सुना तो नाम बहुत था मुहब्बत का.. लेकिन निकला वही। बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, काटा तो कतरा-ए-ख़ूं न निकला की तर्ज पर। आजकल लोग ब्लॉग पर भी प्रेम को लेकर बेहद भावुक हो रहे हैं।
वैलेंटाईन दिवस पास आ रहा है। लड़कियां लड़कों की और लड़के लड़कियों की तलाश में ज़ोर-शोर से भिड़े हुए हैं। जोधा का अकबर से ब्याह हो रहा है, कुछ ऐसे ही कि संयोगिता का स्वयंवर हर्षवर्धन से करवा दें। के आसिफ ने कह दिया कि जोधा अकबर की ब्याहता थी, तो उसी जमी-जमाई दुकान में गोवारिकर ने भी अपनी दुकानदारी सजा ली। हमें क्या उज्र हो सकता है?
महर्षि वैलेंटाईन का दिवस मनाना ज़ोर पकड़ रहा है। जिन्हें जोड़ा हासिल नहीं हो पाता. अपनी खीज निकालते हैं- अपसंस्कृति, अश्लीलता चिल्ला-चिल्लाकर। दरअसल, दोष इस पीढी का नहीं। जनाब दोष तो उस पीढी का भी नहीं।
उन्हें पता है कि उम्र के एक खास मौड़ तक आदमी इसी ग़लतफहमी में पड़ा रहता है कि उसका भी एक-न-एक दिन कहीं-न-कहीं किसी न किसी से यक-ब-यक प्यार हो जाएगा। लेकिन ज्यों-ज्यों आस-पड़ोस की लड़कियां धड़ाधड़ अन्य लोगों की बांहों इत्यादि में जाने लगती हैं तो उसे यह तत्व ग्यान होता है कि प्रेम होता नहीं वरन् बेहद कोशिशों के बाद किया जाता है। इसके लिए कई मित्रों को फील्डिंग करनी होती है। और हां , ये प्यार को खींचना जिसे अच्छी भाषा में निभाना कहते हैं, वह भी बेहद कठिन क्रिया होती है क्यों कि इसमें कलदार खर्च होते हैं।
बहरहाल, मित्रों के मर्म को न छूते हुए मैं लड़कियों को अपनी प्यार में गिरफ्तार करने, या उन्हें प्यार में डालने या लुच्चो की भाषा में पटाने के कुछ ऐसे तरीकों पर प्रकाश अर्थात् लाईट डालने की हिमाकत करूंगा, जिसे कई मनीषियों ने अपने अर्जुन टाईप बेहद निकट शिष्यों को बताया है।
पहला तरीका तो यही है, कि उस लड़की के- जिसे आप पिछले तीन महीनों से प्यार कर रहे हैं और उसे अभी तक इस बात का पता भी नहीं है- के घर के चक्कर लगाना शुरु कर दें।
प्यार के मामले में लड़कियों वाली गली को महबूब की गली, प्यार की गली, यार कीगली, तेरी गली जैसे बेहद मुकद्दस नामों से नवाजा जाता है। बशीर बद्र की एक पंक्ति याद आ रही है- हम दिल्ली भी हो आए हैं, लाहौर भी घूमे, यार मगर तेरी गली, तेरी गली है। भले ही उस गली में आड़ी-तिरछी नालियों का जाल बिछा हो, बदबूवाली बयार उस गली में बह रही हो, नालियों में सूअर लोट रहे हों, और एक बार काजल की कोठरी की तरह गली में घुसे तो पैर अति-पवित्र गोबर से सनकर ही वापिस, आएंगे। फिर भी यार की गली तो यार की गली ही है।
हो सकता है कि लड़की आप को दिख जाए, या फिर आप जैसे महान प्रेमी को लड़की के कपड़े सूखते दिख जाएं, तो भी आप संतोष ही करेंगे। लेकिन इसमें कठिनाई ये है कि इसमें कई चक्कर लगाने पड़ सकते हैं, और आप काया से बम खटाखट हैं। अगर आप सारी ऊर्जा यार की गली के चक्कर लगाने में ही खर्च कर देंगें तो फिर प्यार हो जाने के बाद होने वाली अंतरंग क्रिया के लिए ऊर्जा कहां से लाएंगे। जबकि शिलाजीत इत्यादि बेचने वाले महान विद्वानों का कहना है कि इस काम में घोड़े के बराबर ऊर्जा की दरकार होती है।
जारी
वैलेंटाईन दिवस पास आ रहा है। लड़कियां लड़कों की और लड़के लड़कियों की तलाश में ज़ोर-शोर से भिड़े हुए हैं। जोधा का अकबर से ब्याह हो रहा है, कुछ ऐसे ही कि संयोगिता का स्वयंवर हर्षवर्धन से करवा दें। के आसिफ ने कह दिया कि जोधा अकबर की ब्याहता थी, तो उसी जमी-जमाई दुकान में गोवारिकर ने भी अपनी दुकानदारी सजा ली। हमें क्या उज्र हो सकता है?
महर्षि वैलेंटाईन का दिवस मनाना ज़ोर पकड़ रहा है। जिन्हें जोड़ा हासिल नहीं हो पाता. अपनी खीज निकालते हैं- अपसंस्कृति, अश्लीलता चिल्ला-चिल्लाकर। दरअसल, दोष इस पीढी का नहीं। जनाब दोष तो उस पीढी का भी नहीं।
उन्हें पता है कि उम्र के एक खास मौड़ तक आदमी इसी ग़लतफहमी में पड़ा रहता है कि उसका भी एक-न-एक दिन कहीं-न-कहीं किसी न किसी से यक-ब-यक प्यार हो जाएगा। लेकिन ज्यों-ज्यों आस-पड़ोस की लड़कियां धड़ाधड़ अन्य लोगों की बांहों इत्यादि में जाने लगती हैं तो उसे यह तत्व ग्यान होता है कि प्रेम होता नहीं वरन् बेहद कोशिशों के बाद किया जाता है। इसके लिए कई मित्रों को फील्डिंग करनी होती है। और हां , ये प्यार को खींचना जिसे अच्छी भाषा में निभाना कहते हैं, वह भी बेहद कठिन क्रिया होती है क्यों कि इसमें कलदार खर्च होते हैं।
बहरहाल, मित्रों के मर्म को न छूते हुए मैं लड़कियों को अपनी प्यार में गिरफ्तार करने, या उन्हें प्यार में डालने या लुच्चो की भाषा में पटाने के कुछ ऐसे तरीकों पर प्रकाश अर्थात् लाईट डालने की हिमाकत करूंगा, जिसे कई मनीषियों ने अपने अर्जुन टाईप बेहद निकट शिष्यों को बताया है।
पहला तरीका तो यही है, कि उस लड़की के- जिसे आप पिछले तीन महीनों से प्यार कर रहे हैं और उसे अभी तक इस बात का पता भी नहीं है- के घर के चक्कर लगाना शुरु कर दें।
प्यार के मामले में लड़कियों वाली गली को महबूब की गली, प्यार की गली, यार कीगली, तेरी गली जैसे बेहद मुकद्दस नामों से नवाजा जाता है। बशीर बद्र की एक पंक्ति याद आ रही है- हम दिल्ली भी हो आए हैं, लाहौर भी घूमे, यार मगर तेरी गली, तेरी गली है। भले ही उस गली में आड़ी-तिरछी नालियों का जाल बिछा हो, बदबूवाली बयार उस गली में बह रही हो, नालियों में सूअर लोट रहे हों, और एक बार काजल की कोठरी की तरह गली में घुसे तो पैर अति-पवित्र गोबर से सनकर ही वापिस, आएंगे। फिर भी यार की गली तो यार की गली ही है।
हो सकता है कि लड़की आप को दिख जाए, या फिर आप जैसे महान प्रेमी को लड़की के कपड़े सूखते दिख जाएं, तो भी आप संतोष ही करेंगे। लेकिन इसमें कठिनाई ये है कि इसमें कई चक्कर लगाने पड़ सकते हैं, और आप काया से बम खटाखट हैं। अगर आप सारी ऊर्जा यार की गली के चक्कर लगाने में ही खर्च कर देंगें तो फिर प्यार हो जाने के बाद होने वाली अंतरंग क्रिया के लिए ऊर्जा कहां से लाएंगे। जबकि शिलाजीत इत्यादि बेचने वाले महान विद्वानों का कहना है कि इस काम में घोड़े के बराबर ऊर्जा की दरकार होती है।
जारी
1 comment:
बहुत सही हम भी आजमायेंगे ।
अगर आपकी अगली पोस्ट पर टिप्पणी न मिले तो अपने चेले से अस्पताल मिलने अवश्य आ जाना । वो क्या है न कि अपनी माशूका के भीम समान तीन भाई और २ चाचा हैं :)
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