बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद वहां की जनता ने जो जनादेश दिया, क्या उससे मोहभंग की शुरूआत हो चुकी है? नीतीश अपने दो कार्यकाल के दस बरसों में सुशासन बाबू के तौर पर मशहूर हुए, और ठीक ही मशहूर हुए। बिहार में जिस राजद के शासनकाल को जंगल राज (हाई कोर्ट ने कई दफा कहा था) करार देकर नीतीश लोगों से वोट मांगने जाते थे, उन्हीं के साथ गठजोड़ करके सत्ता में वापसी हुई, यह पुरानी बात हो गई लेकिन छह महीने में ही नीतीश कुमार किस कदर कमजोर मुख्यमंत्री साबित हुए हैं, वह उनकी छवि पर बट्टा सरीखा ही है।
लेकिन जिस तरह नीतीश शराबबंदी पर अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, वह महिलाओं के वोट अपने कब्जे में बनाए रखने की उनकी खास जुगत है। साथ ही, नीतीश ने बसों और ऑटो में अश्लील गानों पर रोक लगाने का आदेश भी जारी किया है। अब नीतीश अपनी छवि को बचाए रखने के लिए जी-तोड़ कोशिशों में जुटे हैं। वह देश भर में घूम-घूमकर शराबबंदी पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। सात मई को नीतीश कुमार केरल में थे। 12 मई को वाराणसी में और 15 मई को लखनऊ गए, फिर 27 मई को कोलकाता।
क्या इस मध्यावधि चुनाव की आहट या नीतीश की तैयारा समझा जाए? शायद हां, क्योंकि पिछले छह महीने कानून-व्यवस्था के लिहाज से बिहार पर बहुत भारी गुजरे हैं।
पिथले छह महीने में बिहार में हत्या की तेरह बड़ी वारदातें हुई हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा है। दिसंबर में दरभंगा में रंगदारी न मिलने पर सड़क निर्माण कंपनी के दो इंजीनियरों और वैशाली में एक इंजीनियर की हत्या हो या जनवरी में एएसआई अशोक कुमार यादव, पटना के आभूषण व्यापारी रविकांत की रंगदारी न देने पर हत्या या फिर फरवरी में लोजपा नेता बृजनाथी सिंह की और भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर सिंह की हत्या। पत्रकार राजदेव रंजन और लोजपा नेता सुदेश पासवान की हत्या मई में की गई।
कुल मिलाकर हत्याएं या तो राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए की गई हैं या फिर रंगदारी के लिए। खुद ही समझा जा सकता है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति में किस कदर गिरावट आई है।
लेकिन इस सारी स्थिति का ठीकरा सिर्फ राजद के मनबढ़ू नेताओं पर नहीं फोड़ा जा सकता। जरा सूची पर ध्यान दीजिए, सरफराज आलम, जद-यू विधायक हैं इनपर डिब्रूगढ़ राजधानी में महिला यात्री के यौन उत्पीड़न का आरोप है। कुंती देवी गया से राजद विधायक हैं इनके बेटे रंजीत यादव ने सरकारी अस्पताल में घुसकर डॉक्टरों की पिटाई की। खुद कुंती देवी पर हत्या का मामला चल रहा है।
सिद्धार्थ सिंह, कांग्रेस के विधायक हैं। इन माननीय ने जनवरी में एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया था। सिद्धार्थ पहले भी हत्या के मामले में सज़ायाफ्ता रह चुके हैं। राजवल्लभ यादव पर फरवरी मे एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा। वह एक महीने तक फरार रहे, वैसे तो राजद ने उन्हें निलंबित कर दिया है लेकिन मामले की सुनवाई ठंडे बस्ते में है। बीमा भारती तो कानून तोड़ने नहीं, बल्कि उससे भी एक कदम आगे निकल गईं। अपने गिरफ्तार अपराधी पति को ये थाने से छुड़ा लाईं। धन्य।
गोपाल मंडल, थोड़े सभ्य हैं। यह सिर्फ धमकी देते हैं, जैसे कि विरोधियों को हत्या की धमकी देना, फिर जीभ काट लेने की धमकी देना और एक अधिकारी को गंगा में फेंक देने की धमकी देना। अब्दुल गफूर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सिवान जेल में जाकर सज़ायाफ्ता पूर्व सांसद मो शहाबुद्दीन से मिलने गए थे और जेल में बाकायदा उनका स्वागत बारातियों की तरह किया गया था।
अब इस कड़ी में मनोरमा देवी भी हैं जिनके योद्धा पुत्र रॉकी यादव की तस्वीर अभी भी टीवी चैनलों और अखबारों में हाथ में तमंचा लिए नूमदार हुआ करती है। इन्होंने साइड नहीं दिए जाने पर एक लड़के को गोली मार दी।
नीतीश को सिर्फ इन्हीं बाहुबलियों से जूझना नहीं है, बल्कि बिहार की शान में रहा-सहा बट्टा अत्यंत मेधावी टॉपरों ने भी लगा दिया है।
जब जद-यू और राजद की सरकार बिहार में बनी थी, तब नीतीश ने कानून-व्यवस्था के मसले पर कहा थाः मैं हूं ना।
जाहिर है, नीतीश काफी तनाव में होंगे। उनके दस साल के सुशासन बाबू की छवि को पर्याप्त दाग लग चुके हैं। चुनावी जीत के लिए मौकापरस्त गठबंधन सियासी दांव-पेंच माना जा सकता है लेकिन सरकार बनाए रखने के लिए बिहार के सियासी गुंडों को कब तक वह खुला खेल करने देते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। ऐसे में, सियासी हरकतों पर ज़रा गौर करते रहिएः बिहार में महागठबंधन सरकार गिरने की खबर कभी भी आ सकती है। आज नहीं, छह महीने बाद, या शायद एक बरस बाद। लेकिन कुपोषण के साथ जन्मा यह शिशु ज्यादा दिन जिएगा नहीं।
मंजीत ठाकुर
लेकिन जिस तरह नीतीश शराबबंदी पर अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, वह महिलाओं के वोट अपने कब्जे में बनाए रखने की उनकी खास जुगत है। साथ ही, नीतीश ने बसों और ऑटो में अश्लील गानों पर रोक लगाने का आदेश भी जारी किया है। अब नीतीश अपनी छवि को बचाए रखने के लिए जी-तोड़ कोशिशों में जुटे हैं। वह देश भर में घूम-घूमकर शराबबंदी पर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। सात मई को नीतीश कुमार केरल में थे। 12 मई को वाराणसी में और 15 मई को लखनऊ गए, फिर 27 मई को कोलकाता।
क्या इस मध्यावधि चुनाव की आहट या नीतीश की तैयारा समझा जाए? शायद हां, क्योंकि पिछले छह महीने कानून-व्यवस्था के लिहाज से बिहार पर बहुत भारी गुजरे हैं।
पिथले छह महीने में बिहार में हत्या की तेरह बड़ी वारदातें हुई हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा है। दिसंबर में दरभंगा में रंगदारी न मिलने पर सड़क निर्माण कंपनी के दो इंजीनियरों और वैशाली में एक इंजीनियर की हत्या हो या जनवरी में एएसआई अशोक कुमार यादव, पटना के आभूषण व्यापारी रविकांत की रंगदारी न देने पर हत्या या फिर फरवरी में लोजपा नेता बृजनाथी सिंह की और भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर सिंह की हत्या। पत्रकार राजदेव रंजन और लोजपा नेता सुदेश पासवान की हत्या मई में की गई।
कुल मिलाकर हत्याएं या तो राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए की गई हैं या फिर रंगदारी के लिए। खुद ही समझा जा सकता है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की स्थिति में किस कदर गिरावट आई है।
लेकिन इस सारी स्थिति का ठीकरा सिर्फ राजद के मनबढ़ू नेताओं पर नहीं फोड़ा जा सकता। जरा सूची पर ध्यान दीजिए, सरफराज आलम, जद-यू विधायक हैं इनपर डिब्रूगढ़ राजधानी में महिला यात्री के यौन उत्पीड़न का आरोप है। कुंती देवी गया से राजद विधायक हैं इनके बेटे रंजीत यादव ने सरकारी अस्पताल में घुसकर डॉक्टरों की पिटाई की। खुद कुंती देवी पर हत्या का मामला चल रहा है।
सिद्धार्थ सिंह, कांग्रेस के विधायक हैं। इन माननीय ने जनवरी में एक नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया था। सिद्धार्थ पहले भी हत्या के मामले में सज़ायाफ्ता रह चुके हैं। राजवल्लभ यादव पर फरवरी मे एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा। वह एक महीने तक फरार रहे, वैसे तो राजद ने उन्हें निलंबित कर दिया है लेकिन मामले की सुनवाई ठंडे बस्ते में है। बीमा भारती तो कानून तोड़ने नहीं, बल्कि उससे भी एक कदम आगे निकल गईं। अपने गिरफ्तार अपराधी पति को ये थाने से छुड़ा लाईं। धन्य।
गोपाल मंडल, थोड़े सभ्य हैं। यह सिर्फ धमकी देते हैं, जैसे कि विरोधियों को हत्या की धमकी देना, फिर जीभ काट लेने की धमकी देना और एक अधिकारी को गंगा में फेंक देने की धमकी देना। अब्दुल गफूर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सिवान जेल में जाकर सज़ायाफ्ता पूर्व सांसद मो शहाबुद्दीन से मिलने गए थे और जेल में बाकायदा उनका स्वागत बारातियों की तरह किया गया था।
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नीतीश को सिर्फ इन्हीं बाहुबलियों से जूझना नहीं है, बल्कि बिहार की शान में रहा-सहा बट्टा अत्यंत मेधावी टॉपरों ने भी लगा दिया है।
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मंजीत ठाकुर
5 comments:
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-06-2016) को "चुनना नहीं आता" (चर्चा अंक-2371) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "११ जून का दिन और दो महान क्रांतिकारियों की याद " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जाहिर है बिहार की स्थिति बद से बद तर हुई और नीतिश जी का होना नाकाफी रहा।
superb bahut achha likhte hain kripya kuch tips dijiye ki blog kofamous kaise karte hain hamara blog hai bhannaat.com
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