काल खाए सो आज खा, आज खाए सो अब,
गेहूं मंहगे हो रहे हैंस फेर खाएगा कब?
कबीरा कड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ,
जिसको ट्यूशन पढ़ना हो, चले हमारे साथ।
पोथी पढि-पढि जग मुआ, साक्षर भया न कोय,
तीन आखर के नकल से हर कोय ग्रेजुएट होय।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय,
आपन को शीतल करे दूजो को दुख होय।
प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय
छोटी-छोटी बात पर, हर साल दंगा हो जाय।।
8 comments:
वाह! वाह! बढ़िया गुस्ताखी की आपने. पौराणिक जी के शब्दों मे "एकदम धांसू च फांसू"
badhiya hai
बहुत जबरदस्त सूक्तियाँ हैं यदि समय पर हमें भी पढ़ने को मिली होतीं तो हमारा भी बेड़ा पार हो जाता बिना मेहनत मशक्कत के ।
शायद आपने एक बार कोई प्रश्न पूछा था , मैंने वहीं आपकी टिप्पणी के नीचे उत्तर भी दे दिया था । देखिये
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=38818012&postID=1070079200636516528&isPopup=true
घुघूती बासूती
झक्कास च बिंदास
बहुत सही गुरु। वइसे भी इस समय किसी चीज को उलाटने में बड़ा मजा आता है।
बहुत बढ़िया लिखते रहिए धन्यवाद
आज अगर कबीर जी भी होते तो आपकी इस गुस्ताखी पर शाबाशी ही देते :) बहुत खूब गुस्ताखी...
:)
अपने लिखे दोहे याद आ गये।
" सतगुरु हमसे रीझिकर, एक कह्या प्रसंग,
पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग।
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट।"
http://hindini.com/fursatiya/archives/333
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