नए राज्यों की जरूरत नहीं। तमाम किस्म के तर्क गढ़े जा रहे हैं। 1956 में भी भाषाआधारित राज्यों के गठन के समय ऐसे ही तर्क उछाले गए थे। लेकिन तब के 16 बने राज्यों से आज के 28 राज्यों तक क्या कोई ऐसा राज्य है तो नाकाम साबित हुआ हो?  

लोग झारखंड का उदाहरण विफल राज्यों में देते हैं, लेकिन जैसी समस्याएं नए राज्यों में हैं वैसी तो पुराने राज्यों में भी हैं। नेतृत्व को याद रखना चाहिए कि मिथिला के लाखों नंगे-भूखे अशिक्षित लोग भी भारत के ही नागरिक हैं। उन्हें कब न्याय मिलेगा

 सरकारों को जनता के नजदीक लाने का काम छोटे राज्य ही कर सकते हैं। कम वोटरों वाले विधायकों का अपनी जनता से निकटता का संबंध होगा। शक्ति और सत्ता का विकेन्द्रीकरण केन्द्र को भी मजबूत बनाएगा।
मिथिला के इलाके के पास खूब उपजाऊ जमीन है, संसाधन भी हैं। मानव संसाधन हैं, जो बाहर जाकर औने-पौने दामों में अपना श्रम बेचते हैं। अलग राज्य इन संसाधनों का सही इस्तेमाल कर पाएगा। कभी जयनगर या दरभंगा जाने वाली ट्रेनों को देखिए, हमेशा भारी भीड़ यही साबित करती है कि उस इलाके से कितना पलायन दिल्ली और एनसीआर में हुआ है। 

मिथिला राज्य का प्रादुर्भाव इलाके के श्रम को पलायन करने से रोकेगा। तरक्की की नई इबारत लिखने के लिए मिथिला का एक अलग राज्य बनाया जाना जरुरी है, देरसबेर यह बात साबित भी होगी

6 comments:

Aditya Jha said...

क्या आप फेसबूक पर हो ? यदि हो तो अपने प्रोफाइल देँ! इंतजारमेँ।

Manjit Thakur said...

http://www.facebook.com/manjit.thakur

प्रवीण पाण्डेय said...

निश्चय ही विकास की कसौटी पर मिथिला बिहार का भी बिहार है, उपेक्षा अलगाव को जन्म देती है।

दिगम्बर नासवा said...

विकास के लिए छोटे छोटे राज्य जरूर बनने चाहियें ...

sushant jha said...

बहुत बढ़िया पोस्ट। कुछ इसी तरह के विचार मेरे मन में भी आते रहते हैं। सटीक लेख। साधुवाद।

Dr. Dhanakar Thakur said...

सुन्दर तर्क देल अछि. नीक लागल जे आब बुद्धिजीवी सब मिथिला राज्य पर लिखैत छथि