एक ब्लॉग कक्का जी ने भी खोल दिया है लेकिन वे उदास हैं। कोई उनको नोटिस भी नहीं लेता। उनके ब्लॉग पर कोई कमेंट भी नहीं करता। कक्का इसी वजह से परेशां हैं। वह तो कोई चार वेदों को जानने वाले भी नहीं है कि किसी मोहल्ले या गली या नुक्कड़ पर जाकर कोई तीखी कमेंट महज इस वजह से कर डालेंकि लोग उन्हें नोटिस करें। कक्का जी बड़े संवेदनशील हैं।
एक दम रोने-धोने की मुद्रा में आ गए। बोले बेटवा गुस्ताख़ तुम्ही कोई रास्ता बताओ। अब गुस्ताख भी उसी मर्ज की शिकार है करे तो करे ंक्या। जाएं तो जाएं कहां? बहरहाल, तय ये रहा कि जिस देश में फ़िल्मी सितारों को भगवान माना जाता है वहां ब्लॉग के ज़रिए एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना ही श्रेयस्कर है।
अगर आप इंडस्ट्री के शहंशाह हैं। तो बादशाह के टेलिविज़न शो को फ्लॉप करार दे दें। अगर आप नए नवेले निर्देशक बने हैं और कामयाबी आपके सर चढ़कर बोलने को बेताब हैं तो ऐसा करें कि अपने कुत्ते का नाम किसी मशहूर अदाकार के नाम पर रख दें। नाम नहीं भी रखा हो तो क्या, आप अपने ब्लॉग पर इसका ऐलान भर कर दें। ब्लाग हिट। और आप भी। हर किसी को पता हो जाएगा, कि पढाई लिखाई के नाम पर अंडा रहे आप ब्लॉग लिखाई के मामले में पिछड़े नहीं हैं।
नहीं... ितने भर से काम नहीं चलेगा। आप पहले विवाद खड़ा करें और फिर उस पर माफी मांग लें। इसके दो फायदे होंगे। एक तो आपके पास कम से कम दो पोस्ट का मसाला रहेगा। दूसरे, विवाद की वजह से वे पढे भी जाएंगे। वैसे ये सारे तीर तबी चल सकते हैं जब आप पहले ही मशहूर हों और विवाद खड़े करके आपकी मशहूरियत में चार चांद लगते हों। लेकिन अगर आप जानी-मानी शख्सियत नहीं है और आपके बुरी तरह यकीन है कि थोड़ा बौद्धिक वितंडा खड़ा करके आप भी जाने-माने हो सकते हैं. तो सबसे पहले कीजिए ये कि हर ब्लाग पर जाकर नक्सलवाद से लेकर महिला विमर्श और मुद्रास्फीति तक हर मामले में अपनी टांग अडानी शुरु कीजिए। वैचारिक कै किया कीजिए। लोगों को समझाइए कि बेट्टा, हमसे ज्यादा तुम नहीं जान सकते। कि, तुम्हें हर मामले में हमसे कोचिंग लेनी होगी। उसकी भाषाई गलतियों पर क्लास ले लीजिए। ये कुछ इस तरह हो कि आपसे असहमत होने वाला चित्त हो जाए। अपना एक गुट बना लीजिए.. ब्लागियों का। ऐसा करने से आपकी गिरोह के लोग ही आपके दो कौड़ी के पोस्ट पर वाह-वाह, साधु-साधु किया करेंगे। तू मेरी खुजा मैं तेरी खुजाता हूं कि तर्ज पर। मतलब इतनी बौद्धिक अय्याशी कीजिए कि बस हाहाकार मचा दीजिए।-गुस्ताख ने गहरी सांस ली।
इस धाराप्रवाह प्रवचन के बाद कक्का जी का सूजा हुआ मुंह थोडा शेप में आया। वो चलने लगे। गुस्ताख ने टोका कक्का जी कहां, कहने लगे नेटवर्किंग के लिए ताकि हमारी पोस्ट पर भी कमेंट आने शुरु हो जाएँ।
10 comments:
आप बहुत फंडू ब्लॉगर लगते हैं !!
Is this comment or complement??
हिला दिया गुरु..बड़े बड़े आज गाल सहलाएंगे। ये बादशाहों की ही बात नहीं है..कई स्वयंभू हैं..जो खुद को बादशाह से कम नहीं मानते। लगे रहो..लिखने का स्टाइल दिल चुरा गया..सोंचता हूं एक दिन सानिध्य में आऊं...
क्या बात है..एक साथ ही दागा...छपा भी साथ साथ..मेरे ख्याल से वो कंम्पलीमेंट ही है..महिलाओं का ये खास तरीका है..
badhiya hai ji..
ek baat yaad aayi..
mere ek T-shirt par caption likha hua hai : "Smoking is a dying art."
mere ek mithra ne poochha ki it is comment or complement? maine kaha, jaisa tum samajhna chaaho vaisa hi hai.. iske do faayde.. sabhi khush aur koi vivaad bhi nahi.. :)
सोच रहा हु राज ठाकरे का ब्लॉग आएगा तो क्या होगा.. उनके पास तो ऐसे कई लेख होंगे.. विवादो वाले
तारीफ ही है !
तब तो बहुत शुक्रिया नीलिमा जी, तारीफ की आदत नहीं तो हर आदमी पर शुबहा होता है। एक बार फिर तहे दिल से शुक्रिया...
वाकई गुस्ताख है जी आप तो....एक बार ज्ञान्दत जी ने भी नुस्खे बताये थे .....पर हमे कई महाशय अच्छे लगते है जिनके पास पहले से ही जमा की हुई टिपण्णी है ....बस उन्हें ही चिपका देते है पर नज्म को कई बार कविता ओर गजल को......कुछ ओर कह जाते है......
चलिये सूजा मूँह शेप में आ गया-टेंशन खत्म हुई.
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