Saturday, December 22, 2007

तारे ज़मीन पर, आमिर आसमान में


बॉलिवुड में अपनी अलग तरह की फिल्मों और अभिनय के लिए मशहूर आमिर खान अपनी नई पेशकश तारे जमीन पर के साथ एक बार फिर मैदान में हैं। विशेष बच्चों को लेकर बुनी गई इस फिल्म का अलग ट्रीटमेंट इसे खास साबित कर रहा है।


पिछले कुछ साल से आमिर खान नाम के इस सितारे की किस्मत के तारे बेहद बुलंद रहे हैं। रंगीला से जारी उनका सफर कामयाबी के साथ आज भी जारी है। लगान, दिल चाहता है, फ़ना रंग दे बसंती जेसी कामयाब फिल्मों के ढेर के साथ आमिर आज की तारीख में बॉलिवुड में मैथड एक्टिंग का दूसरा नाम बन चुके हैं। इसके अलावा आमिर हमेशा अलग क़िस्म की फिल्मों के चयन के लिए जाने जाते हैं। इस बार भी तारे ज़मीन पर के ज़रिए उन्होंने एक अलहदा किस्म की पटकथा पर काम किया है। फिल्म की कहानी विशेष बच्चों की समस्याओं को लेकर बुनी गई है। एक ऐसा विषय जिसे फिल्म की पटकथा के रूप में उठाना खतरे से खाली नहीं माना जाता।


आमिर ने बदलते वक्त के साथ अपनी शख्सियत और नज़रिए को बदला है। वे जोखिम उठाने और ज़रूरत पड़ने पर अपने खुद के साथ प्रयोग करने के लिए भी तैयार हो गए। उनकी पिछली फिल्में इस बात की ताकीद करती हैं।


तारे जमीन पर’ फिल्‍म की कहानी ने मुझे पहले दिन से ही सम्‍मोहित कर रखा था। आमिर मेरे सबसे पसंदीदा अदाकारों में से एक हैं। और उन्होंने इस फिल्म की कहानी भी इतने संवेदनशील और परफैक्‍ट तरीके से बुनी है कि आप भी वाह कर उठें। पूरी फिल्‍म केंद्रित है, ईशान अवस्‍थी नाम के आठ साल के बच्‍चे के ईर्द गिर्द। बच्‍चा डिसलेक्सिया नाम की एक बीमारी से पीडित है।


खास बात ये कि आमिर न सिर्फ इस फिल्म के निर्माता हैं, बल्कि इस बार उन्होने निर्देशन की कमान भी संभाली है। इसके साथ ही शंकर-एहसान-लाय का संगीत और प्रसून जोशी के गीत इस फिल्म के विषय के आयामों की तलाश करते हैं। फ़ना और रंग दे बसंती में अपने बिलकुल अलग रंग दिखाने के बाद अब आमिर तारे ज़मीन पर के गीतों की धुन पर खास बच्चों के साथ थिरक रहे हैं।


अमोल गुप्‍ते की इस कहानी में बच्‍चे को कुछ अक्षर पहचानने में परेशानी आती है और वे उसे उल्‍टे या फिर तैरते हुए नजर आते हैं। घर वाले उसे शैतान या पढाई से जी चुराने का बाहना मारकर बोर्डिंग स्‍कूल में डालने का प्‍लान बनाते हैं और बच्‍चे को मुंबई से पंचगनी की न्‍यू ईरा डे बोर्डिंग स्‍कूल में शिफ़ट कर दिया जाता है। घर से दूर जाने और उसकी चित्र बनाकर अपनी मां को डायरी बनाकर भेजने वाले सीन्‍स को आमिर ने पूरी संवेदनशीलता के साथ फिल्‍माया है।


फिल्म में आमिर एक ऐसे टीचर बने हैं, जो यह मानता है कि बच्चे की दुनिया बड़ो से अलग होती है। बच्चे के लिए बादल नीले, सूरज हरा और पानी लाल हो सकता है। मछली उड़ सकती है और हसीन औरते जलपरियों का रूप ले सकती हैं। लेकिन समझदार वयस्क इंसान बच्चों की इन बातों का बचकाना मान कर इग्नोर कर दे सकता है। लेकिन यहीं से तारे ज़मीन पर शुरु होती है।


यूं समझिए कि अगर आप इत्‍मी‍नान से फिल्‍म देख रहे हैं तो आपकी आंखें गीली होनी तय है। फिल्म देखने आए कई लोगों से हम प्रतिक्रियाएं ले रहे थे। दूसेर चैनल वाले भी थे, लोगों से मिले रिएक्शन वाकई उम्दा थे। अब आमिर जैसा बड़ा सितारा भी फिल्म में मध्यांतर से ठीक पहले एंट्री करता है। शाहरुख की तरह पहले ही फ्रेम से परदे पर दिखने की कोई ललक नहीं दिखी। ऐसा ही ामिर ने रंग दे बसंती में भी किया था, जब उन्होंने अपने साथी कलाकारों को भी बराबर मौका दिया था। अब मुझे लग रहा है कि साल की सबसे अच्छी फिल्म किसे मानूं, क्यों कि अब मुकाबला चक दे इंडिया और तारे ज़मीन पर के बीच सीधा हो गया है। फिल्‍म का संपादन दुरुस्‍त है, शंकर-एहसान-लाय के संगीत से किसी को किसी क़िस्म की शिकायत नहीं सकती। आमिर ने एक बार भी अपने सुर साधे हैं और उस पर खरे भी उतरे हैं।


आमिर खान ने किसी तरह के बॉलिवुडीय मसाले का इस्तेमाल किए बगैर शानदार फिल्म बनाई है। आमिर भारतीय फिल्मों के अलग किस्म के तारे हैं, एक ऐसा सितारा जिसके पटकथाओं की जड़ ज़मीन में हैं और जिनकी मंजिल आसमान में।

3 comments:

mamta said...

अभी फिल्म देखी नही है पर सभी लोग इसकी काफी तारीफ कर रहे है।
आपने काफी अच्छा रिव्यू लिखा है।

Srijan Shilpi said...

समीक्षा बढ़िया लगी। फिल्म वाकई लाजवाब है।

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छी फ़िल्म की प्यारी समीक्षा!