Sunday, December 2, 2007

फिल्म- मोर दैन एनिथिंग इन द वर्ल्ड

अपने-अपने संसारों का दर्द

मोर दैन एनिथिंग इन द वर्ल्ड-( Más que a nada en el mundo )

इस स्पेनिश फिल्म को देखें और ईरान की द पोएट चाइल्ड कहीं न कहीं दोनों फिल्मों की अंतर्गाथा एक ही है। दोनों ही फिल्म सिनेमाई पटल पर कहानी बच्चे की नज़र से विस्तार देती है. आंद्रे लियॉन बेकर और ज़ेवियर सोलर के निर्देशन में बनी मैक्सिको की इस फिल्म में एक साथ दो कहानियां असंबद्द तरीके से शुरु होती है, लेकिन ताज्जुब की बात ये कि दोनों कहानियां कहीं भी आपस में मेल नहीं खातीं, सिवाय उस जगह के जब बच्ची आखिरी दृश्य में वैंपायर के नाम से जाने जाने वाले बूढ़े के फ्लैट में दाखिल होती है।

फिल्म में मां और बेटी के आपसी संबंधों की कहानी है। मां की अपनी दुनिया है। वह अपने पति का घर छोड़ आई है, और उम्र के उस दौर में है, जब शरीर की ज़रूरतें भी होती हैं। मर्द का सहारा भी चाहिए होता है। उस महिला के कई मित्र आते हैं रात को ठहरते हैं। बच्ची घर में सहमी-सहमी रहती है। उसे डर है कि उसके पड़ोस के फ्लैट में एक रक्तपिपासु वैंपायर रहता है।सहमी हुई लड़की मां का साथ चाहती है, लेकिन महिला अपने पुरुष मित्रों के साथ वक्त गुजारना चाहती है।

वयस्क स्त्री की दुनिया में ऐसी डेर सारी चीज़े हैं, जो बच्ची के संसार से विलग है, लेकिन साथ ही बच्ची की दुनिया में ऐसी बातें हैं जिसमें किसी बड़े का साथ चाहिए होता है। बच्ची समझती है कि रात को मां पर वैंपायर का साया पड़ जाता है। उसके डर को एक नया आयाम मिलता है।महिला के मित्र धीरे-धीरे साथ छो़ड़ते जाते हैं। औरत फिर अकेली है, लेकिन उन मुश्किल हालात में बच्ची को मां का सहारा बनना पड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए जीते हैं।

उधर पड़ोस वाले बूढे की मौत हो जाती है, बच्ची उसे वैंपायर समझ कर उसकेसीने पर क्रास लगाने जाती है। तभी वह पाती है कि बूढा़ अब नहीं रहा। फिल्म एक साथ ही मां-बेटी के रिश्तों के साथ छीजते संबंधों और उसके बुरे (?) प्रभावों की पड़ताल करता चलता है। एक अकेली औरत के लिए समाज में हर मर्द एक खून चूसने वाले वैंपायर की तरह ही होता है। सात ही जिन लोगों को खल माना जाता है, वाकई वे वैसे होते नहीं हैं। निर्देशक की यह स्थापना सिद्ध तो हो जाती है, लेकिन फिल्म में उस तत्व की बारी कमी है, जो बच्चो से जुड़े मसलों को डील करते वक्त ईरानी फिल्मों मे देखने को मिलता है.

वैसे इस फिल्म को मिस कर देंगे तो कोई बड़ा नुकसान नहीं होने जा रहा आपका...।

1 comment:

Divine India said...

सार्थक प्रयास…।
काफी दिनों से मैं आपको पढ़ता आया हूँ बहुत अच्छी जानकारी मिली है आपसे IFFI के संदर्भ में इसके लिए साधुवाद स्वीकार करें हां अपनी प्रतिक्रिया देर से दे रहा हूँ… व्यस्तता होने के कारण मैं गोवा नहीं जा सका किंतु मेरा एक मित्र मुझे सारी सूचनाएं उपलब्ध करा रहा था और फिर आपका ब्लाग पढ़कर बहुत कुछ जाना… चूंकि मैं भी अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा का बड़ा शौकीन हूँ कुछ लोगों के सहयोग और फिल्म लाइन से जुड़ने के कारण बहुत सारी फिल्में देखी है और अपने पास भी रखी…।
आपके ब्लाग पर आकर पढ़ना अच्छा लगा…।
मौका मिले तो ---
http://directorsdesk.blogspot.com
अवश्य देखें… एक Short Film में व्यस्त होने की वजह से ज्याद लिख नहीं पाता हूँ पर ……।