Tuesday, April 7, 2009

सुमन-शत्रुघ्न आमने सामने ये किसकी चाल है..


अस्सी के दशक में राजनैतिक पारी शुरु करने वाले शत्रुघ्न ने सोचा न होगा कि बात-बात में पार्टी से नाराज़ॉ होने के बाद पटना साहिब टिकट उन्हें यूं मिलेगा। लेकिन कभी अमिताभ को चुनौती देने वाले बिहारी बाबू को अब एक और बिहारी बाबू टक्कर देने वाले हैं। काफी हील-हुज्जत के बाद उन्हें पटना साहिब का टिकट मिला है, ये सीट परिसीमन के बाद नया नवेला है और कायस्थ बहुल है। इस सीट पर रविशंकर प्रसाद की नज़र भी थी.।


लेकिन जाति की राजनीति वाले सूबे बिहार में जात की बेटी जात को जात का वोट जात को का नारा बेहद पॉप्युलर है और जाति पार्टी से भी बड़ा फैक्टर है। ऐसे में शत्रुघ्न के लिए पटना साहिब सीट ही सबसे ज्यादा मुफीद थी।

पिछली संसद में बिहार से कोई भी कायस्थ सांसद लोकसभा में नहीं पहुंचा था। क्योंकि न तो कोई सीट ऐसी थी जो कायस्थ बहुल हो और ना ही कोई ऐसा नेता कहीं और से जीत पाया था।


बिहार के संसदीय इतिहास में पहली बार बतर्ज मधेपुरा(यादव बहुल) बक्सर (ब्राह्मण बहुल) किशनगंज (मुस्लिम) कोई ऐसी सीट सामने आई है जो कायस्थ बहुल हो। कायस्थों के वोट को भुनान के लिए लालू पहले ही राजेंद्र नगर रेलवे स्टेशन के पास डॉ राजेंद्र प्रसाद की मूर्ति लगवा चुके हैं।

लेकिन असली खेल तो कांग्रेस ने खेला है। कांग्रेस ने पोल खोलने वाले शेखर सुमन को टिकट दे दिया है। बिहार प्रभारी इकबाल सिंह ने इसकी घोषणा भी कर दी है। लेकिन मुझे तो इसका एक अलग ही एंगल नज़र आ रहा है। शेखर सुमन रविशंकर प्रसाद के नजदीकी माने जाते हैं। दिल्ली आए थे तो सुमन राजीव शुक्ला के घर ठहरे थे। शुक्ला रविशंकर प्रसाद के बहनोई हैं। अब रवि शँकर प्रसाद को पटना साहिब का टिकट कायस्थ होने पर भी नही मिला तो उन्होंने यह खेल खेला है।


कांग्रेस का टिकट जोड़तोड़ कर सुमन को दिलवा दिया। दूसरी पार्टियों में इस स्तार आपके इतने दोस्त तो हो ही जाते हैं। तो सोचिए कहीं यह शत्रुघ्न का खेल बिगाड़ने की चाल तो नहीं है। हा भी, स्मॉल मैन बिग इगोज़...हम तो बस चुप ही रहेंगे.।

1 comment:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

बिहारी से बिहारी मिले, कर-कर लंबे हाथ,
कल तक जो साथ थे, अब ना करते बात।