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Saturday, August 28, 2010

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला सावन-भादों मे...!
दसे रुपैया मोरा ससुर के कमाई हो हो,
 गहना गढ़एब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!
 पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई हो हो,
 चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!
 जारी....दुइये रुपैया मोरा देवर के कमाई हो हो,
चोलिया सियायेब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!
एके रुपैया मोरा ननादोई के कमाई हो हो,
टिकुली मंगायेब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!
 एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई हो हो,
खिलिया मंगाएब की छाबायेब बंगला सावन-भादों मे...!

(मैथिली लोकगीत)

Friday, December 12, 2008

भांग विद मंजीत- एक और लोकगीत

हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै,
हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै।।

आ रसगुल्ला इमहर सं आ,
इमहर सं आ, उमहर सँ आ,
सीधे मुंह में गुड़कल आ
एक सेर छाल्ही आ दू टा रसगुल्ला
एतबे टा मन मांग करै।

हे.. लटर-पटर दूनू टांग करै,
जे नहिं नबका भांग करै।।

अर्थात्, ((ल‍टर-पटर दोनों ‍‍टांग मेरी
क्या असरदार है नई भांग मेरी
ओ रसगुल्ले इधर से
आइधरर से आ, उधर से आ,
सीधे मुंह में गिरती आ
एक सेर मलाई और दो
रसगुल्लेइतनी ही है मांग मेरी))

Thursday, September 25, 2008

मैथिली लोकगीत

सावन-भादों मे बलमुआ हो चुबैये बंगला

सावन-भादों मे...!

दसे रुपैया मोरा ससुर के कमाई

हो हो, गहना गढ़एब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...! ]

पांचे रुपैया मोरा भैन्सुर के कमाई

हो हो, चुनरी रंगायब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

दुइये रुपैया मोरा देवर के कमाई

हो हो, चोलिया सियायेब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

एके रुपैया मोरा ननादोई के कमाई

हो हो, टिकुली मंगायेब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!

एके अठन्नी मोरा पिया के कमाई

हो हो, खिलिया मंगाएब की छाबायेब बंगला

सावन-भादों मे...!