मैं पानी हूं, आप न मेरे बिना जी सकते हैं, न मेरे साथ..। आपके लिए न सूखा मुफीद है न बाढ़। आज मेरी कमी को हर जगह महसूस कर सकता है इंसान। दुनिया का हर हिस्सा मेरी कमी से जूझ रहा है। बड़े लोग कहते हैं कि तीसरी लड़ाई मेरी वजह से ही होगी। मेरी कमी ने आज चंदेल राजाओं की राज़धानी महोबे में मारामारी मचा दी है।
हर तीसरे दिन मेरे लिए झगड़े होने लगे हैं। मेरी कमी से इलाका सूखे औरअकाल से जूझ रहा है। इसके साथ ही अवैध खनन ने बुंदेलखंड के इस इलाके को बोंडा बना दिया है।
17 जुलाई 2007 को पिछली बार यहां के लोगों ने पंद्रह मिनट की बारिश देखी थी। उसके बाद यहां मेरी एक बूंद तक नहीं टपकी। मुझे भी लग रहा है कि प्यास से व्याकुल धरती के सीने में मुझे मौजूद होना चाहिए। लेकिन करूं क्या.. आपने खुद ही मेरा रास्ता रोक रखा है।
बुंदेलखंड में पाताल से पानी लाने के उपाय नाकाम होते जा रहे हैं। चंदेलों के बनाए कीरत सागर और मदन सागर जैसे बड़े तालाबों ने दम तोड़ दिया है। बुंदेलखंड में नदियां तो हैं लेकिन किनारे-किनारे निकल लेती है। केन, बेतवा और धंसान जैसी नदियों ने भी इलाके का साथ देना छो़ड़ दिया है। शायद यही वजह रही कि पुराने लोगों ने तालाबों पर भरोसा किया, जो हाल तक मेरी कमी पूरी करते रहे।
तालाब बनवाने वाले इकाई में थे, बनाने वाले दहाई में लेकिन इस इकाई और दहाई ने सैकड़ों की तादाद में तालाब बना दिए। इन्हीं तालाबों ने हाल तक यहां की धरती की प्यास बुझाई।
फिर विकास की बात हुई तो विकास की खातिर गौरा पहाड़, कबरई और कुलपहाड़ के इलाके में पहले जंगल कटे, फिर मिट्टी हटाई गई और फिर पहाड़ भी खोद दिए गए। पहाड़ों को हटाने के लिए डाइनामाईट का इस्तेमाल हुआ और इस बारुद ने पहाड़ों को नक्शे से गायब कर दिया।
हीरा और बेशकीमती पत्थर उगलने वाली धरती पानी नहीं उगल पा रही। जहां पीने का पानी न हो, वहां खेती के लिए पानी कहां से आएगा। महोबे का पान, पानी की कमी से खत्म होने की कगार पर है। पान की लाली का रस पानी की वजह से ऊसर हो रहा है।
आल्हा और ऊदल जैसे वीरों की धरती के लाल, देश के लिए नहीं पानी की एक बाल्टी के लिए आपस में ही भिड़ रहे हैं।
मामला महज अकाल का ही नहीं है। अकाल से भी ज़्यादा खतरनाक होता है अकेले पड़ जाना। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की खींचतान में बुंदेलखंड अकेला पड़ता जा रहा है।
बुंदेलखंड तो महज एक मिसाल है। अगर आपने मुझे बचाना नहीं सीखा तो बुंदेलखंड देश के हर राज्य और हर जिले में पैदा हो जाएगा। ज़रूरत है कि परंपरा को फिर से जिंदा किया जाए, मरते जा रहे तालाबों को फिर से जिलाया जाए, उनके आगर और आगार में मेहनत से निकले पसीने की बूंद मुझे बचाने कीी रवायत को नई जिंदगी देगी।
सिर्फ सरकार पर जिम्मेदारी डालने से यह काम पूरा नहीं होगा, आम आदमी को पानी बचाने के लिए आगे आना होगा। कुंओं तालाबों और नहरो में मेरे होने के साथ-साथ इंसान की आंखों में भी पानी रहना बहुत ज़रुरी है।
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