Thursday, December 6, 2007

आधुनिक कबीर की सूक्तियां

काल खाए सो आज खा, आज खाए सो अब,
गेहूं मंहगे हो रहे हैंस फेर खाएगा कब?

कबीरा कड़ा बाज़ार में, लिए लुकाठी हाथ,
जिसको ट्यूशन पढ़ना हो, चले हमारे साथ।


पोथी पढि-पढि जग मुआ, साक्षर भया न कोय,
तीन आखर के नकल से हर कोय ग्रेजुएट होय।

ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय,
आपन को शीतल करे दूजो को दुख होय।

प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट बिकाय
छोटी-छोटी बात पर, हर साल दंगा हो जाय।।

8 comments:

बालकिशन said...

वाह! वाह! बढ़िया गुस्ताखी की आपने. पौराणिक जी के शब्दों मे "एकदम धांसू च फांसू"

यती said...

badhiya hai

ghughutibasuti said...

बहुत जबरदस्त सूक्तियाँ हैं यदि समय पर हमें भी पढ़ने को मिली होतीं तो हमारा भी बेड़ा पार हो जाता बिना मेहनत मशक्कत के ।
शायद आपने एक बार कोई प्रश्न पूछा था , मैंने वहीं आपकी टिप्पणी के नीचे उत्तर भी दे दिया था । देखिये
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=38818012&postID=1070079200636516528&isPopup=true
घुघूती बासूती

ALOK PURANIK said...

झक्कास च बिंदास

Satyendra PS said...

बहुत सही गुरु। वइसे भी इस समय किसी चीज को उलाटने में बड़ा मजा आता है।

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया लिखते रहिए धन्यवाद

मीनाक्षी said...

आज अगर कबीर जी भी होते तो आपकी इस गुस्ताखी पर शाबाशी ही देते :) बहुत खूब गुस्ताखी...

अनूप शुक्ल said...

:)

अपने लिखे दोहे याद आ गये।

" सतगुरु हमसे रीझिकर, एक कह्या प्रसंग,
पढ़ना तो फ़िर होयगा, चलो सनीमा संग।

गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है, गढ़-गढ़ काढै खोट,
नोट लाऒ ट्यूशन पढ़ो, मिट जायें सब खोट।"

http://hindini.com/fursatiya/archives/333