पिछले पोस्ट में मैंने प्रेम जताने के डायरेक्ट ऐक्शन तरीके की चर्चा की थी। डायरेक्ट का तो मतलब ही होता है- सीधे। मतलब सीधी कार्रवाई। इसमें मचान पर लटके शिकारी की तरह प्रतीक्षा नहीं करनी होता। सीधे प्रेमिका के पास जाइए, सारा प्रेम एक ही दफे में प्रकट कर दीजिए। हमारे हिंदुस्तान में यह बहुत प्रचलित है।
नेतापुत्रों और सत्ता के दलालों को अगर लड़की पसंद आ जाए, और वह आगोश में आने को सहज ही राजी न हो, तो यह तरीका बेहद मुफीद लगता है। अब हमारे- आपके लिए दिक़्कत ये है कि इसमें थाने के जूते और हवालात की लात का भय होता है। लड़की के निकट बंधुजन आपको दचक कर कूट भी सकते हैं। तो इस उपाय में थोड़ा एहतियात बरतने की ज़रूरत है।
वैसे हम भी मानते हैं कि समाज में प्रेम तब तक पनप नहीं सकता जब तक प्रेम की अभिव्यक्ति के सबसे डायरेक्ट एक्शन पर से रोक नहीं लगतची। वरना संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के क्या मायने है भला।
इसके साथ ही कई अन्य तरीके हैं, वीपीपी से अभिमंत्रित अंगूठी मगांने का, जिसमें दावा किया जाता है कि सात संदर पार बैठी प्रेमिका भी आपकी गोद में पके गूलर की तरह गिर जाएगी। या फिर वशीकरण मंत्र का जिसमें एक खास जड़ी को घिसकर तिलक लगाने से सुंदर से सुंदर लड़की भी आपके वश में आ जाएगी।
खत लिखने का तरीका भी सबसे ज़्यादा पॉपुलर है। कुछ लोग इसे लहू से लिखते हैं। कुछ उत्तर आधुनिक प्रेमी तो मुगे इत्यादि के खून का इस्तेमाल करते हैं। कुछ सिर्फ जताने के लिए लाल स्याही से लिखते हैं और साथ में ताकीद भी करते हैं- लिखता हूं अपने खून से स्याही न समझना। प्रेमियों को कम मत समझिए।
अगर आपने प्रेम पत्र दिया और उसमें दो चार कविता या शायरी की डाल दी, तो समझों धूल में पड़ी सड़ रही सरकारी फाइल पर अपने रिश्वत की पेपरवेट डाल दी है। कविता भी कैसी जिसे तू ये तो मैं वो की तर्ज पर लिखा जाता है। इन कविताओं में प्रेमी अमूमन माटी का गुड्डा और पेड़ के नीचे रहने वाला मजनू इत्यादि होता है और माशूक सोने की गुड़िया वगैरह।
तो खत का ज़्यादा मजमून जानने की बजाय दो -चार पन्नो का रसधारयुक्त पत्र लिख डालिए, मुंह पर रोतडू भूमिका चिपकाइए और हां, साथ में कैमरे वाला मोबाईल फोन ज़रूर धारण करें। वक्त-बेवक्त काम आएँगे। जय बाबा वैलेंटाईन।
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