पिछले दो दिन मैं छत्तीसगढ़ में रहा। रायपुर से हटकर रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ में एक नया रायपुर गढ़ डाला है। हालांकि, मंच से यह बात भी मंजूर की गई कि यह योजना अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में बनाई गई थी, इस पर खुश होने और भारत माता की जय और छत्तीसगढ़ महतारी (माता) की जय के तुमुल नाद में भावुक होने के बीच एक बात किरिच की तरह सीने में घुस गई।
रमन सिंह ने नया रायपुर क्यों बसाया। अगर यह इस बात की प्रतीक है की गरीबी से बदहाल देवभूमि उत्तराखंड और नेताओं की घटिया राजनीति झेल रहे राजनैतिक रूप से नाकाम झारखंड के सामने छत्तीसगढ़ को खुद को साबित करना है, तो इस महज एक नया शहर बसाकर साबित करने की जरूरत नहीं थी।
अगर, इक्कीसवीं सदी में देश का पहला योजनाबद्ध शहर बसाना छत्तीसगढ़ के विकास की दिशा दिखाने के लिए है, तो मूलतः गरीबी और बेरोजगारी की वजह से पैदा हुए और आंतक का पर्याय बन चुके नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की ऐसी ही बड़ी कोशिश बीजेपी सरकार ने क्यों नहीं की।
देश का बाकी का हिस्सा, छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रूप में भूलने लगा है और अगर आप मध्य प्रदेश से नहीं है तो कलेजे को हाथ लगाकर कहिए क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ में राम ने अपनी जिंदगी के दस साल बिताए थे, या कि यह राम की मां कौशल्या का मायका यानी राम की ननिहाल है। शायद पता न हो। हम और आप, और ज्यादातर लोग छत्तीसगढ़ को दंतेवाड़ा, बस्तर और अबूझमाड़ के लिए जानते हैं।
मुख्यमंत्री का दावा है कि छत्तीसगढ़ ने पिछले दस साल में दो अंकों में विकास हासिल किया है। मुख्यमंत्री जी, छोटा सा सवाल है..इस वृद्धि मेंआपने समाज के कमजोर वर्ग को कितना शामिल किया है। या आप भी अर्थशास्त्रियों की तरह मानने लगे हैं कि ऊपरी तबका विकास कर ले, तो रिस-रिस कर वो विकास निचले तबके तक भी पहुंच ही जाएगा।
मुझे नारायणपुर तक जाने का मौका मिला। अबूझमाड़ के पहाड़ और जंगल को आसमान से देखा...और उसी शाम हमारे काफिले के दोनों तरफ नाच-गा रहे आदिवासियों के चेहरे भी। रायपुर के राजभवन में जनजातियों को नृत्य के लिए बुलाया गया था।
जनजातीय नृत्य अपने उछाह और उत्साह के लिए जाने जाते हैं...मुझे राजभवन में आदिवासियों के नाच में से वो उत्साह गायब नजर आया। लगा कि तहज़ीब की पैकेजिंग की जाएगी, तो हश्र कुछ ऐसा ही होने वाला है।
नया रायपुर में नजारा दीवाली से बेहतर था...लाखो की तो आतिशबाजी छोड़ी गई। रमन सिंह जी, काश इतने का केरोसिन खरीद कर मुफ्त बंटवा देते गरीबों में तो उनकी दीवाली भी रौशन हो जाती।
जिस इनक्लूज़िव ग्रोथ की बात आप और पीएम दोनों करते है, उस ग्रोथ को आप विकास में तब्दील क्यों नहीं करते। रायपुर में नया टर्मिनल बना है एयरपोर्ट का, यहां अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी आएंगी, लेकिन कतार में सबसे पीछे खड़ा आदमी आसमान में हवाई जहाज़ को देखकर आखिर करेगा क्या। शायद सिर धुने।
हवाई जहाज की उड़ानें हो, ऊंची इमारतें हो, मुझे इनके होने से कोई उज्र नहीं, लेकिन अबूझमाड़, दंतेवाड़ा, नारायणपुर...और सारे प्रदेश की जनता के लिए कोई रोजगारपरक काम शुरु करवाते रमन सिंह जी, तो सदियां आपकी शुक्रगुजा़र होतीं।
रमन सिंह ने नया रायपुर क्यों बसाया। अगर यह इस बात की प्रतीक है की गरीबी से बदहाल देवभूमि उत्तराखंड और नेताओं की घटिया राजनीति झेल रहे राजनैतिक रूप से नाकाम झारखंड के सामने छत्तीसगढ़ को खुद को साबित करना है, तो इस महज एक नया शहर बसाकर साबित करने की जरूरत नहीं थी।
अगर, इक्कीसवीं सदी में देश का पहला योजनाबद्ध शहर बसाना छत्तीसगढ़ के विकास की दिशा दिखाने के लिए है, तो मूलतः गरीबी और बेरोजगारी की वजह से पैदा हुए और आंतक का पर्याय बन चुके नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की ऐसी ही बड़ी कोशिश बीजेपी सरकार ने क्यों नहीं की।
देश का बाकी का हिस्सा, छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रूप में भूलने लगा है और अगर आप मध्य प्रदेश से नहीं है तो कलेजे को हाथ लगाकर कहिए क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ में राम ने अपनी जिंदगी के दस साल बिताए थे, या कि यह राम की मां कौशल्या का मायका यानी राम की ननिहाल है। शायद पता न हो। हम और आप, और ज्यादातर लोग छत्तीसगढ़ को दंतेवाड़ा, बस्तर और अबूझमाड़ के लिए जानते हैं।
मुख्यमंत्री का दावा है कि छत्तीसगढ़ ने पिछले दस साल में दो अंकों में विकास हासिल किया है। मुख्यमंत्री जी, छोटा सा सवाल है..इस वृद्धि मेंआपने समाज के कमजोर वर्ग को कितना शामिल किया है। या आप भी अर्थशास्त्रियों की तरह मानने लगे हैं कि ऊपरी तबका विकास कर ले, तो रिस-रिस कर वो विकास निचले तबके तक भी पहुंच ही जाएगा।
मुझे नारायणपुर तक जाने का मौका मिला। अबूझमाड़ के पहाड़ और जंगल को आसमान से देखा...और उसी शाम हमारे काफिले के दोनों तरफ नाच-गा रहे आदिवासियों के चेहरे भी। रायपुर के राजभवन में जनजातियों को नृत्य के लिए बुलाया गया था।
जनजातीय नृत्य अपने उछाह और उत्साह के लिए जाने जाते हैं...मुझे राजभवन में आदिवासियों के नाच में से वो उत्साह गायब नजर आया। लगा कि तहज़ीब की पैकेजिंग की जाएगी, तो हश्र कुछ ऐसा ही होने वाला है।
नया रायपुर में नजारा दीवाली से बेहतर था...लाखो की तो आतिशबाजी छोड़ी गई। रमन सिंह जी, काश इतने का केरोसिन खरीद कर मुफ्त बंटवा देते गरीबों में तो उनकी दीवाली भी रौशन हो जाती।
जिस इनक्लूज़िव ग्रोथ की बात आप और पीएम दोनों करते है, उस ग्रोथ को आप विकास में तब्दील क्यों नहीं करते। रायपुर में नया टर्मिनल बना है एयरपोर्ट का, यहां अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी आएंगी, लेकिन कतार में सबसे पीछे खड़ा आदमी आसमान में हवाई जहाज़ को देखकर आखिर करेगा क्या। शायद सिर धुने।
हवाई जहाज की उड़ानें हो, ऊंची इमारतें हो, मुझे इनके होने से कोई उज्र नहीं, लेकिन अबूझमाड़, दंतेवाड़ा, नारायणपुर...और सारे प्रदेश की जनता के लिए कोई रोजगारपरक काम शुरु करवाते रमन सिंह जी, तो सदियां आपकी शुक्रगुजा़र होतीं।
2 comments:
आपकी बातों से सौ फीसदी सहमत है............. विकास का अर्थ पिछड़ो को पिछड़ा नहीं कर देना है। सबको साथ लेकर चले तो शायद पुराना ही बेहतर बन जाए.......
शुक्र है, कहीं न कहीं कुछ तो नया रचा जा रहा है।
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