झारखंड में राजनीति का एक नया ग्रामर है विकसित हुआ है। झारखंड बने सात साल से ज़्यादा गुज़र गए, इन गुजरे सात सालों में झारखंड के लोगों को क्या मिला? वहां की विधायिका और राजनीति की क्या सौगात है वहां के लोगों को? जवाब है, पूरी व्यवस्था को अविश्वसनीय बना देना। झारखंड के शासक वर्ग ने दिका दिया कि वे पूरे स्टेट को भी बेच सकते हैं। हालांकि राजनीति के जिस ग्रामर की बात मैं कर रहा हूं, वह देश भर में यत्र-तत्र दिखाई देता था, लेकिन झारखंड में यह ग्रामर स्थापित हो गया है।
भ्रष्टाचार के प्रैक्टिसनर। आचार-व्यवहार में जो प्रामाणिक तौर पर सबसे भ्रष्ट हैं वे ही भ्रष्टाचार की बुराई कर रहे हैं। यानी चोर और साधु की भूमिका एक हो गई है। नायक, खलनायक लग नहीं रहे। पर यह झारखंड का ग्रामर है। कहावत है- सेन्ह पर बिरहा। यानी सेंध की जगह से ऊंचे आवाज में गीत गाया जाए। भयमुक्त और सात वर्षों के झारखंड की देन है ये।
क्या झारखंड विकास की नई पगडंडी पकड़ सकता है? हां, लेकिन तब जब हम मानलें कि मौजूदा राजनीतिक पार्टियों में से कोई झारखंड का पुनर्निर्माण नहीं कर सकता। लोकपहल, छात्रशक्ति का उदय, झारखंड के सार्वजनिक जीवन की संपूर्ण सफाई के लिएनागरिक समाज का बनना-विकसित होना और कुराज के खिलाफ आक्रोस - यही रास्ते बचे हैं झारखंड गढ़ने के।
एक स्थापित और प्रामाणिक तथ्य है कि ईमानदार नौकरशाही बड़ा काम कर सकती है। में ऐसे लोग भी होंगे। उनके पक्ष में माहौल बनाना बड़ी चुनौती है। नया गढ़ने के लिए इँस्टिट्यूशंस की बुनियाद ज़रूरी है। किसी भी समाज का चाल. चरित्र और चेहरा इँस्टिट्यूशंस ही बदल सकते हैं। इँस्टिट्यूशंस शिक्षा में, प्रशासन में राजनीति में यानी उन सभी क्षेत्रों में जहां मानव संसाधन को गढ़ा और बनाया जाता है।
जाति, धर्म और समुदाय और क्षेत्र से परे उदार राजनीति को प्रश्रय देना ज़रूरी है। आज हर दल में, शासन में मीडिया में अच्छे लोग हैं, पर वे पीछे हैं। ऐसे लोग की एकजुटता और सक्रियता क़ानून का राज स्थापित करने में मददगार होगी। यही हीरावल दस्ता समाज और राजनीति को अनुकतरणीय और नैतिक बनाने की बुनियाद रख सकता है।
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