सूत न कपास, कोरियों में लठ्ठमलट्ठा.. ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। अब सुन लीजिए.. आडवाणी होंगे अगले पीएम पद के प्रत्याशी। क्या ही अनुप्रास अलंकार है। दैनिक जागरण की हैड लाईन है ये.. संसदीय बोर्ड ने वाजपेयी की सहमति के बाद ये फैसला किया है।
सरकारी स्कूलों में छठी कक्षा में अंडे वाली एक कहानी पढाई जाती थी। अंडे बेचने निकली लड़की अपने सारे सपनों को टोरकी सिर पर रखे ही खुली आंखों देख डालती थी। नतीजतन, अंडों के साथ सपने भी टूट जाते थे। बीजेपी वालों को सोचना चाहिए कि वो कौन से सपने हैं, जिन्हें जनता, (वोटरों) की आंखों में जबरिया डालकर वह उन्हें जीत की रहा पर डाल सकेगी। बीजेपी की जीत का आधार क्या होगा? मोदी? आडवाणी? बुढा गए वाजपेयी? ना मुन्ना ना...
आडवाणी की पीएम के पूर में ताजपोशी.. हो पाएगी? क्या लगता है? ेक कहानी सुनाता हूं... तीन ज़ार में मेंढक रखे थे। दो के डक्कन बंद एक का डक्कन खुला था। लोग हैरत में। दो के बंद एक का खुला क्यों? भाई लोगों ने बताया। दो में विदेशी मेंढक हैं। इटली वाला मेेढक एक में... दुसरे में रूस-चीन का मिला-जुला। दोनों के ढक्कन बंद। डक्कन खुला रखें, तो एक एक कर सारे फरार हो जाएंगे। तीसरे में भारतीय मेंढक थे। ढक्कन खुला.. फिर भी कोई निकल नहीं पाएगा.. जो निकलना चाहेगा.. बाकी उसकी टांग खींचकर अंदर कर देंगे।
ये गुजरात में हो सकता है। झारखंड में भी... यूपी में हो चुका है। खुद को पीएम बनाने का दावा पेश कर दें, लेकिन दिल्ली जाने वाली बारात के दूल्हे का क्या होगा? जनादेश हासिल करने वाले नेता तो हाशिए पर हैं, या फिर अपने खिलाफ हो रहे भीतरघात से परेशान । राम मंदिर वाला मुद्दा भी चलेगा नहीं, काफी पुराना औप घिसा-पिटा है। लोग अब भ्रमित नहीं होंगे। भारत उदय भी फुस्स ही रहा। सेंसेक्स भी आपके ६ हज़ार के मुकाबले २० हज़ार के आस-पास कबड्डी कर रहा है। मुद्दा क्या है आपके पास...? लौह पुरुष की ापकी छवि जिन्ना प्रकरण ने तार-तार कर ही दी है। तो आडवाणी जी किस किंगडम का किंग बनना पसंद करेंगें? सवाल ढेरों हैं, जवाब तो आडवाणी को देना
5 comments:
अच्छी गुस्ताखी की आपने.
अब आडवाणी के बाद कौन? मेरा मतलब अगला शिकार कौन होगा?
सही कहा है।
सही कहा... लेकिन समय कब, कैसे और क्या गुल खिलाएगा...कहा नही जा सकता....
लेख में एक लाइन है...जनादेश हासिल करने वाले नेता तो हाशिए पर हैं??? इसे थोड़ा स्पष्ट करें.
जनादेश हासिल करने की कूव्वत रखने वाले नेता हाशिए पर हैं। यानी जिन लोगों में अपने लिए लोकसभा सीट तक जीतने की ताकत नहीं वो ड्राइंगरूम पॉलिटिशयन पार्टी की नीति तय कर रहे हैं। उमा और मोदी जैसे जनाधार वाले नेताओं के पीछे पूरी फौज हाथ धोकर पड़ी है।
छह साल बाद भी हाल वही हैं। :)
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