Friday, November 30, 2007

फिल्म- द पोएट चाइल्ड

जिजीविषा की अद्भुत गाथा

भारत में ही नहीं दुनिया भर में ईरानी फिल्मों को लेकर एक शानदार उत्साह है। लोग उन्हें देखना चाहते हैं। गोवा में भी दो ईरानी फिल्में हैं, एक तो है द ईरानियन प्रिंस जिसे दुर्भाग्यवश मैं देख नहीं पाया हूं अभी तक। लेकिन एक अन्य फिल्म थी द पोएट चाइल्ड। ये देखी। ये फिल्म एक अनपढ़ पिता, जो अब अपंग होने की वजह से कारखाने में काम नहीं कर सकता और उसके बेटे के बीच के बेहद मार्मिक रिश्ते की कहानी है. पिता-पुत्र में एक शानदार कैमिस्ट्री है। बच्चे का अभिनय वयस्कों को भी मात दे दे।

बच्चा स्कूल में पड़ने जाता है, लेकिन अनपढ़ पिता अपने रिटायरमेंट के लिए खुर्राट सरकारी अधिकारियों से पार नही पा पाता। एक समझदार की तरह लड़का अपने पिता को पढ़ाई न करने के बुरे नतीजे बताता रहता है, और साथ ही साथ सरकारी अधिकारियों को नियम-कायदों की असली और नई किताब के ज़रिए लाजवाब भी करता जाता है.( वैसे यह साबित हो गया कि ईरान हो या भारत, सरकारी अधिकारी हर जगह एक जैसे अडंगेबाज होते हैं)

फिल्म में कई प्रसंग ऐसे हैं, जो बच्चे को बच्चा नहीं एक पूरी पीढ़ी का प्रतिनिधि साबित करते हैं। कई जगहों पर प्रतिनिधि ने एक्वेरियम की अकेली मछली के ज़रिए बेहतरीन मेटाफर का इस्तेमाल किया है।

वह बच्चा जो अपनी दुनिया में अकेला है, जिसे बूढे बाप की देखभाल भी करनी है, उससे संवाद भी करना है, अधिकारियों से अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी है। और बीच-बीच में अपना बचपन भी बचाए रखना है। यह फिल्म समाकालीन झंझावातों के बीच जिजीविषा की अनोखी दौड़ है। फिल्म के एक दृश्य में एक चोर उसके पिता की एकमात्र संपत्ति साइकिल चोरी करके भागने लगता है। उसी दिन जिस दिन सरकारी अधिकारी लड़के के पिता को पेंशन देना मंजूर कर लेते हैं। हाथ में मछली लिए का बरतन लिए लड़का उस चोर के पीछे भागता है। और अचानक आपको द बाइसिकिल थीव्स की याद आ जाती है.।

बहरहाल, चोर का पीछा करके आखिरकार उसे पकड़ लेता है। पर भागमदौड़ में मछली का बरतन टूट जाता है... लड़का कपड़े वाले प्लास्टिक के थैले में नाली का पानी भर के मछली डालता है। फिल्म के इस आखिरी दृश्य में नाली के पानी में भी मछली जिंदा है, लड़के के बाप को नाममात्र को पेंशन मिली है, फिर भी वह खुश है, लड़का अपने पिता को पढना सिखाता है। इससे बेहतर जिजीविषा की गाथा क्या हो सकती है भला? जहां तक साक्षरता के सवाल है.. यह फिल्म किसी भी सरकारी प्रचार से ज़्यादा प्रभावी साबित होगी।

मंजीत ठाकुर

1 comment:

मीनाक्षी said...

दोनो फिल्मों की समीक्षा पढकर अच्छा लगा. लेकिन आपको फिल्मों के ईरानी नाम भी लिखने चाहिए थे.
एक और ईरानी फिल्म ज़रूर देखिएगा
मिम मिसले मदर mim mesle madar..
(m for mother)