Friday, April 22, 2011

पश्चिम बंगालः ममता लहर को पलीता


दूसरे दौर में कांग्रेसी असंतुष्ट लगा सकते हैं ममता लहर को पलीता, बागी उम्मीदवारों से सीपीएम की राह होगी आसान

कांग्रेस और तृणमूल का असहज गठबंधन सूबे में विपक्ष की सत्ता पाने की कोशिशों पर पानी फेर सकते हैं। खासकर, आक्रामक ममता बनर्जी ने जिस तरह कांग्रेस को घुटने के बल चलने पर मजबूर किया है वह कई स्थानीय असरदार कांग्रेसियों के गले नहीं उतर रहा। उनका मानना है कि कांग्रेस आलाकमान को समझौते पर इस तरह से झुकना नहीं चाहिए था। 


दरअसल, कायदे से सत्ता में आने के लिए बेचैन ममता को समझौते की दरकार थी। ऐसे में अगर कांग्रेस नेतृत्व अड़ जाता तो ममता बैकफुट पर आने को मजबूर होतीं। ममता जिद में आकर अगर कांग्रेस को संभावनाशील सीटें देतीं तो शायद यह गठबंधन ज्यादा असरदार होता।


सूबे में चुनाव के दूसरे दौर के लिए कल वोटिंग होनी है। तीन जिले, 50 सीटें और 293 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। लेकिन दूसरे दौर में सीटें कांग्रेस के असर या जो भी थोड़ा जनाधार है—उसकी सीटें है।

लेकिन माना जा रहा है कि रायगंज से सांसद दीपा दासमुंशी, मालदा उत्तर से मौसम नूर और बरहामपुर के सांसद और रसूख वाले नेता अधिरंजन चौधरी के पंसदीदा उम्मीदवारों के टिकट कट गए। नतीजतन, चौधरी तृणमूल के मिले मुर्शिदाबाद जिले के 4 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन दे रहे हैं। हैरत नहीं कि वह 4 सीटें या तो निर्दलियों को हासिल हो जाएं या फिर सीपीएम के खाते में चली जाएं।

गौरतलब है कि 2009 में लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर चुके कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन ने 2010 में निकाय चुनाव अलग अलग लड़े। हालांकि चुनाव के बाद दोनों दलों ने हाथ मिलाए ताकि निकायों से वाम मोर्चे को बाहर रखा जा सके। लेकिन रिश्ते बिगड़ते ही रहे।

कांग्रेसी नेता और कार्यकर्त्ता मानते हैं कि जो जीत पहले सुनिश्चित थी अब वह लहर कमजोर पड़ सकती है। और यह सिर्फ ममता की जिद की वजह से है।

हालांकि इससे पहले कई बार ममता बनर्जी अपनी जिदों को सही साबित कर चुकी हैं। लेकिन मुर्शिदाबाद जिले के बाद नादिया जिले में भी बागियों के असर से वोट कटना करीब करीब पक्का माना जा रहा है। जाहिर है इससे राइटर्स बिल्डिंग पर कब्जे का सपना अधूरा रह सकता है।

कांग्रेसी इस बात से भी खफा है कि पूरे दक्षिणी बंगाल में कांग्रेस को महज 20 सीटें मिली हैं और पिछले 6 बार से विधायक रहे राम पियारे राम का पत्ता भी ममता ने साफ कर दिया। अब राम निर्दलीय चुनाव लड़ रहे है। जबकि 7 विधायक दक्षिणी बंगाल से थे। अब कहा जा रहा है कि बाकी के 6 में से 3 विधायक भी अपनी सीट बचा लें तो खैरियत हो। उधर उत्तरी बंगाल के पांच जीतने न लायक सीटें ममता ने कांग्रेस का पाले में ठेल दीं।

मुर्शिदाबाद के डोमकॉल में बागियों ने अपना प्रत्याशी खड़ा किया है। इससे जीत किसे मिलेगी यह कहना मुश्किल हो गया है। इस सीट से सीपीएम के हैवीवेट अनीसुर रहमान चुनाव मैदान में है। सीपीएम के जिस मुस्लिम वोट बैक के क्षरण की बात की जा रही है। वह अगर कांग्रेस के खाते में भी चला गया होगा तो वह बंटेगा। अनीसुर रहमान के खुद का वजन भी है जाहिर है उनकी जीत की राह आसान ही होगी।

उधर, एक अलग कोण एसयूसीआई का भी है। तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी रही इस पार्टी ने 17 कांग्रेसी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। और इस बगावत से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मानस भुइयां भी नहीं बचे। एसयूसीआई ने उनके खिलाफ भी अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया है।

लाल किले को ढहाने की ममता की उम्मीदें शाय़द इन समीकरणों से शायद परवान न चढ़ पाएं। हालांकि, अलग-अलग चैनल और अखबार ममता की बढ़त की भविष्यवाणी कर रहे हैं। कई छुटभैये रिपोर्टर तो इससे भी आगे बढते हुए दिखे। लेकिन इन पर आसानी से भरोसा नहीं होता। मुझे तो नहीं होता। मेरा अनुमान है कि इस दौर की 50 सीटों पर मामला 50-50 का रहने वाला है। वाम मोर्चे को सभी अनुमानों से ज्यादा सीटें मिलेंगी।

अपने इस चुनावी दौरे के आधार पर मेरा खयाल है कि कांग्रेस-तृणमूल का असहज गठजोड़ शायद चुनावी विजय पताका के सही रंग लाने में उतना कामयाब न हो...और पहले दो दौर की 104 सीटों के मामले में यह 13 मई को भी नमूदार होगा।


Sunday, April 17, 2011

पश्चिम बंगाल चुनावः सीपीएम को खारिज मत कीजिए

पश्चिम बंगाल में हूं,,चुनावी कवरेज में। पहले दौर में 54 सीटों पर मतदान होना है 18 को। कई चैनल ममता लहर की बात कर रहे हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी दे रहे हैं। ममता लहर तो अपनी जगह लेकिन मैं इस लहर को उतना असरदार मानने से इनकार करना चाहता हूं। हालांकि हर आम इंसान की तरह मैं भी पश्चिम बंगाल में बदलाव की वकालत करता हूं..लेकिन बदलाव किस कीमत पर..।
ममता बनर्जी ने तय किए बड़े फासले, लेकिन दूसरी पांत में कोई नेता नहीं 


मेरा खयाल है कि ममता का शासन सीपीएम से ज्यादा उद्विग्न..और बेचैन होगा। ठीक अपनी बेचैन नेत्री की तरह। शासन अगर  होगा ये तब की बात होगी, जनाब पहले दौर में 54 में से फिलहाल 41 पर वाममोर्चा, कांग्रेस गठबंधन 12 ौर एक सीट तृणमूल के पास है। वोट शेयर के हिसाब से देखें तो 47 फीसद वाममोर्चे को..27 फीसद कांग्रेस को..19 फीसद तृणमूल की मिला था।

आप 27-27 सीटों पर लड़ रहे तृणमूल कांग्रेस गठबंधन को ज्यादा तूल मत दीजिए..। दीपा दासमुंशी, मौसम नूर और अधीर चौधरी का असंतुष्ट खेमा इस गठबंधन की उम्मीदों की पलीता लगा सकता है। दूसरी तरफ, बीजेपी ने बंगाल में उपस्थिति दर्ज कराने की नीयत से अपने तमाम बड़े नेताओं का मैदान में उतारा है। उत्तरी बंगाल में बीजेपी की मौजूदगी इस बार वोट शेयर में अपना हिस्सा पिछली बार की तुलना में और लोकसभा चुनाव की तुलना में भी बढाएगी.यह मेरा दावा है।

कहानी का एक और एंगल है, दार्जिलिंग में गोरखाओं के रहनुमाओं का बहुकोणीय हो जाना। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, जीएनएलएफ और एवीएवीपी जैसे कई कोणों के उभरने से वोट बंटेंगे। ऐसी परिस्थिति में काडर आधारित पार्टी सीपीएम आपने सहयोगियों के साथ फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश में है।न

दो दिन पहले दार्जिलिंग भी गया था।दार्जिलिंग जाने के लिए मशहूर सपनो की रानी वाली ट्रेन अब सिर्फ कार्सियांग से दार्जिलिंग के बीच चलती है। दूरी उससे थोडी़ ही ज्यादा जितनी आप किसी चिडियाघर में टॉय ट्रेन में चढटे है। सड़के इतनी खराब..कि बस रास्ते भर में तशरीफ का टोकरा टूट कर खंड खंड हो जाए। ममता इसी दार्जिलिंग को स्विट्ज़रलैंड बनाने का वादा कर रही हैं।

उधर, नक्सलबाडी़ में राहुल गांधी का भाषण निहायत ही बोदा था..इससे कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद निराश भी थे। सीपीएम वाले इसे भी अपने चुनाव प्रचार में शामिल कर रहे हैं। पहाड़ में रस्साकशी को छोड़ दें तो भी सीपीएम को उत्तरी बंगाल में मात देना ममता के लिए टेडी़ खीर साबित होने वाला है। वजह ये भी कि 54 सीटों में से अपने एकमात्र विधायक अशोक मंडल को वह 5 दिन पहले ही पार्टी से निकाल बाहर कर चुकी है।

बाहरी उम्मीदवारों की वजह से तृणमूल के पुराने कार्यकर्ताओं में भी जरुरी जोश नहीं है। अकेली ममता क्या कर लेंगी..और कितने दिन टिकेंगी। उनके साथी वही हैं..सीपीएम, कांग्रेस वगैरह से निकाले गए लोग। वही लोग आज उनके साथी हैं जिनकी वजह से ममता ने कांग्रेस छोड़ी थी।

सीपीएम ने बंगाल में गद्दी बचाने के लिए वही रणनीति अपनाई है जो नीतिश ने बिहार के इस बार के चुनाव में अपनाई थी। यानी काम कम और और उसका प्रचार ज्यादा। सीपीएम के रणनीतिकार मानते हैं कि अगर लालू जैसे प्रतिद्वंद्वी को नीतिश ने जनता में सिर्फ उम्मीद जगाकर दोबारा सत्ता से बाहर कर दिया तो हम ममता को क्यों नही एक बार और सत्ता से दूर रख सकते। बंगाल के मुख्यमंत्री ने अपने नेताओं को जनता से अपनी भूलों के लिए माफी मांगने के भी निर्देश दिए है..ताकि एक चांस और मिल जाए।
वाममोर्चे को व्यक्तिगत करिश्मे पर नहीं, कैडर पर भरोसा

हालांकि रैली में हुई भी़ड़ अमूमन वोटो में तब्दील नही होती। (अगर होती तो लोकसभा में कांग्रेस के 7 नहीं ज्यादा सांसद होते) ऐसे में तृणमूल और कांग्रेस की रैलियों में जुटी भीड़ पर मुझे जरा भी भरोसा नहीं। लोग हेलिकॉप्टर देखने जुट जाते हैं। उधर सीपीएम और गठबंधन ने ्पने कैडर को 2009 की तुलना में ज्यादा सक्रिय किया है । जाहिर है सीपीएम को वोट पूर्व सर्वे में हराने वाले लोगों ने इस जमीनी हकीकत को शामिल नही किया होगा।

मेरे हिसाब से सीपीएम को उत्तरी बंगाल की इन 54 में से कम से कम 38 सीटें हासिल होंगी। बीजेपी 3 सीटों पर उम्मीद लगाए बैठी है लेकिन शायद ही उसका खाता खुल पाए। तृणमूल को 5 से कम सीटें मिलेंगी। गोरखा नामधारी पार्टियों खासकर विमल गुरंग की जीजेएम अपनी पारी की शुरुआत करेगी। उसे शायद तीन सीटें हासिल हो जाएं। कांग्रेस 6 के आसपास रहेगी। उसे भीतरघात का सामना करना होगा।

बाकी तो जनता जनार्दन का हाथ है...जिसे चाहे सिंहासन पर बिठा दे।