छाया में बैठ नोट की
लिक्खे वह छायावादी है।
हालावादी को ह्विस्की,रम,ठर्रा
सब की आज़ादी है।
वह रहस्यवादी कबीर से,दादू से
सचमुच क्या कम है
करे विवेचित जो रहस्य
यह थरमस की क्यों चाय गरम है?
अपनी तो ये गिनी-चुनी
परिभाषाएं हैं सीधी-सादी
श्रोता सुनकर जिन्हे पलाएं
कवि है वही पलायनवादी
लाल रोशनाई से लिखकर
पन्ने लाल कर देता
रक्त बहा देता काग़ज़ पर
वीर काव्य का सही प्रणेता
प्रगतिवाद का कवि वह है
जो संयोजक पर घूंसा ताने
सर्वोदयवादी वह है जो
पर की कविता अपनी माने
है प्रतीकवादी लिक्खे जो
उल्टे-सीधे नए प्रतीक
लाल सूर्य जो उलट गई
हो उगलदान में रखी पीक
और अकविता वाले कहते क्या
उनकी पहचान यही है
कवि मैं हूं इसका, लेकिन
यह मेरी कविता कत्तई नहीं है
श्रृंगारिक कविता लिखता कवि
बैठ किसी ड्रेसिंग टेबुल पर
विरह व्यथा लिखते कविगण
सभी ओर से धूनी रमाकर
मंजीत
4 comments:
बढ़िया है । हम तो धूनी रमाने जा रहे हैं ।
घुघूती बासूती
सटीक व्यंग है, लेकिन यथार्थ को जांचने का एक मौका भी है!
भाई लूट लिया तूने.......
जबरदस्त धुलाई है जी.
एकदम झक्कास "गुस्ताख वाशिंग पावडर" से. कमाल की रचना है.
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