Tuesday, October 2, 2007

संजय की लो ( वो वाला नहीं)..

आज ऐसा हुआ कि ... माफ कीजिए, भावनाओं में बहकर ५ डब्ल्यू और १ एच को भूल गया। प्राईवेट चैनलों की तरह। गुस्ताख़ जो हूं। बहरहाल, संजय दत्त को गांधीगीरी के लिए स्पाइस ने ग्लोबल स्प्लेंडर अवार्ड दिया। जगद्-गुरु शंकराचार्य दिव्यानंद को भी दिया। गांधी जी के विचारों को फैलाने के लिए ये पुरस्कार दिया जाता है। मोहसिना किदवई बूटा सिंह जैसे बुजुर्ग और ज्योतिरादित्य जैसे नौजवान नेता भी थे और विचारवान् संपादक मृणाल पांडे जैसी शख्सियत भी। प्राईवेट चैनलों में संजू बाबा को लाइव करने की होड़ मची थी। टिक-टैक के लिए मारा-मारी। नेताओं को लोग भूल गए। शंकराचार्य को बोलने का बुलावा मिला। चैनलों की सुंदर-युवा-कमसिन-नाजुक बदन-मीठी आवाज़ वाली-तेज़तर्रार रिपोर्टरों ने तुरंत हाथ.... माफ करें ऊंगलियों से कैंची बनाकर अपने कैमरामैन को रिकार्डिंग रोक देने को कहा। शंकराचार्य ने पहले संस्कृत में फिर अंग्रेज़ी मे धाराप्रवाह गांधीवादी विचारधारा पर बोलना शुरु किया। रिपोर्टर कहने लगी, बोल तो अच्छा रहा है, लेकिन इसे कवर करने में कोई न्यूज़ सेंस नहीं। खैर... थोड़ी देर बाद संजू बाबा वल्द सुनील दत्त मंच पर नमूदार हुए। रिपोर्टरों के बीच हल्ला मच गया। लो.. लो .. संजय की लो। मैंने कहा ले लो, ले लो, संजू की ले लो। लेकिन गुरु घंटालों, न्यूज़ की मत लो। संजय की जय। बाकी सब परास्त।

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