Friday, April 25, 2008

एक कविता-

कोई नहीं पढ़ता,
चेहरे पर लिखे प्रेम के अक्षर
लगता है सारे हो गए हैं,
निरक्षर

4 comments:

विनीत कुमार said...

हो सकता है साक्षर होने पर भी भाषा की समस्या आड़े आ जाती हो, जैसे अंग्रेजी तो आती है लेकिन बोलते समय झिझक मार जाती है।

राजीव रंजन प्रसाद said...

अच्छी क्षणिका। बधाई स्वीकारें..

***राजीव रंजन प्रसाद
www.rajeevnhpc.blogspot.com

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर, छोटी सी बात बडा आशय ।

दीपान्शु गोयल said...

बहुत अच्छा मंजीत भाई। काश कोई हमारा भी चेहरा पढ पाता.....