(ज्ञान जी के ब्लाग को पढ़ने के बाद हिंदी स्लैंग की दिशा में काम करने की इच्छा जगी है। उनके पोस्ट और पोस्ट पर आए कमेंट्स और कुछ ताजा़ दम शब्दों को लेकर कुढ शब्दकोषनुमा चीज़ बनाना चाह रहा हूं। आपका सहयोग अपेक्षित है। इसमें किस्सागोई वाले राजीव से भी चीज़े उडाई गई हैं। साभार- गुस्ताख़)
खतम--प्रयोग- आप तो एकदम खतम आदमी है (सौजन्य शिवकुमार मिश्र )
कसवाना- प्रयोग- कहां से कसवाए हो जी? (सौजन्य उपेद्र कुमार सिंह )
चोमू- अर्थ- गंवई लंठ- शहरीपने ने चोमूत्व को खतम कर दिया है (सौजन्य- ज्ञानदत्त पांडेय)
वाट लगना- अर्थ तो सबको पता ही है
कई स्लैंग सीधे ऐसा संवाद करते हैं कि हम भद्रजनों के इस्तेमाल करने पर यहाँ हाय तोबा मच जायेगी .वे मानव की मूल वृत्तियों और जननांगों से सीधा सम्बन्ध रखते हैं -कुछ थोडा भद्र हैं जैसे -
बकलंठ ,भुच्चड़ ,बोंगा ,चाटू ,लटक रेजरपाल, लटरहरामी,खड़दूहड आदि..(सौजन्य- अरविंद मिश्रा)
अगर जेब पर "फटका" न लगे और आप कोई "लफडा" न करें तो मुम्बईया स्लैंग बताने को हम तैयार हैं. बाद में चाहे आप मित्र मंडली में "खाली पीली बूम" मारते रहें की ये स्लैंग आप ने ही इजाद किए हैं , जैसे शिव हमसे सुन कर अपने नाम की ख़ुद ही " पुंगी " बजाते हैं.- (सौजन्य- नीरज गोस्वामी)
और अब पेश हैं कुछ स्पेशल बिहारी शब्द- बिहार स्पेशल शब्दकोष। अधिकतर शब्द तदभव ही हैं। मगह, मैथिली, अंगिका, भोजपूरी और मसाले के रूप में पटनिया। लोगों का मानना है कि पटना में मगही भाषा बोली जाती है। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। पटना में पटनिया बोली जाती है जो पूरे राज्य की भाषाओं और राष्ट्रभाषा हिंदी का मिश्रण है। पेश है शब्दकोश के कुछ जाने-पहचाने शब्द:
कपड़ा फींच\खींच लो - कपडा़ साफ़ करना
बरतन मईंस (मांज)लो, ललुआ,- लालू
ख़चड़ा, खच्चड़,- खच्चर(गाली)
ऐहो- ऐ
सूना न- सुनाओं न, सुनो न
ले लोट्टा, ले बलैया,
ढ़हलेल, बुड़बक,भकलोल, बकलाहा- बेवकूफ
सोटा- डंडा
धुत्त मड़दे, का हो मरदे,
ए गो, दू गो, तीन गो- एक दो तीन,
का रे- क्या भई
टीशन (स्टेशन), चमेटा (थप्पड़),
ससपेन (स्सपेंस),
हम तो अकबका (चौंक) गए,
जोन है सोन, जे हे से कि,
कहाँ गए थे आज शमावा (शाम) को?,
गैया को हाँक दो,
का भैया का हाल चाल बा,
बत्तिया बुता (बुझा) दे,
सक-पका गए,अकबकाना
और एक ठो रोटी दो,
कपाड़- (सिर,
तेंदुलकरवा गर्दा मचा दिया,
धुर् महराज, अरे बाप रे बाप,
हौओ देखा (वो भी देखो),
ऐने आवा हो (इधर आओ),
टरका दो (टालमटोल), लैकियन (लड़कियाँ),
लंपट, लटकले तो गेले बेटा (ट्रक के पीछे),
की होलो रे (क्या हुआ रे),
चट्टी (चप्पल), काजक (कागज़), रेसका (रिक्सा),
ए गजोधर,
बुझला बबुआ (समझे बाबू),
सुनत बाड़े रे (सुनते हो),
फलनवाँ-चिलनवाँ,
कीन दो (ख़रीद दो),
कचकाड़ा (प्लास्टिक),
चिमचिमी (पोलिथिन बैग),
हरासंख,
चटाई या पटिया,
खटिया, बनरवा (बंदर),
जा झाड़ के,
पतरसुक्खा (दुबला-पतला आदमी),
ढ़िबरी, चुनौटी,
बेंग (मेंढ़क),
नरेट्टी (गरदन) चीप दो,
कनगोजर-सेंटीपॉड
गाछ (पेड़), गुमटी (पान की दुकान),
अंगा या बूशर्ट (कमीज़),
चमड़चिट्ट, लकड़सुंघा, गमछा, लुंगी, अरे तोरी के,
अइजे (यहीं पर),
हहड़ना (अनाथ), का कीजिएगा (क्या करेंगे),
दुल्हिन (दुलहन), खिसियाना (गुस्सा करना),
दू सौ हो गया,
3 comments:
बुझला बबुआ
सही बढ़ाया.
@गुमटी (पान की दुकान),
पटना में रेलवे क्रोस्सिंग को और कानपुर में पूरी की पूरी मार्केट को ही गुमटी क्यों कहा जाता है जी. वैसे कानपुर में जहाँ मार्किट वहीं एक रेलवे क्रोस्सिंग भी है.
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