दक्षिण एशियाई देशों के संगठन-दक्षेस के शिखर सम्मेलन को कवर करने के लिए काठमांडू में हूं। काठमांडू हवाई अड्डे पर बुनियादी सुविधाओं की कमी है। वहां पर उकताए हुए किरानियों का जमावड़ा है, जो आपको सुविधाएं देने में आनाकानी करेंगे, कुछ वैसे ही जैसे भारतीय नौकरशाही को जनता को सुविधा मुहैया कराने में होता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कारवां जब त्रिभुवन हवाई अड्डे से सीधे उस जगह की ओर चला, जहां एक ट्रॉमा सेंटर का उन्हें उद्घाटन करना था, तो रास्ते के दोनों तरफ लोगों का हुजूम था।
मुझे नहीं पता कि पाकिस्तान या सार्क के दूसरे सदस्य देशों के नेताओ के आने पर इतनी ही भीड़ थी या नहीं। लेकिन, हर मोड़ पर जब मोदी-मोदी के नारे लगने लगे, तो मुझे इल्म हुआ कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता भारत के बाहर भी है, और भारत से कम नहीं है।
तराई इलाके के एक नेता ने मुझे बाद में कहा भी, मोदी अगर नेपाल के मधेशी इलाके से चुनाव में खड़े हों तो यहां से भी जीत जाएंगे।
फेसबुक पर मेरे कुछ मित्र यह आरोप लगाते हुए पोस्ट करते हैं कि मोदी ऐसी भीड़ प्रायोजित करवाते हैं। अब उनके पोस्ट पूर्वाग्रह और ईर्ष्याग्रस्त है, यह मानने की वाजिब वजह मुझे मिल गई।
ट्रॉमा सेंटर पर प्रधानमंत्री ने सब बातों के साथ जिस बात का जिक्र किया वह था नेपाल के संविधान का तय समय सीमा पर बनकर तैयार हो जाना। उन्होंने भारतीय संविधान की नम्यता और अनम्यता का जिक्र करते हुए सर्वानुमति से संविधान तैयार करने पर जोर दिया।
जाहिर है कि भारत ने नेपाल के साथ अपनी मैत्री को नए आयाम देने शुरू किए हैं। लेकिन ध्यान देने वाल बात यह है कि पहले प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से नेपाल आना था। यह कार्यक्रम बदल दिया गया।
प्रधानमंत्री ने अपने किसी भाषण में इसका जिक्र भी किया। वजह हैः भारत की लापरवाही। सीमावर्ती इलाकों में सड़क बनाने की जिम्मेदारी भारत की है। (इस संदर्भ में समझौते भी है) लेकिन भारत ने इस काम का ठेका जिन कंपनियों को दिया था, (इनमें कोई एक कंपनी हैदराबाद की थी) उनने एडवांस तो लिया, लेकिन काम नहीं किया।
प्रधानमंत्री को बिहार के शहर सीतामढ़ी से सड़क मार्ग से भिट्ठामोड़ (सरहदी शहर, आधा भारत में आधा नेपाल में) होते हुए जनकपुर जाना था।
सुनने में आया कि बिहार सरकार ने प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा के मद्देनज़र तकरीबन 30 करोड़ रूपये खर्च करके सड़क को ठीक करवा दिया। यद्यपि वह सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग है तथापि खर्च बिहार सरकार ने किया।
लेकिन भिट्ठामोड़ से लेकर जनकपुर तक 19 किलोमीटर तक सड़कमार्ग बेहद खराब है। और यह सड़क भारतीय कंपनियों को बनानी थी। यह लापरवाही है, बहुत बड़ी चूक।
मोदी के जनकपुर लुम्बिनी और मुक्तिधाम न जाने के कई कारण बताए गए। लेकिन बड़ा कारण सड़क का खराब होना भी था। हालांकि प्रधानमंत्री ने यहां के लोगों को निराश नहीं होने के लिए कहा, और कहा कि वह मौका मिलते ही इधर आएंगे। लेकिन मधेश इलाके के उन लोगों को ज़रूर निराशा हुई होगी, जो चाहते थे कि मोदी एक दफा इधर आएं, तो अब तक तरक़्की की राह में नेपाल सरकार की नजरअंदाजी का शिकार रहे तराई इलाके के दिन बहुरेंगे।
जिस तरह से मोदी सरकार नेपाल के साथ अपने संबंध सुधारना चाहती है, उसे पुरानी सरकार की ऐसी गलतियों को ठीक करना होगा।
सार्क देशो के पर्यवेक्षकों में चीन भी है, और भारत की ऐसी गलतियां पाकिस्तान के मुखर सहयोगी रहे चीन को नेपाल में बढ़त दिला देंगी।
मंजीत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कारवां जब त्रिभुवन हवाई अड्डे से सीधे उस जगह की ओर चला, जहां एक ट्रॉमा सेंटर का उन्हें उद्घाटन करना था, तो रास्ते के दोनों तरफ लोगों का हुजूम था।
मुझे नहीं पता कि पाकिस्तान या सार्क के दूसरे सदस्य देशों के नेताओ के आने पर इतनी ही भीड़ थी या नहीं। लेकिन, हर मोड़ पर जब मोदी-मोदी के नारे लगने लगे, तो मुझे इल्म हुआ कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता भारत के बाहर भी है, और भारत से कम नहीं है।
तराई इलाके के एक नेता ने मुझे बाद में कहा भी, मोदी अगर नेपाल के मधेशी इलाके से चुनाव में खड़े हों तो यहां से भी जीत जाएंगे।
फेसबुक पर मेरे कुछ मित्र यह आरोप लगाते हुए पोस्ट करते हैं कि मोदी ऐसी भीड़ प्रायोजित करवाते हैं। अब उनके पोस्ट पूर्वाग्रह और ईर्ष्याग्रस्त है, यह मानने की वाजिब वजह मुझे मिल गई।
ट्रॉमा सेंटर पर प्रधानमंत्री ने सब बातों के साथ जिस बात का जिक्र किया वह था नेपाल के संविधान का तय समय सीमा पर बनकर तैयार हो जाना। उन्होंने भारतीय संविधान की नम्यता और अनम्यता का जिक्र करते हुए सर्वानुमति से संविधान तैयार करने पर जोर दिया।
जाहिर है कि भारत ने नेपाल के साथ अपनी मैत्री को नए आयाम देने शुरू किए हैं। लेकिन ध्यान देने वाल बात यह है कि पहले प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से नेपाल आना था। यह कार्यक्रम बदल दिया गया।
प्रधानमंत्री ने अपने किसी भाषण में इसका जिक्र भी किया। वजह हैः भारत की लापरवाही। सीमावर्ती इलाकों में सड़क बनाने की जिम्मेदारी भारत की है। (इस संदर्भ में समझौते भी है) लेकिन भारत ने इस काम का ठेका जिन कंपनियों को दिया था, (इनमें कोई एक कंपनी हैदराबाद की थी) उनने एडवांस तो लिया, लेकिन काम नहीं किया।
प्रधानमंत्री को बिहार के शहर सीतामढ़ी से सड़क मार्ग से भिट्ठामोड़ (सरहदी शहर, आधा भारत में आधा नेपाल में) होते हुए जनकपुर जाना था।
सुनने में आया कि बिहार सरकार ने प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा के मद्देनज़र तकरीबन 30 करोड़ रूपये खर्च करके सड़क को ठीक करवा दिया। यद्यपि वह सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग है तथापि खर्च बिहार सरकार ने किया।
लेकिन भिट्ठामोड़ से लेकर जनकपुर तक 19 किलोमीटर तक सड़कमार्ग बेहद खराब है। और यह सड़क भारतीय कंपनियों को बनानी थी। यह लापरवाही है, बहुत बड़ी चूक।
मोदी के जनकपुर लुम्बिनी और मुक्तिधाम न जाने के कई कारण बताए गए। लेकिन बड़ा कारण सड़क का खराब होना भी था। हालांकि प्रधानमंत्री ने यहां के लोगों को निराश नहीं होने के लिए कहा, और कहा कि वह मौका मिलते ही इधर आएंगे। लेकिन मधेश इलाके के उन लोगों को ज़रूर निराशा हुई होगी, जो चाहते थे कि मोदी एक दफा इधर आएं, तो अब तक तरक़्की की राह में नेपाल सरकार की नजरअंदाजी का शिकार रहे तराई इलाके के दिन बहुरेंगे।
जिस तरह से मोदी सरकार नेपाल के साथ अपने संबंध सुधारना चाहती है, उसे पुरानी सरकार की ऐसी गलतियों को ठीक करना होगा।
सार्क देशो के पर्यवेक्षकों में चीन भी है, और भारत की ऐसी गलतियां पाकिस्तान के मुखर सहयोगी रहे चीन को नेपाल में बढ़त दिला देंगी।
मंजीत