कभी लौह पुरुष के अवतारी माने जाने वाले पूर्व-प्रधानमंत्री, यात्रा पुरुष और भाजपा के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने अपनी रैलियां स्थगित कर दी है। लोगों को याद होगा कुछेक सप्ताह ही पहले भाजपा के यात्रा पुरुष ने भारत के लोगों के प्रति अपीन निष्ठा जताते हुए कहा था कि आतंकवाद और माओवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। बकौल आडवाणी, सुशासन, विकास और सुऱक्षा उनकी प्रतिबद्धताएं हैं। आतंकवाद से लड़ाई एक नया मुद्दा है।
बहरहाल, ऐसे जबरदस्त ५ कॉलमी बयान के बाद यात्रा रद्द कर देना और अपनी ज़बान से मुकर जाना गुस्ताख़ को हजम नहीं हो रहा है। लौहपुरुष तो अल्यूमिनियम के बने मालूम होते हैं।
गुस्ताख को याद आ रहा है कि ऐसी ही परिस्थितियों में राजीव गांधी ने अपनी सद्भावना यात्रा रद्द नहीं की थी। बेनज़ीर का नज़ीर तो सामने है ही। खासकर, भाजपा के ही एक और कद्दावर नेता ने भी खुद को संकल्प का धनी साबित किया था। मुरली मनोहर जोशी ने आतंकवाद के चरम वक्त में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर अपनी वकत साबित की थी। उस वक्त जोशी भाजपी के अध्यक्ष हुआ करते थे और तमाम धमकियों के बावजूद आतंकवादियों के गढ़ में वे तिरंगा फहराने गए थे।
आरएसएस ने भी उन्हें श्रीनग न जाने की हिदायत दी थी। आंध्र प्रदेश में उनकी जन सभाओं पर बम से दो हमले हो चुके थे। पंजाब में भी आतंकवाद का दौर चल ही रहा था, लेकिन जोशी ने घुटने नहीं टेके थे.
लेकिन चीख-चीखकर आतंकवाद के खिलाफ बयानबाजी करने वाले आडवाणी के ये तेवर उन्हे कहां ले जाएंगे। क्या आतंकवादियों को ये नहीं लगेगा कि विपक्ष का सबसे मशहूर और मजबूत नेता और प्राइम मिनिस्टर इन वेटिंग उनकी धमकियों से डर गया? क्या इससे आतंकवादियों के हौसले बढ़ नही जाएंगे? लेकिन गुस्ताख क्यो सोचे... इनकी तो आदत रही है घुटने टेकने की, आतंकियों को उनके घर तक सकुशल छोड़ आने की।
राम भला करे।
1 comment:
छोड़ दो भाई काहे इतना लतिया रहे हो। ऐसा नहीं करेंगे तो दुकान कैसे चलेगी।
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