(पुण्य प्रसून वाजपेयी के ब्लॉग पर कविता पढ़ने के बाद )
मेरे यार लोग प्रेम में और बेवफाई में कविताएं लिखते हैं। मै भी कई बार कविता टाइप लिखने की गुस्ताखी कर बैठता हूं। लेकिन रिजल्टेंट क्या होता है। हेमिंग्वे से लेकर पनवाड़ी की दुकान पर बैठने वाले रम्मू तक की कविता पढी है। लेकिन असर नहीं होता। सवाल है कि असर होता किस बात का है हमपर। दिनकर की एक कविता पढ़ी थी, दो में से तुम्हें क्या चाहिए कलम या कि तलवार..।
दोस्तों ने प्रेम पर कविता लिखकर पन्ने रंग दिए। प्रेम की देवी रुठी की रुठी रही। कविता के गोल-गोल जलेबीनुमा शब्दों से रोटी ज्यादा गोल होती है। कविता संगीन से ज्यादा ताकतवार है, किसी ने कहा है तो क्यों न राम ने रावण को कविता सुनाकर बस में कर लिया। खासकर, एसटीडी बिलों पर लिखी जा रही कविता। चलें लादेन को बुश साब की कविता सुनवा देतें है।
तुम्हारी लिखी कविता कौन पढ़ता है। बच्चों को हिंदी आती नहीं.. जिन्हें आती है वह कविता क्यों पढ़े, मस्तराम क्यों न पढें। कविता से समाज बदल जाता तो सत्ता बदलने के लिए बंदूक की ज़रुरत ही क्या थी.। लेनिन कविताएं लिखने वाले लोगों को कविता क्रांति का पाठ पढाते।
कुछ करना है तो सॉलिड करो, कविता लिख के कुछ नहीं उखड़ने वाला।
6 comments:
अब पता नहीं तुम सच कह रहे हो या झूठ, लेकिन कभी-कभी मैं भी तुम्हारी तरह से सोचता हूँ... कि कविता लिखने से देश आज़ाद क्यों नहीं हुआ।
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चाँद, बादल और शाम
Labels: यॉर्कर
कवि भाई डक कर जायेंगे...:-)
har baat ko bhautikta ke taraju mein rakhne ka silsila chal pada hai aajkal.Kavita ko bhi isi mein rakh diya.Mein janna chahta hun akhbaar , kitab padhne se kya hota hai,tv kyon dekhte hain? usse kya hota hai,song kyun sunte hain? usse kya hota hai.Zindgi mein sirf gehun nahin gulab ki bhi fikra kijiye.
कोई बड़ा कवि कहता था की कविता ख़ुद वेंटीलेट होने के लिए लिखी जाती है....वैसे कुछ कविता कर भी जाती है....बस सही समय पर मिल जाये....
भाई मोटे दिमाग मै तो यह सब बाते आई ही नही, लेकिन हाजरी तो लगा लो...
मैं भी कुछ ऐसा ही सोचता हूं। तुमने तो भिंगा कर मारा है..:)
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