प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोजगार का जिक्र करते हुए पकौड़े का नाम क्या लिया, सड़क से लेकर संसद तक हर तरफ पकौड़ा प्रकरण चर्चे में आ गया. इस बयान के लिए कोई तंज कर रहा है, कोई आलोचना. कोई समर्थन में है तो कोई मुखालफत में. मुखालफत में किसी ने पकौड़े की दुकान लगा ली, किसी ने पकौड़ा छानते हुए हाथ जला लिए.
लेकिन, सोशल मीडिया पर चल रही चटखारेदार चर्चा, तमाम राजनीति और आलोचनाओं को किनारे कर दें तो इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि पकौड़े वास्तव में देश के लगभग हर हिस्से में बहुतों को रोजगार दे रहे हैं और उनके परिवार का पेट भर रहे हैं.
पर आज हम पकौड़े के जिस भाई से आप का परिचय करवा रहे हैं वह असल में पकौड़े जैसा दिखता तो है लेकिन यह है मिथिला का तरूआ. इसको बनाने की विधि भी अलग है और किन सब्जियों से तरूआ बनता है उसका रेंज तो खैर विविधता भरा है ही.
इससे पहले की मैं आपको मिथिला के खान-पान के महत्वपूर्ण हिस्से तरूआ से परिचय करा दूं उससे पहले मैं मिथिला के खान-पान के बारे में एक लोकोक्ति बता दूं. मिथिला में खान-पान की संस्कृति में तीन चीजों का होना बेहद जरूरी हैः मिथिलाक भोजन तीन, कदली, कबकब मीन
यहां कदली यानी केला, कबकब यानी ओल या सूरन, और मीन यानी मछली. लेकिन यह जो ओल है उसे तलकर पकौड़े की तरह भी य़ानी तरूआ बनाकर भी खाया जाता है. शायद अचंभा लगे पर मिथिला के भोजन भंडार का यह तो महज एक नमूना है.
तरूआ को लेकर एक अन्य लोकगीत है,
भिंडी भिनभिनायत भिंडी के तरुआ,
आगु आ ने रे मुँह जरुआ
हमरा बिनु उदास अछि थारी,
करगर तरुआ रसगर तरकारी
पूरा अर्थ न जानिए बस इतना ध्यान रखिए कि इस गीत में भिंडी से लेकर काशीफल तक के तरूए का जिक्र है.
तरूआ तो तकरीबन सभी सब्जियों का बनता है. आलू, बैंगन, गोभी, लौकी, कुम्हड़ा (काशीफल), परवल, खम्हार, ओल (सूरन), अरिकंचन (अरबी के पत्ते). लेकिन मिथिला में अतिथि के सत्कार में सबसे महत्वपूर्ण तरूआ होता है तिलकोर का. तिलकोर एक किस्म का कुंदरू जैसे फल का पत्ता होता है, जिसके औषधीय गुण भी होते हैं.
मिथिला में तिलकोर की बेल आपको हर घर की बाड़ी में मिल जाएगा. जानकारों का दावा है कि तिलकोर टाईप वन डायबिटीज के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का रामबाण है. मैथिल लोग बताते हैं कि तिलकोर के नियमित सेवन से पेनक्रियाज से इंसुलिन का स्राव नियमित हो जाता है.
बहरहाल, मिथिला में तिलकोर ही नहीं बाकी सब्जियों का तरुआ बनाने की विधि तकरीबन एक जैसी है. इसके लिए अमूमन बेसन या चावल के आटे (जिसको मैथिली में पिठार कहा जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है. मिसाल के तौर पर आलू के तरुए की बात की जाए तो उसे पतले टुकड़ों में स्लाइस की तरह काटकर रख लिया जाता है. इस तरह जैसे कि चिप्स के लिए काटा जाता है. बेसन फेंटकर उसमें नमक हल्दी मिला दी जाती है. अगर इच्छा हो तो थोड़ी लाल मिर्च का पाउडर भी. नमक आप स्वाद के मुताबिक डाल सकते हैं.
फिर आलू के फ्लेक को उस बेसन में डुबोकर कड़कते तेल में तल लिया जाता है. आंच धीमी रखने से तरूआ अच्छे से पकता है. ऐसा ही, बैंगन और तिलकोर समेत अन्य सब्जियों के लिए भी किया जाता है.
तो अगली दफा आप जब भी किसी मैथिल दोस्त से मिलें तो उससे तरूआ खाने की फरमाईश जरूर करें. लेकिन याद रखिए, तरूआ तरूआ है, यह पकौड़ा नहीं है.
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लेकिन, सोशल मीडिया पर चल रही चटखारेदार चर्चा, तमाम राजनीति और आलोचनाओं को किनारे कर दें तो इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि पकौड़े वास्तव में देश के लगभग हर हिस्से में बहुतों को रोजगार दे रहे हैं और उनके परिवार का पेट भर रहे हैं.
पर आज हम पकौड़े के जिस भाई से आप का परिचय करवा रहे हैं वह असल में पकौड़े जैसा दिखता तो है लेकिन यह है मिथिला का तरूआ. इसको बनाने की विधि भी अलग है और किन सब्जियों से तरूआ बनता है उसका रेंज तो खैर विविधता भरा है ही.
इससे पहले की मैं आपको मिथिला के खान-पान के महत्वपूर्ण हिस्से तरूआ से परिचय करा दूं उससे पहले मैं मिथिला के खान-पान के बारे में एक लोकोक्ति बता दूं. मिथिला में खान-पान की संस्कृति में तीन चीजों का होना बेहद जरूरी हैः मिथिलाक भोजन तीन, कदली, कबकब मीन
यहां कदली यानी केला, कबकब यानी ओल या सूरन, और मीन यानी मछली. लेकिन यह जो ओल है उसे तलकर पकौड़े की तरह भी य़ानी तरूआ बनाकर भी खाया जाता है. शायद अचंभा लगे पर मिथिला के भोजन भंडार का यह तो महज एक नमूना है.
तरूआ को लेकर एक अन्य लोकगीत है,
भिंडी भिनभिनायत भिंडी के तरुआ,
आगु आ ने रे मुँह जरुआ
हमरा बिनु उदास अछि थारी,
करगर तरुआ रसगर तरकारी
पूरा अर्थ न जानिए बस इतना ध्यान रखिए कि इस गीत में भिंडी से लेकर काशीफल तक के तरूए का जिक्र है.
तरूआ तो तकरीबन सभी सब्जियों का बनता है. आलू, बैंगन, गोभी, लौकी, कुम्हड़ा (काशीफल), परवल, खम्हार, ओल (सूरन), अरिकंचन (अरबी के पत्ते). लेकिन मिथिला में अतिथि के सत्कार में सबसे महत्वपूर्ण तरूआ होता है तिलकोर का. तिलकोर एक किस्म का कुंदरू जैसे फल का पत्ता होता है, जिसके औषधीय गुण भी होते हैं.
मिथिला में तिलकोर की बेल आपको हर घर की बाड़ी में मिल जाएगा. जानकारों का दावा है कि तिलकोर टाईप वन डायबिटीज के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का रामबाण है. मैथिल लोग बताते हैं कि तिलकोर के नियमित सेवन से पेनक्रियाज से इंसुलिन का स्राव नियमित हो जाता है.
बहरहाल, मिथिला में तिलकोर ही नहीं बाकी सब्जियों का तरुआ बनाने की विधि तकरीबन एक जैसी है. इसके लिए अमूमन बेसन या चावल के आटे (जिसको मैथिली में पिठार कहा जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है. मिसाल के तौर पर आलू के तरुए की बात की जाए तो उसे पतले टुकड़ों में स्लाइस की तरह काटकर रख लिया जाता है. इस तरह जैसे कि चिप्स के लिए काटा जाता है. बेसन फेंटकर उसमें नमक हल्दी मिला दी जाती है. अगर इच्छा हो तो थोड़ी लाल मिर्च का पाउडर भी. नमक आप स्वाद के मुताबिक डाल सकते हैं.
फिर आलू के फ्लेक को उस बेसन में डुबोकर कड़कते तेल में तल लिया जाता है. आंच धीमी रखने से तरूआ अच्छे से पकता है. ऐसा ही, बैंगन और तिलकोर समेत अन्य सब्जियों के लिए भी किया जाता है.
तो अगली दफा आप जब भी किसी मैथिल दोस्त से मिलें तो उससे तरूआ खाने की फरमाईश जरूर करें. लेकिन याद रखिए, तरूआ तरूआ है, यह पकौड़ा नहीं है.
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1 comment:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ललिता पवार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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