मैं होना चाहता हूं पेड़
ताकि कोई ले जाए तोड़कर मेरी शाख़
और मुझे जलाकर पकाए अपनी रोटियां
उसकी फूंकों के संग बन कर उडुं राख
मैं होना चाहता हूं चुटकी भर नमक
या कि हल्दी
कि मेरे होने से किसी के खाने में आ जाए स्वाद
किसी की पीली हो जाए दाल
और मुस्कुराहटों से भर जाए उसके गाल
मैं होना चाहता हूं घास
कि मुझे खाकर कोई गाय
बना दे दूध
या कि गोबर सही
कि किसी के चूडी़ भरे हाथों से दुलरा का दीवारों पर ठोंक दिया जाऊं
उपले बनकर चूल्हे में जलूं
पर कुछ होने की खुशी पाऊं
7 comments:
ye kaisi abhilasha.par aachi hai.
man bhaavan kavita, sahaj man ke kareeb, aur saralta se oat prot
मन को गहरे छू गई आपकी रचना .बहुत ही सुंदर उदगार.मेरा मानना है कि सचमुच यदि ऐसे भाव अपने अन्दर आते और झाकझोरतें हों तो सही मायने में आप मनुष्य हैं और आपमें संवेदनशीलता जीवित है.इसके रहते आपसे किसी का भी जानबूझ कर अहित नही होगा और अपने से जुड़े प्राणियों या प्रकृति को आप कुछ दे कर जायेंगे.
गजब..बहुत बढ़िया जी.
solid re
बहुत सुन्दर अभिलाषायें..
***राजीव रंजन प्रसाद
aap ki har abhilasha avval...bahot khub...
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