Tuesday, February 26, 2008

तमिल सिनेमा- बदलाव की बयार-3


तमिल सिनेमा के इस बदलाव की ठीक शुरुआत कब हुई यह कहना तो मुश्किल है। लेकिन मोटे तौर पर यह नई लहर ऑटोग्राफ और कादल से मानी जाती है। दोनों ही फिल्में खूबसूरती के साथ बनाई गई मनोरंजक और सुपरहिट फिल्में रही हैं। ज़ाहिर है, तमिल फिल्मोंद्योग बड़े सितारों के बिना भी छोटी फिल्मों को ज़ोरदार कमाई करता देखकर भौचक्का रह गया।

शक्तिवेल की कादल और चेरन की ऑटोग्राफ ने युवा निर्देशकों को एक ऐसे दर्शरक वर्ग के बारे में संकेत दे दिया- जो चरित्रप्रधान, अच्छी पटकथा वाले कम बजट की फिल्मों को सर आंखों पर बैठाने के लिए तैयार है।

शकितवेल जैसे निर्देशकों ने कल्लूरी में पात्रों के अभिनय को डॉक्युमेंट्री जैसी नेचरलनेस दी। खासकर, फिल्म में कायल बनी हेमलता को देखकर आपको लगेगा ही नहीं कि वह अभिनय कर रही हैं। शक्तिवेल ने तमन्ना से भी ऐसी शानदार और संवेदनशील अभिनय कराया है। वाकई कल्लूरी एक साथ ही तनाव और हास्य के पुट लेकर गुंथी गई है।

अमीर की पारुथीवीरन गंवई तमिलनाडु के दो वंशों के बीच के खूनी झगड़े की स्तब्धकारी और क्रूर कहानी है। यह पहली तमिल फिल्म है, जो छोटे तमिस क़स्बे को पूरी सच्चाई के साथ चित्रित करती है। फिल्म में तमिल गांव अपनी पूरी शै के साथ मौजूद है। असली रंगों असली बोलियों और रीति-रिवाजो के साथ। दिलचस्प है कि इस फिल्म क सबसे मजबूत चरित्र एरक औरत है। इस किरदार में प्रियमणि नज़र आती है। यह किरदार अपने दिलो-दिमाग पर भरोसा करता है।मैं वह दृश्य भूल नहीं पाता, जिसमें पिता से मार खाई नायिका जबरदस्त भूखी है और खाने की कोशिश करती है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज पर इतनी सीधी और प्रभावशाली टिप्पणी तो मैंने किसी किताब में भी नहीं पढी है।

लेकिन, चार फिल्मों को पूरी तरह देखने के बाद मुझे लगाकि तमिल फिल्म निर्देशक मानते हैं कि यथार्थवादी चीज़ों का समापन ज़रूरी रूप से त्रासद मानते हैं। डार्कनेस की तरफ झुकी फिल्में अपना आयाम सीमित कर रही हैं. पाराथीवीरन हो या कट्टराधु तमिल या फिर कल्लूरी, हर फिल्म में यह प्रथा दिखती है। नवेले निर्धसक यकीन नहीं कर पा रहे है कि कुर्सियों पर नायक-नायिका के संघर्ष और उनके दुख देखने के बाद पहलू बदल रहा मेरे जैसा दर्शक इन चरित्रों की जीत देखना चाहता है। भले ही यह सांकेतिक ही क्यों न हो।

वैसे अभी तक तमिल व्यावसायिक सिनेमा में बड़े स्तर पर क्रांति नहीं आई है, लेकिन असर दिखने लगा है और बदलाव को महसूस किया जा सकता है।

मंजीत ठाकुर

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