बहुत दिन नहीं बीते हैं, जब रामलीला मैदान में तिरंगा लहराते हुए अरविन्द केजरीवाल इकट्ठी भीड़ को कहते थेः सारे नेता चोर हैं। नेताओं से उकताई हुई भीड़, तब ज़ोर से तालियां बजाती थी। अभी आम आदमी पार्टी के विधायकों पर, संसदीय सचिव मामले से लेकर सेक्स सीडी और छेड़खानी के मामले चल रहे हैं, जनता एक बार फिर ताली बजा रही है। ताली बजाना जनता का काम है। सियासत में शूर्पनखा की नाक कटे या किसी और की, जनता ताली बजाती है।
फिर अन्ना आंदोलन के मूलधन को चुनावी खाते में डालकर केजरीवाल ने बड़ी जुगत से इसका ब्याज दिल्ली में उठाया और शायद पंजाब और बाकी जगहों पर भी उठा ही लेते। राजनीति को कीचड़ मानकर उसमें कूदकर तंत्र बदलने का सपना (अगर कोई हो) केजरीवाल ने अगर 2012 में देखा तो उसके पीछे राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन का दबाव था।
जनता को जोश था तो बिना तजुर्बो वालों को सिर्फ केजरीवाल के नाम पर जिताते चले गए। बंपर बहुमत दिया। इसीलिए सवाल सिर्फ इतना नहीं कि केजरीवाल के तीन मंत्री तीन ऐसे मामलो में फंसे हैं, जो आंदोलन में शामिल किसी के लिये भी शर्मनाक हों। सवाल तो यह है कि तोमर हो या असीम अहमद खान या फिर संदीप कुमार, इन्होंने अन्ना आंदोलन के न तो कोई भूमिका निभाई, ना ही केजरीवाल के राजनीति में कूदने से पहले कोई राजनीतिक संघर्ष किया।
फिर अन्ना आंदोलन के मूलधन को चुनावी खाते में डालकर केजरीवाल ने बड़ी जुगत से इसका ब्याज दिल्ली में उठाया और शायद पंजाब और बाकी जगहों पर भी उठा ही लेते। राजनीति को कीचड़ मानकर उसमें कूदकर तंत्र बदलने का सपना (अगर कोई हो) केजरीवाल ने अगर 2012 में देखा तो उसके पीछे राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन का दबाव था।
जनता को जोश था तो बिना तजुर्बो वालों को सिर्फ केजरीवाल के नाम पर जिताते चले गए। बंपर बहुमत दिया। इसीलिए सवाल सिर्फ इतना नहीं कि केजरीवाल के तीन मंत्री तीन ऐसे मामलो में फंसे हैं, जो आंदोलन में शामिल किसी के लिये भी शर्मनाक हों। सवाल तो यह है कि तोमर हो या असीम अहमद खान या फिर संदीप कुमार, इन्होंने अन्ना आंदोलन के न तो कोई भूमिका निभाई, ना ही केजरीवाल के राजनीति में कूदने से पहले कोई राजनीतिक संघर्ष किया।
सियासत का साफ करने का दावा, और सभी नेता चोर है के नारे पर सवार आम आदमी पार्टी के पांच विधायक नौंवी पास हैं तो 5 विधायक दसवीं पास। शुरू में ही कानून मंत्री बने जितेन्द्र तोमर तो कानून की फर्जी डिग्री के मामले में ही फंस गये।
तो क्या यह मान लिया जाए आम आदमी पार्टी ने सियासत को उसी तर्ज पर अपनाया जो बाक़ी की पार्टियों के लिए भी मुफीद रही है। मसलन, लोकसभा में 182 सांसद, देश भर की विधानसभाओं में 1258 विधायक और तमाम राज्यों में 33 फीसदी मंत्री दागदार है। तो साथी लोग तर्क देते हैं, ऐसे में केजरीवाल के 11 विधायक दाग़दार हुए तो क्या?
सवाल यह भी नहीं है कि जिस सेक्स सीडी में संदीप कुमार दिख रहे हैं वह गैर-कानूनी है या सिर्फ अनैतिक। संदीप के साथ सीडी में दिखने वाली महिला ने कोई शिकायत नहीं की है, संदीप कुमार की पत्नी ने कोई शिकायत नहीं की है तो मामला कहीं से भी कानूनी नहीं है। कई लोग इस बात को लेकर मीडिया को कोस रहे हैं कि सबके शयनकक्षों में झांकने का हक़ कैसे ही मीडिया को। ठीक है।
लेकिन इसी के बरअक्स सवाल तो यह भी है कि जिन आदर्शों के साथ आम आदमी पार्टी बनाई गई, गठन के वक्त जो सोच थी, उम्मीदें थीं, वह सब इतनी जल्दी कैसे और क्यों मटियामेट होने लगी?
सत्ता आती है तो सबसे पहले सच्चे मित्र छूट जाते हैं और मित्रों को आप दुश्मन मानते हैं यह तो केजरीवाल ने भी साबित किया। विचारक योगेन्द्र यादव और सहायक प्रशांत भूषण को बाहर का रास्ता दिखाकर चमचों की फौज़ खड़ी करके केजरीवाल ने आगे की राह को खाई की तरफ मोड़ दिया।
संदीप कुमार प्रकरण को महज सेक्स सीडी पर मत रोकिए। इसको एक राजनीतिक घटना की तरह भी देखिए। जिस ओमप्रकाश ने सीडी उपलब्ध कराई है, वह है कौन? वह संदीप कुमार से चुनाव में हारे पूर्व-विधायक जयकिशन का साथी है। कथित तौर पर सरकारी ज़मीन पर कब्जा करके कोयले का कारोबार करता है और उसने संदीप कुमार पर पैसे मांगने और धमकाने के आरोप भी लगाए थे।
अचानक उसके पास मंत्री की अश्लील सीडी कहां से आ गई? आखिर अनजान शख्स ने ओमप्रकाश को ही सीडी और फोटोग्राफ वाला लिफाफा क्यों दिया और कैसे खुद को कोयला कारोबारी बताने वाला शख्स अचानक ही कांग्रेस का नेता बन गया?
देखिए, सियासत काजर की कोठरी है। सीडी में संदीप थे यह तय रहा, तभी तो केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल से उनको बाहर का रास्ता दिखाया। लेकिन संदीप ने दलित कार्ड खेला, जो एक हद तक हास्यास्पद ही है। लेकिन यह न कहिए कि निजी मामले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, शयनकक्ष की सियासत हो रही है।
मोदी के सूट पर ही कितना तंज कसा था मनीष सिसोदिया ने और केजरीवाल ने! मनीष सिसोदिया ने नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति पर तंजभरा ट्वीट किया थाः झूला झुलाने, बिरयानी खिलाने और 10-10 लाख के सूट पहनकर दिखाने से दुनिया में कूटनीति नहीं चलती।
कपड़े पहनने और खाने पर सियासत की शुरूआत आपने की थी, तो कपड़े उतारने पर भी सियासत होगी ही। मानता हूं कि संदीप कुमार की सेक्स सीडी का मामला अभी तक गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन सियासत में लगे लोगों को जनता साफ-सुथरा पसंद करती है।
वरना कितने सिंघवियों, राघवों और तिवारियों ने बहुत कुछ किया है, आज भी उनकी राजनीति चमक रही है। संदीप की भी चमक जाएगी। और मोरल? सियासत में मोरल नाम का कोई ग्राउंड नहीं है।
मंजीत ठाकुर
तो क्या यह मान लिया जाए आम आदमी पार्टी ने सियासत को उसी तर्ज पर अपनाया जो बाक़ी की पार्टियों के लिए भी मुफीद रही है। मसलन, लोकसभा में 182 सांसद, देश भर की विधानसभाओं में 1258 विधायक और तमाम राज्यों में 33 फीसदी मंत्री दागदार है। तो साथी लोग तर्क देते हैं, ऐसे में केजरीवाल के 11 विधायक दाग़दार हुए तो क्या?
सवाल यह भी नहीं है कि जिस सेक्स सीडी में संदीप कुमार दिख रहे हैं वह गैर-कानूनी है या सिर्फ अनैतिक। संदीप के साथ सीडी में दिखने वाली महिला ने कोई शिकायत नहीं की है, संदीप कुमार की पत्नी ने कोई शिकायत नहीं की है तो मामला कहीं से भी कानूनी नहीं है। कई लोग इस बात को लेकर मीडिया को कोस रहे हैं कि सबके शयनकक्षों में झांकने का हक़ कैसे ही मीडिया को। ठीक है।
लेकिन इसी के बरअक्स सवाल तो यह भी है कि जिन आदर्शों के साथ आम आदमी पार्टी बनाई गई, गठन के वक्त जो सोच थी, उम्मीदें थीं, वह सब इतनी जल्दी कैसे और क्यों मटियामेट होने लगी?
सत्ता आती है तो सबसे पहले सच्चे मित्र छूट जाते हैं और मित्रों को आप दुश्मन मानते हैं यह तो केजरीवाल ने भी साबित किया। विचारक योगेन्द्र यादव और सहायक प्रशांत भूषण को बाहर का रास्ता दिखाकर चमचों की फौज़ खड़ी करके केजरीवाल ने आगे की राह को खाई की तरफ मोड़ दिया।
संदीप कुमार प्रकरण को महज सेक्स सीडी पर मत रोकिए। इसको एक राजनीतिक घटना की तरह भी देखिए। जिस ओमप्रकाश ने सीडी उपलब्ध कराई है, वह है कौन? वह संदीप कुमार से चुनाव में हारे पूर्व-विधायक जयकिशन का साथी है। कथित तौर पर सरकारी ज़मीन पर कब्जा करके कोयले का कारोबार करता है और उसने संदीप कुमार पर पैसे मांगने और धमकाने के आरोप भी लगाए थे।
अचानक उसके पास मंत्री की अश्लील सीडी कहां से आ गई? आखिर अनजान शख्स ने ओमप्रकाश को ही सीडी और फोटोग्राफ वाला लिफाफा क्यों दिया और कैसे खुद को कोयला कारोबारी बताने वाला शख्स अचानक ही कांग्रेस का नेता बन गया?
देखिए, सियासत काजर की कोठरी है। सीडी में संदीप थे यह तय रहा, तभी तो केजरीवाल ने अपने मंत्रिमंडल से उनको बाहर का रास्ता दिखाया। लेकिन संदीप ने दलित कार्ड खेला, जो एक हद तक हास्यास्पद ही है। लेकिन यह न कहिए कि निजी मामले को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, शयनकक्ष की सियासत हो रही है।
मोदी के सूट पर ही कितना तंज कसा था मनीष सिसोदिया ने और केजरीवाल ने! मनीष सिसोदिया ने नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति पर तंजभरा ट्वीट किया थाः झूला झुलाने, बिरयानी खिलाने और 10-10 लाख के सूट पहनकर दिखाने से दुनिया में कूटनीति नहीं चलती।
कपड़े पहनने और खाने पर सियासत की शुरूआत आपने की थी, तो कपड़े उतारने पर भी सियासत होगी ही। मानता हूं कि संदीप कुमार की सेक्स सीडी का मामला अभी तक गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन सियासत में लगे लोगों को जनता साफ-सुथरा पसंद करती है।
वरना कितने सिंघवियों, राघवों और तिवारियों ने बहुत कुछ किया है, आज भी उनकी राजनीति चमक रही है। संदीप की भी चमक जाएगी। और मोरल? सियासत में मोरल नाम का कोई ग्राउंड नहीं है।
मंजीत ठाकुर
5 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "प्रेम से पूर्वाग्रह तक “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बढ़िया । सटीक । लिखते चलें ।
शानदार अन्दाज़ में लिखी कमाल की पोस्ट. कहने का अन्दाज़ बिलकुल निराला है और आलेख कहीं से भी राजनैतिक झुकाव नहीं दर्शाता है, जो इस पोस्ट की स्वच्छता का प्रमाण है! अन्यथा ऐसे आलेखों में राजनैतिक लगाव उभर के सामने आता है! बहुत ही सधी हुई पोस्ट!
AAP government और राजनीति की सही तस्वीर खीची है आपने | Well written.
khayalrakhe.com
मंजीत ठाकुर के आलेख का मंतव्य यही है कि 'हमाम में सभी नंगे हैं'. लेकिन केजरीवाल की राजनीति और उनकी पार्टी इस दशक की सबसे बड़ी निराशा के रूप में उभर कर आई है. अब तो संदीप कुमार पर एक लचर सा बेबुनियाद आरोप लगाने वाली उनकी सी डी पार्टनर भी पुलिस के सामने आ चुकी है. जगजीवन राम के पुत्र सुरेश से ऐसे किस्सों की शुरूआत हुई थी पर इनका अब कभी अंत नहीं होगा.
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