Thursday, August 27, 2009

गुस्सैल नौजवान अब फेंके हुए पैसे भी उठाता है- बदलता दौर बदलते नायक





उस दौर में जब राजेश खन्ना का सुनहरा रोमांस लोगों के सर चढ़कर बोल रहा था, समाज में थोड़ी बेचैनी आने लगी थी। राजेश खन्ना अपने 4 साल के छोटे सुपरस्टारडम में लोगों को लुभा तो ले गए, लेकिन समाज परदे पर परीकथाओं जैसी प्रेमकहानियों को देखकर कर कसमसा रहा था।


उन्ही दिनों परदे पर रोमांस की नाकाम कोशिशों के बाद एक बाग़ी तेवर की धमक दिखीी, जिसे लोगों ने अमिताभ बच्चन के नाम से जाना। गुस्सैल निगाहों को बेचैन हाव-भाव और संजीदा-विद्रोही आवाज़ ने नई देहभाषा दी। और उस वक्त जब देश जमाखोरी, कालाबाज़ारी और ठेकेदारों-साहूकारों के गठजोड़ तले पिस रहा था, बच्चन ने जंजीर और दीवार जैसी फिल्मों के ज़रिए नौजवानों के गुस्से को परदे पर साकार कर दिया।


विजय, के नाम से जाना जाने वाला यह शख्स, एक ऐसा नौजवान था,ा जो इंसाफ के लिए लड़ रहा था, और जिसको न्याय नहीं मिले तो वह अकेला मैदान में कूद पड़ता हैै।


लेकिन बदलते वक्त के साथ इस नौजवान के चरित्र में भी बदलाव आया। जंजीर में उसूलों के लिए सब-इंसपेक्टर की नौकरी छोड़ देने वाला नौजवान देव तक अधेड़ हो जाता है। जंजीर में उस सब-इंस्पेक्टर को जो दोस्त मिलता है वह भी ग़ज़ब का। उसके लिए यारी, ईमान की तरह होती है.


लेकिन उम्र में आया बदलाव उसूलों में भी बदलाव का सबब बन गया। देव में इसी नौजवान के पुलिस कमिश्नर बनते ही उसूल बदल जाते हैं, और वह समझौतावदी हो जाता है।


लेकिन अमिताभ जैसे अभिनेता के लिए, भारतीय समाज में यह दो अलग-अलग तस्वीरों की तरह नहीं दिखतीं। दोनों एक दूसरे में इतनी घुलमिल गए हैं कि अभिनेता और व्यक्ति अमिताभ एक से ही दिखते हैं। जब अभिनेता अमिताभ कुछ कर गुज़रता है तो लोगों को वास्तविक जीवन का अमिताभ याद रहता है और जब असल का अमिताभ कुछ करता है तो पर्दे का उसका चरित्र सामने दिखता है।


अमिताभ का चरित्र बाज़ार के साथ जिस तरह बदला है वह भी अपने आपमें एक चौंकाने वाला परिवर्तन है। जब ‘दीवार’ के एक बच्चे ने कहा कि उसे फेंककर दिए हुए पैसे मंज़ूर नहीं तो लोगों ने ख़ूब तालियाँ बजाईं।


बहुत से लोगों को लगा कि यही तो आत्मसम्मान के साथ जीना है। उसी अमिताभ को बाज़ार ने किस तरह बदला कि वह अभिनेता जिसके क़द के सामने कभी बड़ा पर्दा छोटा दिखता था, उसने छोटे पर्दे पर आना मंजूर कर लिया।


फिर उसी अमिताभ ने लोगों के सामने पैसे फ़ेंक-फेंककर कहा, ‘लो, करोड़पति हो जाओ.’ कुछ लोगों को यह अमिताभ अखर रहा था लेकिन ज्यादातर लोगों को बाज़ार का खड़ा किया हुआ यह अमिताभ भी भा गया।


बहरहाल, अमिताभ आज भी चरित्र निभा रहे हैं, लेकिन उनके शहंशाहत को किसी बादशाह की चुनौती झेलनी पड़ रही है। हां, ये बात और है कि शहंशाह बूढा ज़रुर हो गया है पर चूका नहीं है। बाज़ार अब भी उसे भाव दे रहा है क्योंकि उसमें अब भी दम है।

3 comments:

Udan Tashtari said...

शहंशाह बूढा ज़रुर हो गया है पर चूका नहीं है। बाज़ार अब भी उसे भाव दे रहा है क्योंकि उसमें अब भी दम है।-बिल्कुल सही कहा!!!

mohit said...

lekin... badshah ki badshahat bhi kam nahi.. aakhir shahanshan ke saamney apney aap ko baadshaah karaar to karwa HE liya..

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

शहंशाह तो ख़ैर तेल बेच ही रहा है.फिर भी जो बादशाह उसकी बादशाहत को चुनौती दे रहा है, उसकी हालत कुछ ज़्यादा ही ढीली है.