Monday, April 21, 2008

आईपीएल और राहुल बाबा 2



राहुल बाबा नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ यानी ‘भारत एक खोज’ लिखे जाने के तीन पीढ़ी और छह दशक बाद एक बार फिर ‘भारत की खोज’ कर रहे हैं। भारत को फिर से खोजने की योजना उनके जिन भी शुभचिंतक ने भी बनाई है यक़ीनन उनकी सोच में महात्मा गांधी नहीं रहे होंगे.

हवाई जहाज़ से उड़ीसा के पिछड़े-आदिवासी इलाक़े तक जाकर एसपीजी से घिरे राहुल गांधी यदि बैरिकेट के पार खड़े लोगों से हाथ मिला भी लें तो वे भारत को कितना समझ पाएँगे?

राहुल गांधी के मुँह से एक पते की बात फिसल गई है. राहुल बाबा ने कांग्रेस में हाईकमान या आलाकमान की परंपरा ख़त्म होनी चाहिए और पार्टी में भी लोकतंत्र दिखने की वकालत की है। पता नहीं राहुल गांधी कांग्रेस आलाकमान कहने से क्या समझते हैं लेकिन इस देश के ज़्यादातर लोग और सौ फीसद कांग्रेसी जानते-समझते हैं कि इसका मतलब गांधी परिवार होता है. यानी सोनिया गांधी और ख़ुद राहुल गांधी.

दस साल बीत गए जब कांग्रेस के अध्यक्ष सीताराम केसरी ने अपनी टोपी सोनिया गांधी के पैरों पर रखकर कहा था कि वे कांग्रेस की कमान संभाल लें.

तब से अब तक सोनिया गांधी ने कांग्रेस के लिए बहुत कुछ किया लेकिन आलाकमान की परंपरा को ख़त्म करने की कोशिश करती वे भी कभी नहीं दिखाई पड़ीं.


सार्वजनिक रुप से न उन्होंने ठकुरसुहाती बातों का प्रतिकार किया न दस जनपथ के सामने जुटने वाली चाटुकारों की भीड़ को रोका है। राज्यों में पार्टी के अध्यक्ष किस तरह बनाए जाते हैं और किस तरह बदले जाते हैं यह किसी से छिपा नहीं है. मुख्यमंत्रियों को विधायक नहीं दस जनपथ ही चुनता है.

जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने भाषण में कहते हैं कि राहुल गांधी भविष्य हैं तो इसका मतलब किसे समझ में नहीं आता? ऐसे में राहुल गांधी किससे कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी को बदलना चाहिए. अगर राहुल का उपनाम गांधी नहीं होता वे महज गोड्डा, भागलपुर या चिंकपोकली के सांसद होते तो क्या वे कांग्रेस के महासचिव बन पाते?


उत्तरप्रदेश और गुजरात में वे जमकर प्रचार करके देख ही चुके हैं कि अब गांधी परिवार के दर्शन में लोगों की भले ही दिलचस्पी बची हो, उन्हें वोट देने में उनकी रुचि ख़त्म हो चुकी है.

और ऐसा क्यों हुआ है इसके लिए भारत को जानना सच में ज़रुरी है लेकिन इस तरह नहीं जिस तरह से राहुल जानना चाहते हैं.

राहुल बाबा की सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ नेहरु-गांधी परिवार के नाम से चल रही संस्थाओं से अधिक नहीं हैं. ऐसे में वे भारत को कैसे जान सकेंगे?

अभी जो कुछ वे कहते, करते हैं उससे साफ़ दिखता है कि वे भारत को नहीं सत्ता पाने का शार्टकट जानना चाहते हैं.

लोकतांत्रिक भारत ने पिछले साठ सालों में जो कुछ हासिल किया है उसमें सबसे बड़ी उपलब्धि यह भी है कि मतदाता अब वोट पाने के शॉर्टकट को पहचानने लगा है. और यह सच राहुल गांधी को सबसे पहले समझना होगा.

और अच्छा होगा कि भारत की खोज में निकलने से पहले वे एक बार भारतीय राजनीति में अपने होने के सच को तलाश लें. और हां, हम पहले ही कह चुके हैं कि इडेन की लाईट की तरह भारतीय राजनीति में भी छद्म और
ओढे हुए नेताओं की बत्ती गुल हो सकती है।

No comments: