Thursday, February 15, 2018

प्रेम केवल फिजिक्स-केमेस्ट्री-बॉयोलॉजी नहीं, हिस्ट्री-पॉलिटिक्स-सोशियो भी है...

बचपन में हीर-रांझा देखी थी, बेतरतीब-भगंदर टाइप दाढ़ी में राजकुमार जंगल झाड़ सूंघते-सर्च करते दिख रहे थे. तब लगा दाढ़ी प्रेम का पोस्टर है. भरोसा न हो तो एक और फिल्म हैः लैला-मजनूं. चॉकलेटी ऋषि कपूर, जिनके बांह चढ़ाए टैक्नीकल स्वेटरों का जमाना दीवाना था, इस फिल्म में ब्लेड क इंतजार करके थक कर बैठ गई दाढ़ी ओढ़े पत्थर झेल रहे थे.

जिस नाकाम प्रेमी ने झाड़ीनुमा दाढ़ी न बढ़ाई, उसके दुख का थर्मामीटर ही डाउन. मानो दाढ़ी दुख के प्रकटीकरण का उपकरण है. संकेत है. प्रेम में नाकाम हुए और दाढ़ी नहीं बढ़ाई? अरे मरदे कैसा प्यार किया था. छी दाढ़ी नहीं बढ़ाई. धिक्कार है दाढ़ी तक नहीं बढ़ाई?

प्रेम में मात खाए लोगों के दुख को साकार करने के भी कुछ प्रॉप (प्रॉपर्टी) होते हैं. बैकग्राउंड से ह्रदय छीलती दर्दनाक ध्वनि अविरल झरझराएः 'ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नही या फिर, 'कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को. रंजीता के लाख मनुहार के बावजूद, पत्थर हों कि उछलते ही जाएं, रंजीता की दर्द भरी आवाज अगल-बगल छोड़ काल और चौहद्दी से परे ऑडिएंस को भावुक करती जाए, करती ही जाए.

पैमाने पर पैमाने खाली होते जाएं. मयखाने में लुढ़क जाएं. होश न रहे. (जोश तो पहले ही जा चुका है) आप यह न कहें कि आप क्यों ऐसे फलसफे दे रहे हैं कि प्रेम में लोग नाकाम ही होते हैं. अब प्रेम को लेकर मैं क्या कहूं, खुद कबीर कह गए हैं

आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार
नेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन व्यवहार।

(अग्नि का ताप और तलवार की धार सहना आसान है, किंतु प्रेम का निरंतर समान रूप से निर्वाह अत्यंत कठिन कार्य है)

तो जो प्रेम करेगा उसका निवेदन माना भी जा सकता है, नामंजूर भी किया जा सकता है. तो अगर आप प्रेम करते हैं, और करना ही चाहिए, दुनिया में नफरत फैल रही है प्रेम कम है, तो आप फौरन से पेश्तर इजहार कर दिया करें.

पर आप इजहार करने में देर करेंगे तो खासी दिक्कत हो सकती है. कुछ भले लोग तो सही वक्त का इंतजार करते रह जाते हैं और जैसा कि एक मशहूर हिंदी फिल्म में नायक का संवाद है, कि मुहल्ले के उनके प्रेम को कोई डॉक्टर-इंजीनियर लेकर उड़ जाता है. अतएव, देर न करें.

चूंकि प्रेम करना कोई दिल्लगी नहीं, सो दिल की बात फौरन बता दें. प्रेम में डायरेक्ट ऐक्शन सबसे बेहतर विकल्प है. आप मान कर चलिए कि यह मिसफायर भी हो सकता है. महिला सशक्तिकरण के दौर में आपने शिष्टता में जरा भी चूक की (मुझे उम्मीद है कि आप खुद को बाहुबली न समझें कि आप लड़की छेड़ देंगे और पिटेंगे नहीं) तो आप खुद नायिका से, उसके भाई और पिता से पिटने के लिए तैयार रहें.

चूंकि बड़े लोग कह गए हैं कि प्रेम गली अति सांकरी होती है. ऐसे में, प्यार की राह में पिट-पिटा जाना, हड्डी तुड़वाना कोई बड़ी बात नहीं है. तो इतने बलिदान के लिए तैयार रहें.

प्रेम की बात हो रही है तो अभी इंटरनेट पर एक सनसनी का जिक्र किए बिना बात अधूरी रहेगी. प्रिया प्रकाश वॉरियर अब जबकि राष्ट्रीय क्रश घोषित हो चुकी हैं, तो आप भी उस वीडियो में दिखाए हीरो की तरह शर्माएंगे इसकी पूरी उम्मीद की जानी चाहिए.

इस दुनिया में प्रेमियों पर जुल्म-ओ-सितम की इंतिहा हुई है. कभी संप्रदाय के नाम पर, कभी जाति के नाम पर, कभी सिर्फ खानदानी दुश्मनी के नाम पर, मतलब अछूत कन्या से लेकर कयामत से कयामत तक, और कभी खुशी कभी गम से लेकर इश्कज़ादे तक, जमाना मुहब्बत करने वालों के खिलाफ गोलबंद रहा है. पर फिर कबीर याद आते हैं,

कहां भयो तन बिछुरै, दुरि बसये जो बास
नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास।

शरीर बिछुड़ने और दूर में बसने से क्या होगा? केवल दृष्टि का अंतर है. मेरा प्राण और मेरी आत्मा तुम्हारे पास है.

यही वह प्रेम है. जो ढोला को मारू से, सोहिणी को महिवाल से, लैला को मजनूं से, मनु को शतरूपा से, शीरीं को फरहाद से, नल को दमयंती से, बाज बहादुर को रानी रूपमती से, मस्तानी को बाजीराव से और अमिताभ को रेखा से बांधे रखता है.

आखिर,

प्रीत पुरानी ना होत है, जो उत्तम से लाग
सौ बरसा जल मैं रहे, पात्थर ना छोरे आग।

प्रेम कभी भी पुराना नहीं होता. यदि अच्छी तरह प्रेम किया गया हो तो जिस तरह सौ साल तक भी वर्षा में रहने पर भी पत्थर से आग अलग नहीं होता उसी तरह प्रेम बना रहता है.

उम्मीद पर दुनिया कायम है और मुझे उम्मीद है कि देश और दुनिया के हर हिस्से में कायम नफरत हार जाएगी और प्रेम की फसल लहलहा उठेगी. मौका शिवरात्रि का भी है, तो शिव और सती के प्रेम को अपना उत्स बनाइए.

यह ठीक है कि पखवाड़ा ही बाबा वैलेंटाइन के नाम का है. पर महर्षि वात्स्यायन को मत भूलिए. बाबा वैलेंटाइऩ तो सिर्फ प्यार करने वालों को मिलवाते थे पर हमारे यहां तो वैलेंटाईन के भी चच्चा पैदा हुए हैं जो प्यार करने की खासी अंतरंग गतिविधि बता गए हैं. स्टेप बाई स्टेप.

और हां, सबको वात्स्यायन दिवस के पश्चिमी संस्करण की शुभकामनाएं.

2 comments:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

"तुम्हें तो अपने चहरे की पड़ी है ! मेरा ध्यान थोड़े ही है......!" ऐसा उलाहना न सुनना पड़े, शायद इसीलिए दाढ़ी बढाई जाती हो !!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...
This comment has been removed by the author.